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________________ २८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--आश्रय शब्द समझना चाहिये । आश्रय शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. व्यपदेश (व्यवहार) २. सामीप्य (नजदीक) ३. आधार (आलम्बन)। इस तरह आश्रय शब्द के भी तीन अर्थ समझना चाहिये। मूल : राज्ञां गुणान्तरे गेहे पुंसि संश्रयणेऽपि च । आसंगं क्लीबमासक्तौ सौराष्ट्रमृदिसन्तते ।। १४४ ॥ आसत्ति: संगमे लाभे पदसन्निधिकारणे। आसनं कुञ्जरस्कन्धदेशे यात्रानिवर्तने ॥ १४५ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग आश्रय शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. राज्ञांगुणान्तर (राजाओं का गुण विशेष) २. गेह (घर) और ३. संश्रयण (आश्रयण करना)। इस तरह कुल मिलाकर आश्रय शब्द के . छह अर्थ समझना चाहिए । नपुसक आसङ्ग शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. आसक्ति (फंसावट) २. सौराष्ट्रमृद् (सौराष्ट्र की मिट्टी) और ३. सन्तत (हमेशा लगातार) । इस तरह आसङ्ग शब्द के तीन अर्थ समझना। आसक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. संगम (मिलाप-मिलन) २. लाभ और ३. पदसन्निधिकारण (सहकारि कारण) जैसे शाब्द बोध में शक्ति ज्ञान को सहकारि कारण माना जाता है। न्यायशास्त्र में इसका विवेचन किया गया है। आसन शब्द नपंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं -१.५ञ्जरस्कन्धदेश (हाथी का हौदा-पृष्टास्तरण कुथ) और २. यात्रा निवर्तन (यात्रा नहीं करना, बैठ जाना)। मूल : राज्ञां गुणान्तरे पीठे योगांगेऽपि नपुंसकम् । आसनो नाजीवकद्रौ स्यात् स्त्रियां विपणौ स्थितौ ॥ १४६ ।। आसन्दी लघुखट्वायां नासन्नोनिकटे त्रिषु । आसारो धारा सम्पात सैन्यव्याप्तौ सुहृबले ॥ १४७ ।। हिन्दी टोका-१. राज्ञांगुणान्तरे राजाओं का शत्रु के आक्रमण होने पर दुर्ग किला वगैरह के भूगर्भ (सुरंग) में जाकर छिप जाने को भी आसन कहते हैं (षड्गुणाः आसनं द्वधमाश्रयः) इत्यादि। इसी प्रकार २. पीठ (पाट चौकी वगैरह) को भी आसन कहते हैं। और ३. योगाङ्ग (योग सिद्धि के लिए किया जाने वाला पद्मासन वगैरह) को भी आसन कहते हैं। इस तरह नपुंसक आसन शब्द के पांच अर्थ समझना चाहिये । किन्तु पुल्लिग आसन शब्द को १. जीव कद्र (वन्धूक पुष्प दोपहरिया फूल का वृक्ष) अर्थ होता है और स्त्रीलिंग आसन शब्द का १. विपणि (दुकान) अर्थ होता है एवं २. स्थिति (बैठना) भी अर्थ होता है । इस प्रकार आसन शब्द के कुल आठ अर्थ समझना चाहिये । आसन्दी शब्द स्त्रीलिंग है उसका एक ही है -१. लघ खट्वा (छोटी चारपाई कुरसी वगैरह) और आसन्न शब्द निकट अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पूरुष, स्त्री या कोई भी वस्तु निकटवर्ती हो सकते हैं इसलिये तदनुसार ही विशेष्य निघ्न होने से आसन्नः पुरुषः, आसन्ना स्त्री और आसन्न वस्तु इस प्रकार तीनों लिंगों में प्रयोग हो सकता है। आसार शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं ---१. धारासंपात (मूसलधार वर्षा) २. संन्य ज्याप्ति (अधिक सेना का जमावट) और ३. सुहृद्बल (मित्र का बल–सेना) इस प्रकार आसार शब्द के तीन अर्थ हैं। . मूल : आस्कन्दनं शोषणेऽपि तिरस्कारे रणे त्रिषु । आस्था स्त्री यत्न आस्थानेऽपेक्षाऽऽलम्बनयोरपि ॥ १४८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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