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________________ मूल: नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-आस्कन्दन शब्द | २६ आस्पदं प्रभुता कृत्यस्थानेषु स्यान्नपुंसकम् । आहतो गुणिते ज्ञाते मिथ्योक्तताडिते त्रिषु ॥ १४६ ॥ हिन्दी टोका-आस्कन्दन शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. शोषण (शोषण करना, सुखाना) २. तिरस्कार (अपमान) और ३. रण (संग्राम युद्ध लड़ाई)। आस्था शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. यत्न (उद्यम-अध्यवसाय) २. आस्थान (सभा मण्डप) ३. अपेक्षा (प्रतीक्षाइन्तजार) और ४. आलम्बन (सहारा) । इस प्रकार आस्कन्दन शब्द के तीन और आस्था शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये । आस्पद शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. प्रभुता (सामर्थ्य) २. कृत्य (कर्तव्य) और ३. स्थान (जगह) । आहत शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ हाते हैं-१. गुणित (गुणा किया हुआ) २. ज्ञात (जाना हुआ) ३. मिथ्योक्त (झूठा कहना) और ४. ताडित (आघात किया हुआ)। इस प्रकार आस्पद शब्द के तीन और आहत शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये। आह्निक भोजने नित्यकृत्य - ग्रन्थविभागयोः । आक्षेपो निन्दने काव्यालंकारे भत्सने पुमान् ॥ १५० ॥ निन्दक व्याधयोस्त्रिष्वाक्षेपको नाऽनिलाऽऽमये । इज्यादानेऽध्वरे संगे कुट्टन्यां गविपूजने ॥ १५१ ।। हिन्दी टीका-आह्निक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भोजन, २. नित्य कृत्य (दैनिक कार्य सन्ध्यावन्दन सामायिक वगैरह) और ३. ग्रन्थ विभाग (ग्रन्थ का एक हिस्सा भाग वगैरह) । आक्षेप शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. निन्दन (निन्दा करना) २. काव्यालंकार (काव्य का अलंकार विशेष) और ३. भर्सन (फटकारना, भर्त्सना करना) इस प्रकार आह्निक शब्द के तथा आक्षेप शब्द के तीन-तीन अर्थ होते हैं । आक्षेपक शब्द १. निन्दक तथा २. व्याध (व्याधा) इन दो अर्थों में त्रिलिंग माना जाता जाता है किन्तु १. अनिल (पवन-वायु) और २. आमय (रोग) इन दो अर्थों में ना (पुल्लिग) ही माना जाता है । इज्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. दान, २. अध्वर (यज्ञ) ३. संग (संगति) ४. कुट्टनी, ५. गो, और ६. पूजन । इस प्रकार आह्निक शब्द के तीन एवं आक्षेप शब्द के भी तीन और आक्षेपक शब्द के चार तथा इज्या शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये । मूल : इडा भूमौ गवि स्वर्गेवाङ नाड्योबुंधयोषिति । हेतौ प्रकारे प्रकाश इति प्रकरणेऽव्ययम् ॥ १५२ ॥ आदौ समाप्तौनिदर्शे परकृत्यनुकर्षयोः । त्रिष्त्विरः क्रू रकृत्ये दुविधेऽध्वग - नीचयोः ॥ १५३ ।। हिन्दी टीका- इडा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. भूमि (पृथ्वी) २. गो (गायपृथ्वी वगैरह) ३. स्वर्ग, ४. वाक् (वाणी) ५. नाडी (धमनी नस) और ६. बुधयोषित् (बुद्धिमती स्त्री)। इति शब्द अव्यय है और उसके नौ अर्थ होते हैं-१. हेतु (कारण) २. प्रकार (सदृश-तरह) ३. प्रकाश, ४. प्रकरण (अवसर वगैरह) ५. आदि, ६. समाप्ति, ७. निदर्श (दृष्टान्त निर्देश) ८ परकृति (पश्चात्कालिक कृति कार्य वगैरह) और ६. अनुकर्ष (पीछे से आगे लाना वगैरह) । इत्वर शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. फरकृत्य (कठोर कार्य दुष्ट कार्य, वगैरह) २. दुर्विध (खराब भाग, दुर्भाग्य वगैरह) ३. अध्वग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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