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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित- श्रेष्ठी शब्द | ३५५ मूल : श्रेष्ठी व्याहियते धीरैरोसवालवणिग्जने । श्रोतः क्लीवं नदीवेगे कर्ण इन्द्रिय मात्रके ॥२०५४।। श्रोत्रं श्रोत्रियतायां स्यात् कर्णेऽपि क्लीवमीरितम्। श्रोत्रं श्रोत्रियतायां स्यात्कणे च श्रोत्रकर्मणि ॥२०५५।। हिन्दी टोका-श्रेष्ठी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. ओसवाल वणिग्जन (ओसवाल बनिया) होता है । श्रोतस् शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नदीवेग (नदी का प्रवाह) २. कर्ण (कान) और ३. इन्द्रिय मात्र । नपुंसक श्रोत्र शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. श्रोत्रियता (वेदाभिज्ञता वगैरह या वेदानुसार कर्म सदाचार निपुणता) और २. कर्ण (कान) को भी श्रोत्र कहते हैं । श्रोत्र शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. श्रोत्रियता (वेद निपुणता) २. कर्ण (कान) और ३. श्रौत्रकर्म (वेद विहित कर्म) को भी श्रौत्र कहते हैं। मूल : श्लक्ष्णं मनोहरे सूक्ष्मे दुर्बले शिथिले श्लथः । श्लाघा स्त्री परिचर्यायामभिलाषे प्रशंसने ॥२०५६।। शिलकुर्ना किकरे पिगे ज्योतिःशास्त्रे शिलकु स्मृतम् । श्लेष आलिंगने दाहे संयोगेऽलंकृतौ कवेः ।।२०५७।। हिन्दी टीका-इलक्ष्ण शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. मनोहर और २. सूक्ष्म (पतला झीणा)। श्लथ शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. दुर्बल (क्षीण कमजोर) और २. शिथिल (ढीला)। श्लाघा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. परिचर्या (सेवा) १. अभिलाष और ३. प्रशंसन (प्रशंसा करना)। पुल्लिग श्लिक शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. किंकर (नौकर) और २. षिङ्ग (हिजड़ा नपुंसक) किन्तु ३. ज्योतिःशास्त्र अर्थ में शिलकु शब्द नपुंसक माना गया है। श्लेष शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. आलिंगन, २. दाह, ३. संयोग और ४. कवेः अलंकृति (काव्य में श्लेष नाम अलंकार)। मूल : श्लोको यशसि पद्येऽथ शुभे श्व श्रेयसं विदुः । परमात्मनि कल्याणे कल्याणवति तु त्रिषु ॥२०५८।। श्वशुर्यो देवरे श्याले श्वसनो वायु-शल्ययोः । श्वासो रोग विशेषे स्यात् श्वसिते च समीरणे ॥२०५६।। हिन्दी टीका-श्लोक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. यशस् (कोति) और २. पद्य (छन्दोबद्ध)। नपुंसक श्वश्रेयस शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. शुभ (मंगल) २. परमात्मा तथा ३ कल्याण किन्तु ४. कल्याणयुक्त अर्थ में श्वश्रेयस शब्द त्रिलिंग माना गया है। श्वशुर्य शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. देवर (पति का छोटा भाई) और २. श्याल (पत्नी का भाई)। श्वसन शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. वायु (पवन) और २. शल्य (मदन नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष)। श्वास शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. रोगविशेष (कास श्वास नाम का रोग विशेष) २. श्वसित (मांस लेना) तथा ३. समीरण (पवन) को भी श्वास शब्द से व्यवहार किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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