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________________ मूल : ३५४ । नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--श्रीवास शब्द पताका) और २. विष्णु (भगवान् विष्णु) तथा ३. तद्वक्षःस्थितलांछन (भगवान् विष्णु के वक्षस्थल में श्रीवत्स नाम का चिन्ह विशेष) इस प्रकार श्रीवत्स शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : श्रीवासो माधवे शम्भौ कमले सरलद्रवे । श्रुतिः स्त्री श्रवणे वेदे वार्ता नक्षत्रभेदयोः ॥२०४८॥ षड्जाद्यारम्भिकायां च श्रोत्र कर्मण्यपि स्मृता। प्रोक्तः श्रुतिकटः प्राञ्चल्लोहेऽहौ पापशोधने ॥२०४६।। हिन्दी टीका-श्रीवास शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-माधव (भगवान् कृष्ण) २. शम्भु (भगवान् शङ्कर) ३. कमल और ४. सरल द्रव (सरल नाम का वृक्ष विशेष का द्रव चूर्ण वगैरह) । श्रुति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. श्रवण (कर्ण) २. वेद, ३. वार्ता और ४. नक्षत्रभेद (नक्षत्र विशेष) तथा ५. षड्जाद्यारम्भिका (षड्ज वगैरह सप्तस्वर का आरम्भक-अवयव विशेष) तथा ६. श्रोत्रकर्म (सुनना) । श्रुतिकट शब्द के तीन अर्थ होते हैं -१ प्राञ्चल्लौह (नमता हुआ लोहा) ओर २. अहि (सर्प) तथा ३. पापशोधन (निष्पाप)। , कठोर शब्दे साहित्य-दोषे श्रुतिकटुः पुमान् । श्रेणिः स्त्रीपुंसयोः पंक्तौ समान शिल्पि संहतौ ॥२०५०।। श्रेयो मुक्तौ शुभे धर्मेऽति प्रशस्ते त्वसौ त्रिषु । श्रेयसी स्त्री हरीतक्यां रास्ना-कल्याणयुक्तयोः॥२०५१।। हिन्दी टोका-श्रतिकटु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं.-१. कठोर शब्द (सुनने में कटु) और २. साहित्यदोष (श्रुति कटु नाम का दोष विशेष) । श्रेणि शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं - १. पंक्ति (श्रेणी) और २. समान शिल्पि संहति (सरखे शिल्पियों का समुदाय)। नपुंसक श्रेयस शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. मुक्ति, २. शुभ और ३. धर्म, किन्तु ४. अति प्रशस्त अर्थ में श्रेयस् शब्द त्रिलिंग माना जाता है। श्रेयसी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. हरीतकी, २. रास्ना (तुलसी) और ३. कल्याण युक्त । मूल : पाठायां करिपिप्पल्यां, श्रेयान् श्रेष्ठे शुभान्विते । श्रेष्ठोविष्णौ महीपाले कुबेरे च द्विजन्मनि ॥२०५२।। त्रिषु ज्येष्ठे वरे वृद्ध क्लीवं गोपयसि स्मृतम् । श्रेष्ठा स्त्री स्थल पद्मिन्यां मेदायामुत्तमस्त्रियाम् ॥२०५३।। हिन्दी टीका-श्रेयसी शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. पाठा (सोनापाठा) और २. करि पिप्पली (गजपीपरि)। श्रेयान् शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. श्रेष्ठ और २. शुभान्वित (शुभयुक्त) । पुल्लिग श्रेष्ठ शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. विष्णु (भगवान् विष्णु) और २. महीपाल (राजा) ३. कुबेर और ४. द्विजन्मा (ब्राह्मण) किन्तु १. ज्येष्ठ (बड़ा) २. वर तथा ३. वृद्ध अर्थ में श्रेष्ठ शब्द त्रिलिंग माना जाता है परन्तु १. गोपयस् (गोदुग्ध-गाय का दूध) अर्थ में श्रेष्ठ शब्द नपुंसक माना गया है । स्त्रीलिंग श्रेष्ठा शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. स्थल पद्मिनी (स्थल कमलिनी) २. मेदा और ३. उत्तमस्त्री (पद्मिनी स्त्री) को भी श्रेष्ठा कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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