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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मध्य शब्द | २४६ हिन्दी टोका-नपुंसक मध्य शब्द के तीन अर्थ होते हैं –१. दशान्त्यसंख्या (इग्यारह) २. लयभेद (लय विशेष) और ३. विराम (समाप्ति) किन्तु ४. शरीरमध्य अर्थ में मध्य शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है परन्तु ५. न्याय्य (योग्य) और ६. अन्तर (मध्य) तथा ७. अधम (नीच) इन तीनों अर्थों में मध्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । मन्तु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१ मनुष्य, २. अपराध (गल्ती) और ३. प्रजापति (ब्रह्मा)। मन्थ शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. दिवाकर (सूर्य) २. मन्थदण्ड (मन्थनदण्ड) और ३. साक्तव (सतुए का विकार वगैरह) और ४. कर (हाथ)। नेत्रामये नेत्रमले मारणे च विलोडने । मन्थरः सूचकेऽमर्षे मन्थाने मन्दगामिनि ॥१४१६॥ मन्दोऽतीव्रखले स्वल्पे रोगिणि स्वर-मूर्खयोः । मन्दरो मन्थशैले स्यात् स्वर्गे मन्दारपादपे ॥१४१७।। हिन्दी टीका–मन्थ शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. नेत्रामय (आंख का रोग विशेष) २. नेत्रमल (आंख का मल-कांची) ३. मारण (मारना) तथा ४. विलोडन (मन्थन करना)। मन्दर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. सूचक (चुगलखोर) २. अमर्ष (सहन नहीं करना) ३. मन्थान (मन्थन दण्ड) और ४. मन्दगामी (धीमे-धीमे चलने वाला)। मन्द शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं -१. अतीव्र (अनुत्कट-मन्द) २. खल (दुष्ट शत्रु) ३. स्वल्प (थोड़ा) ४. रोगी (बीमार) ५. स्वैर (मनमानो विचरने वाला) और ६. मूर्ख । मन्दर शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मन्थशैल (मन्दराचल पहाड़) २. स्वर्ग तथा ३. मन्दारपादप (सिंहरहार फूल का वृक्ष)। मन्दारोऽर्कतरौ धूर्ते पारिभद्रतरौ शये। मन्दुरा वाजिशालायां शयनीयार्थ वस्तुनि ॥१४१८।। मन्मथः कामचिन्तायां कपित्थगुम कामयोः । मन्युर्दैत्ये क्रतो क्रोधे शोका-हंकारयोः पुमान् ॥१४१६।। हिन्दी टोका-मन्दार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अर्कतरु (आँक का वृक्ष) २. धूर्त (वञ्चक-ठग) ३. पारिभद्रतरु (बकायन) तथा ४. शय (हाथ)। मन्दुरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. वाजिशाला (घुड़साला) २. शयनीयार्थवस्तु (शयन करने योग्य वस्तुजात)। मन्मथ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं --१. कामचिन्ता (कामवासना) २. कपित्थद्र म (कपित्थवृक्ष) और ३. काम (कामदेव)। मन्यु शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. दैत्य (दानव) २. क्रतु (यज्ञ) ३. क्रोध, ४. शोक, ५. अहंकार। मयूखः किरणे दीप्तौ ज्वालायां कील-शोभयोः । मरालः कज्जले राजहंसे कारण्डवे हये ।।१४२०॥ मरुर्दशेरके धन्वदेशे मरुवकद्रुमे । मरुतस्त्रिदशे वायौ घण्टापाटलि पादपे ॥१४२१।। मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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