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________________ २५० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - मयूख शब्द हिन्दी टीका - मयूख शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. किरण, २. दीप्ति (ज्योति) ३. ज्वाला, ४. कील (खील - काँटी) और ५. शोभा । मराल शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. कज्जल ( काजर) २. राजहंस ३ कारण्डव ( बक विशेष - सारस पक्षी वत्तक वगैरह ) और ४. हय (घोड़ा) । मरु शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. दशेरक (ऊँट ) २. धन्वदेश ( मरुभूमि) और ३. मरुवकद्र ुम ( मरुवक नाम का वृक्ष विशेष ) । मरुत शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. त्रिदश (देवता) २. वायु (पवन) और ३ घण्टापाटलिद्र ुम (काला पाढर या लोध्र विशेष) इस प्रकार मरुत शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए । मूल : मरुद् वायौ मरुवके त्रिदश ग्रन्थि-पर्णयोः । अथ मर्कटकः शस्यभेदे वानर-लुतयोः ।।१४२२।। मर्कटी स्यादपामार्गे कपिकच्छू-करञ्जयोः । मर्करा स्त्री दरी - भाण्ड-सुरङ्गा - निष्कलासु च ।। १४२३।। हिन्दी टीका - मरुत शब्द के चार अर्थ माने गये हैं- १. वायु (पवन) २. मरुवक ( मरुवक नाम . का वृक्ष विशेष ) ३. त्रिदश (देवता) तथा ४. ग्रन्थिपर्ण ( कुकरौन्हा या गठिवन) । मर्कटक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. शस्यभेद ( शस्य विशेष, धान्य विशेष) २. वानर (बन्दर) और ३. लूता (मकरा) । मर्कटी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. अपामार्ग (चिर. चिरी ) २. कपिकच्छू (कबाछु - कबाछं) और ३. करञ्ज (दिठवरन - इंगुदीवृक्ष) । मर्करा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. दरी ( कन्दरा गुफा) २. भाण्ड (बर्तन) ३. सुरंगा (सुरंग) तथा ४. निष्कला ( मासिक धर्मरहित स्त्री) । मूल : संवाहने चूर्णने च मर्दनं क्लीवमीरितम् । मर्म क्लीवं स्वरूपे स्यात् संधिस्थान- सतत्त्वयोः ॥ १४२४ ।। मलोsस्त्री पाप-विट् - किट्ट-वात-पित्त-कफेषु च । मलयश्चन्दनगिरौ शैलांगे हिन्दी टीका - मर्दन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. संवाहन (हाथ पाद शरीर दबाना) और २ चूर्णन ( चूर्ण करना) । मर्म शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. स्वरूप, २. सन्धिस्थान और ३. सतत्त्व (तत्त्वपूर्ण) । मल शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं- १. पाप, २. विट् (विष्ठा) ३. किट्ट (जग, बीझ) ४. वात (वायु) ५. पित्त और ६. कफ (जुखाम ) । मलय शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. चन्दनगिरि (मलयाचल पहाड़ ) २. शैलाङ्ग (पहाड़ का एकदेश) और ३. नन्दनवन (इन्द्र का स्वर्गीय वन विशेष ) । मूल : Jain Education International नन्दनवने || १४२५॥ मलिनं दूषिते कृष्णे मलसंयुक्तवस्तुनि । मलिम्लुचोऽनले चौरे मलमासे प्रभञ्जने ॥। १४२६॥ मल्लः कपोले पात्रे च बलिष्ठे बाहुयोधिनि । मल्लिजिनान्तरे पुंसि मल्लिकायां त्वसौ स्त्रियाम् ॥ १४२७|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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