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________________ २४८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मद शब्द हिन्दी टीका-मद शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. रेतस् (वीर्य) २. कस्तूरी, ३. हस्तिगण्डजल (हाथी का मद) ४. नद (बहुत बड़ा झील) ५. मद्य (शराब) ६. भिमान (घमण्ड) ७. कल्याणवस्तु (कल्याणकारक वस्तु) और ८. मत्तता (उन्माद)। मदन शब्द भी पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ होते हैं-१. शिक्य (शिक्का-छींका) २. काम (कामदेव) ३. वसन्त (वसन्त ऋतु) ४ पिचुकद्रुम (रुई-कपास का वृक्ष) ५. धुस्तूर (धतूर) ६. खदिर (कत्था) ७. माष (उड़द) ८. श्वसन (पवन-वायु) और ६. बकुलद्र म (मोलशरी का वृक्ष-भालशरी)। मूल: मदयित्नुः पुमान् कामे शौण्डिके मत्त-मेघयोः । मदारः कुञ्जरे धूर्ते कामुके शूकरे मृगे ॥१४१०॥ मदिरा मादकद्रव्यविशेषे मत्तखञ्जने । मधु मद्ये जले क्षीरे क्षौद्रे पुष्परसे स्मृतम् ।।१४११॥ हिन्दी टीका-मदयित्नु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. काम (कामदेव - मदन) २. शौण्डिक (शूरी-कलवार-घांची) ३. मत्त (उन्मत्त-पागल) और ४. मेघ (बादल) । मदार शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कुञ्जर (हाथी) २. धूर्त (वञ्चक-ठग) ३. कामुक (मैथुनाभिलाषी) ४. शूकर और ५. मृग (हरिण)। मदिरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं१. मादकद्रव्य (शराब) और २. मत्तखञ्जन (मतवाला खञ्जन चिड़िया)। मधु शब्द और उसके भी पाँच अर्थ होते हैं--१. मद्य (शराब) २. जल, ३. क्षीर (दूध) ४. क्षौद्र (शहद-मधु) और ५. पुष्परस (मकरन्द)। मूल : पुमान् मधुद्रुमे दैत्ये ऽशोके चैत्र-वसन्तयोः । मधुको वन्दिभेदे स्याद् यष्टयाव्हे विहगान्तरे ।।१४१२।। मधुरो जीरके शालौ गुडे मिष्ठरसे प्रिये । स्त्रियां मधु रसा द्राक्षा-गम्भारी-दुग्धिकासु च ॥१४१३॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग मधु शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१. मधुद्र म (महुआ वृक्ष) २. दैत्य (मधु नाम का दैत्य विशेष, जिसको भगवान विष्णु ने मारा है) ३. अशोक (अशोक वृक्ष) ४. चैत्र (चैत मास) और ५. वसन्त (वसन्त ऋतु)। मधुक शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वन्दिभेद (बन्दी विशेष) २. यष्टयान्ह (जेठी मधु-मुलहठी) और ३. विहगान्तर (विहग विशेष-मधुक नाम का पक्षी)। मधुर शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. जीरक (जीरा) २. शालि (चावल, धान, चोखा वगैरह) ३. गुड़, ४. मिष्ठरस (मिष्टान्न) और ५. प्रिय (मनोरम)। मधुरसा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. द्राक्षा (मुनक्का-दाख-किसमिस) २. गम्भारी (गभारि) और ३. दुग्धिका (दूधिया घास-दूधी) इस प्रकार मधुरसा शब्द के तीन अर्थ समझना। मध्यं दशान्त्यसंख्यायां लयभेद-विरामयोः । अस्त्री शरीरमध्ये स्यात् त्रिषु न्याय्येऽन्तरेऽधमे ॥१४१४॥ मन्तुः पुमान् मनुष्ये स्यादपराधो प्रजापतौ। मन्थो दिवाकरे मन्थदण्डके साक्तवे करे ॥१४१५।। मूल: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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