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________________ २१४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-परिधि शब्द और २. विकार (विकृति)। परिताप शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं—१. भय (डर) २. कम्प (काँपना) ३. नरकान्तर (नरक विशेष) और ४. दुःख तथा ५. अत्युष्णता (अत्यन्त गरमी) और ६. शोक । परित्राण शब्द का अर्थ- १. रक्षण (रक्षा करना) होता है। परिधाय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. परिच्छेद (वर्ग, प्रकरण, काण्ड, अध्याय वगैरह) और २. जनस्थान तथा ३. नितम्ब । इस तरह परिधाय शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : परिधिस्तु पुमान् सूर्यचन्दिरासन्नमण्डले । यज्ञीय द्रुम शाखायां स्याद् भूगोलादि वेष्टने ।।१२०३॥ नैपुण्ये परिपक्वत्वे परिपाकः प्रकीर्तितः । परिबों राजयोग्यवस्तुजाते परिच्छदे ॥१२०४॥ हिन्दी टीका-परिधि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्यचन्दिरासन्न मण्डल (सूर्य और चन्द्र को घेरने वाला गोलाकार रेखा विशेष जिसको परिवेष भी कहते हैं) और २. यज्ञीयद्र म शाखा (यज्ञ सम्बन्धी वृक्ष की शाखा) तथा ३. भूगोलादिवेष्टन (भूगोल वगैरह का वेष्टन)। परिपाक शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. नैपुण्य (चातुर्य) और २. परिपक्वत्व (परिपक्वता)। परिबह शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. राजयोग्य वस्तूजात (राजा के लायक वस्तुजात) और २. परिच्छद (हाथी, घोड़ा, वस्त्र आदि)। आलापे नियमे निन्दा दुर्वादे परिभाषणम् । परित्राणे मलत्यागे परिमोक्षो बुधैः स्मृतः ॥१२०५।। मारणे च परित्यागे परिवर्जनमीरितम् । परिवर्तो विनिमये कूर्मराजेऽपवर्तने ।।१२०६॥ हिन्दी टोका- परिभाषण शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. आलाप (बोलना) २. नियम (रूलिंग) और ३. निन्दादुर्वाद (निन्दासूचक दुर्वाक्य)। परिमोक्ष शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --१. परित्राण (रक्षा करना) २. मलत्याग । परिवर्जन शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. मारण (मारना) और २. परित्याग । परिवर्त शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं . १. विनिमय (अदला बदली) और २. कूर्मराज (कच्छप का राजा) तथा ३. अपवर्तन (परिवर्तन)। युगान्ते ग्रन्थविच्छेदे मृत्यपौत्रान्तरेऽपि च । परिवादोऽपवादे स्याद् वीणावादन वस्तुनि ॥१२०७॥ परिवापो जलस्थाने मुण्डने च परिच्छदे । परिवारः परिजने खड्गकोषे परिच्छदे ।।१२०८।। हिन्दी टीका-परिवर्त शब्द के और भी तोन अर्थ माने गये हैं-१. युगान्त (प्रलय काल) और २. ग्रन्थ विच्छेद (ग्रन्थ का विच्छेद-विभाग) तथा ३. मृत्युपौत्रान्तर (मृत्यु यमराज का पौत्रान्तर-पौत्र विशेष) । परिवाद शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१ अपवाद (कलंक) और २. णावी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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