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________________ नार्थीयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित -त्वक् शब्द | १४६ त्वगिन्द्रिये त्वचे चर्म-वल्कयोस्त्वक् गुडत्वचि । त्वक्सारो रन्ध्रवंशे स्याच्छोणवृक्षे गुडत्वचि ॥ ८१६ ॥ विट् जिगीषा - प्रभा - शोभा व्यवसायेषु वाचि च । खड्गमुष्टत्सरुर्दीप्तौ त्विषासूर्ये त्विषाम्पतिः ।। ८१७ ॥ हिन्दी टीका - त्वक् शब्द स्त्रोलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. त्वगिन्द्रिय, २. त्वच (त्वचा) ३. चर्म ( चमड़ा ) ४. वल्क (वल्कल, छिलका) और ५. गुडत्वच् (गुडुची गिलोय) । त्वक् सार शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. रन्ध्रवंश ( रन्ध्रयुक्त वांस) और २. शोणवृक्ष (सोनापाठा) और ३. गुडत्वच् (गुडूची, गिलोय ) । त्विट् शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. जिगीषा ( जीतने की इच्छा ) २. प्रभा ( कान्ति प्रकाश ) ३. शोभा, ४. व्यवसाय (उद्योग) और ५. वाक् (वचन) । त्सरु शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १ खड्गमुष्टि होता है । त्विषा शब्द का अर्थ१. दीप्ति होता है और त्विषाम्पति शब्द का १. सूर्य अर्थ माना गया है । दंश: सर्पक्षते दोषे दन्तेमर्मणि खण्डने । मूल : मूल : अरण्यमक्षिका - वर्म- दंशनेषु मतः पुमान् ॥ ८१८ ॥ दंशितो वर्मितेदष्टे दंष्ट्री शूकर- सर्पयोः । त्रिषु दंष्ट्राविशिष्टेऽसौ सलिले दकमीरितम् ॥ ८१६ ॥ हिन्दी टीका - दंश शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं - १. सर्पक्षत (सर्प का काटना) २. दोत्र ( दुर्गुण) ३. दन्त (दाँत) ४. मर्म, ५. खण्डन, ६. अरण्यमक्षिका (मधुमक्खी ) ७. वर्ष (कवच ) और ८. दंशन (कड्डना, काटना) । दंशित शब्द के दो अर्थ होते हैं १. वर्मित (कवचयुक्त) और २. दष्ट (सर्पादि से काटा हुआ ) । दंष्ट्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-सर्प और २. शूकर (शूअर ) किन्तु ३. दंष्ट्रा विशिष्ट (दंष्ट्रायुक्त) अर्थ में दंष्ट्री शब्द त्रिलिंग माना जाता है । दक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ - - १. सलिल (जल पानी) होता है। इस तरह दक शब्द का एक अर्थ है । दण्डोsस्त्री शरणापन्नरक्षणादौ दमे यमे । मूल : मन्थाने ग्रहभेदेऽश्वे चण्डांशोः पारिपार्श्वके ॥ ८२० ॥ प्रकाण्डे लगुडे सैन्ये व्यूहभेदाऽभिमानयोः । ऊर्ध्वस्थितौ मानभेदे कोण कालविशेषयोः ॥ ८२१ ॥ हिन्दी टीका - दण्ड शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं१. शरणापन्न रक्षणादि (शरण में आये हुए का रक्षण करना इत्यादि) २. दम (इन्द्रियों को वश में करना) और ३. यम (संयम - मन को वश में रखना) तथा ४ मन्थान (मथने का दण्ड विशेष) और ५. ग्रहभेद (ग्रह विशेष) ६. चण्डाशोः अश्व ( सूर्य का घोड़ा) और ७ पारिपार्श्वक ( बगल में रक्षण करने वाला या परिपार्श्व बगल में रहने वाला) । दण्ड शब्द के और भी नो अर्थ माने जाते हैं - १. प्रकाण्ड ( लग्गा ) २. लगुड (दण्डा) ३. सैन्य तथा ४ व्यूह भेद (व्यूह विशेष ) ५. अभिमान ( घमण्ड ) ६. ऊर्ध्वस्थिति (ऊपर रहना) ७. मानभेद ( परिमाण विशेष ) तथा ८. कोण और ६. काल विशेष (२४ मिनट) । इस तरह कुल मिलाकर दण्ड शब्द के सोलह अर्थ जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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