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________________ १२४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-जामाता शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. श्रेष्ठ (अच्छा, बड़ा महान) और २. कुलीन (उच्च खानदानी)। जाबाल शब्द - १. अजाजीव (गड़रिया, भेड़हारा) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है और पुल्लिग जाबाल शब्द का २. मुनिभेद (मुनि विशेष जाबालि ऋषि) अर्थ होता है। इस प्रकार जाबाल शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : जामाता दुहितुःपत्यौ सूर्यावर्ते धवेऽपि च । जाम्बूनदं स्वर्णभेदे धुस्तूर स्वर्णमात्रयोः ॥ ६७२ ॥ जाया स्त्रियां जायकन्तु पीत गन्धाढ्य दारुणि । जायानुजीवी दुःस्थे स्याद् बके वेश्यापतौ नटे ॥ ६७३ ॥ हिन्दी टीका-जामाता शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दुहितुःपति (लड़की का पति) २, सूर्यावर्त (सूर्य का आवर्त-गोलाकार परिवेष) और ३. धव (वट वृक्ष)। जाम्बूनद शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१ स्वर्णभेद (स्वर्ण विशेष वीटर सोना) २. धुस्तूर (धत्तूर धथूर) और ३. स्वर्णमात्र (सोना)। जाया शब्द का अर्थ स्त्री होता है, जायक शब्द का अर्थ - १. पीत गन्धाढ्य दारु (पीले रंग का अधिक गन्ध वाला दारु वृक्ष विशेष) और २. जायानुजीवीदुःस्थ (जाया स्त्री का अनुसरण कर जीने वाला दुःस्थ दयनीय पुरुष को भी जायक कहते हैं) और ३. बक (बगला) भी जायक शब्द से व्यवहृत ना है, तथा ४. वेश्यापति (वेश्या का पति भडुआ) को भी जायक कहते हैं और ५. नट को भी जायक शब्द से व्यवहार किया जाता है। मूल : जालं वातायने दम्भे इन्द्रजाल-समूहयोः । आनेये क्षारके क्लीवं कदम्बे तु पुमानसौ ॥ ६७४ ॥ जालकं कोरके दम्भे कुलाय-समुदाययोः । कूष्माण्डादि क्षुद्रफले क्षारकाऽऽनाययोरपि ॥ ६७५ ॥ हिन्दी टीका-जाल शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने गये हैं- १. वातायन (खिड़की, वारना) २. दम्भ (आडम्बर) ३. इन्द्रजाल (माया जादूगरी) ४. समूह (समुदाय) ५. आनेय (पाशा चौपड़ को गोटी विशेष) ६. क्षारक (लवण नमक) किन्तु ७. कदम्ब (समूह) अर्थ में जाल शब्द पुल्लिग ही माना जाता है । जालक शब्द भी नपुंसक है और उसके भी सात अर्थ माने जाते हैं-१. कोरक (कली) २. दम्भ (आडम्बर) ३. कुलाय (घोंसला, खोतानीर) ४. समुदाय (समूह) ५. कूष्माण्डादि क्षुद्र फल (कोहरा आदि छोटा फल) और ६. क्षारक (नमक) तथा ७. आनाय (पाशा चौपड़ का विपरीत गोटी अथवा मछली वगैरह को फंसाने का जाल) इस तरह जाल शब्द तथा जालक शब्द के सात-सात अर्थ हुए। मूल : स्याज्जालिको वागुरिके कैवर्ते ग्रामजालिनि ।। ऊर्ण नाभे जालिका तु गिरिसारेंऽशुकान्तरे ॥ ६७६ ।। भटानामश्मरचिताऽङ्गरक्षिण्यां जलौकसि । विधवास्त्रियामथोजालीस्मृता ज्योत्स्नीपटोलयोः ॥६७७॥ हिन्दी टीका---जालिक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. वागुरिक (जाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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