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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जलसूचि शब्द | १२३ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं—१. जलावर्त (पानी का भंवर) २. पयोरेणु (जल कण) और ३. भुजंगम (सर्प) । जलव्याल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अलगद (ढोड़ साँप या पानी में रहने वाला सर्प-मछगिद्धी) और २. क्रूरकर्मा (कठोर -खराब कर्म करने वाला) और ३. यादस् (जलचर जन्तु मगर घड़ियाल सोंस वगैरह)। जलसूचिर्जलौकायां शृङ्गाट - शिशुमारयोः। कङ्कत्रोटेऽथ शैवाले स्रोतस्यापि जलाञ्चलम् ॥ ६६६ ।। जलाशयो जलाधारे शृङ्गाटक समुद्रयोः । जलेन्द्रो वरुणे सिन्धौ जम्भलेऽपि निगद्यते ॥ ६६७ ॥ हिन्दी टीका-जलसूचि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. जलौका (जोंक) २. शृङ्गाटक (सिंघरहार) और ३. शिशुमार (सोंस घड़ियाल) ४. कङ्कत्रोट (कंकहरा सफेद चील का चोंच) । जलांचल शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. शैवाल (लीलू-शिमार) और २. स्रोतस् (जल प्रवाह)। जलाशय शव्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. जलाधार (तालाब वगैरह) २. शृङ्गाटक (सिंघरहार) और ३. समुद्र । जलेन्द्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. वरुण (वरुण देवता) २. सिन्धु (नदी वगैरह) ओर ३. जम्भल (निम्बू, नेबो) । जवनो वेगयुक्ताश्वे वेग - देशविशेषयोः । म्लेच्छ जात्यन्तरे पुंसि वेग युक्त त्वसौ त्रिषु ॥ ६६८ ॥ जातवेदाः स्मृतो वह्नौ चित्रकाख्यौषधे पुमान् । जातरूपन्तु धुस्तूरे काञ्चनोत्पन्नरूपयोः ॥ ६६६ ॥ हिन्दी टीका-जवन शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. वेगयुक्ताश्व (वेगशाली घोड़ा) २. वेग और ३. देश विशेष (जवन नाम का प्रसिद्ध देश, अरब वगैरह) ४ म्लेच्छ जात्यन्तर (मुसलमान जाति) किन्तु ५. वेगयुक्त (वेगशाली) अर्थ सामान्य में तो जवन शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि वेगयुक्त पुरुष स्त्री साधारण सभी हो सकते हैं। जातवेदस् शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१ वन्हि (आग) २. चित्रकाख्य औषध (एरण्ड, रेड, अण्डी)। जातरूप शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. धुस्तूर (धत्तूर-धथूर) २. काञ्चन (सोना चाँदी) और ३ उत्पन्न रूप (रूपा)। जातिरश्मन्तिका-जन्म-सामान्याऽऽमलकीषु च।। गोत्रे जातीफले छन्दो विशेष मालती सुमे ।। ६७० ॥ काम्पिल्लतरु-गीत्वाद्योर्जात्यः श्रेष्ठ कुलीनयोः । जावालस्त्रिष्वजाजीवे मुनिभेदे पुमानसौ ॥ ६७१ ॥ हिन्दी टोका-जाति शब्द के नौ अर्थ माने जाते हैं-१. अश्मन्तिका (चुल्ही) २. जन्म सामान्य (उत्पत्ति सामान्य) ३. आमलकी (आमला, धात्री) ४. गोत्र (वंश कुल परम्परा) ५ जातीफल (जायफल जाफर) ६. छन्दो विशेष (जाति नाम का मात्रा छन्द) और ७. मालती सुम (मालती फूल) और ८. काम्पिल्ल तरु (कबीला, कपीला नाम का वृक्ष विशेष) और ६. गीत्वादि । जात्य शब्द मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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