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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - जाल्म शब्द | १२५ वाला) २. कैवर्त ( धीवर मलाह) ३. ग्राम जाली (ग्राम जाल वाला ) ४. ऊर्णनाभ (कड़ोलिया, मकड़ा) । जालिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. गिरिसार और २. अंशुकान्तर ( जाली - दार कपड़ा) । जालिका शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. भटानाम् अश्मरचिताङ्गरक्षिणी (सेना के लोहा पत्थर सोमेण्ट का बनाया हुआ कवच शिरस्त्राण टोप विशेष) और २. जलौकस ( जोंक) तथा ३. विधवा स्त्री । जाली शब्द भी स्त्रीलिंग ही है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. ज्योत्स्नी (तोरई नाम का शाक विशेष, झिमली) और २. पटोल (परबल का शाक) इस तरह दो अर्थ हुए । जालमस्तु पामरे क्रूरेऽप्यसमीक्ष्यविधायिनि । जाहको घोंघ मार्जार-खट्वा कारुण्डिकासु च ॥ ६७८ ।। जिनोऽर्हति हृषीकेशे बुद्धेऽपि त्रिषु जित्वरे । जिष्णु विष्णौ शुनासीरेऽर्जुने जेतरितु त्रिषु ॥ मूल : ६७६ ॥ हिन्दी टीका - जाल्म शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पामर (कायर) २. क्रूर (नीच निर्दय) और ३ असमीक्ष्य विधायो ( बिना विचारे काम करने वाला, मूर्ख ) । जाहक शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. घोंघ (डोका, घोंघरी) और २. मार्जार ( बिडाल बिल्ली) तथा ३. खट्वा (चारपाई) और ४. कारुण्डिका । जिन शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. अर्हन् (भगवान् तीर्थङ्कर) २. हृषीकेश (भगवान् विष्णु) और ३. बुद्ध ( भगवान बुद्ध ) किन्तु ४. जित्वर (जयशील) अर्थ में तो जिन शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी पुरुष स्त्री साधारण जयशील हो सकता है इसीलिए इस अर्थ में जिन शब्द त्रिलिंग माना जाता है । जिष्णु शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. विष्णु (विष्णु भगवान्) २. शुनासीर (इन्द्र) और ३. अर्जुन । किन्तु ४ जेता (विजेता) अर्थ में तो जिष्णु शब्द त्रिलिंग ही माना जाता है क्योंकि कोई भी पुरुष स्त्री साधारण विजेता हो सकता है | मूल : जिह्मगो मन्दगे सर्पे जिह्मः कुटिलमन्दयोः । जिह्वलो लोलुपे लोले जिह्वा स्याद् रसनेन्द्रिये ॥ ६८० ॥ जिह्वाप: कुक्कुरे व्याघ्र भल्लू के वृषदंशके । देवताडद्रुमे गिरौ ॥ ६८१ ॥ जीमूतो वासवे मेघे हिन्दी टीका-जिह्मग शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १ मन्दग (धीमे-धीमे चलने वाला मन्दगामी) २ सर्प (साँप ) क्योंकि सर्प भी जिह्म बाँका टेढ़ा चलता है इसीलिए उसे जिह्मग कहते हैं । जिह्म शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. कुटिल और २ मन्द । जिह्वल शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. लोलुप (लोभी) और २. लोल ( चंचला ) । जिह्वा शब्द का अर्थ – १. रसनेन्द्रिय (जीभ) होता है । जिह्वाप शब्द पुल्लिंग है और चार अर्थ माने जाते हैं१. कुक्कुर (कुत्ता) २. व्याघ्र (बाघ) ३. भल्लूक ( भालू - रोछ) और ४ वृषदंशक ( बिडाल - बिल्ली ) । जीमूत शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. वासव (इन्द्र) २. मेघ (बादल) ३. देवताडद्र म ( देवताड नाम का वृक्ष विशेष) और ४ गिरि ( पहाड़ ) । मूल : Jain Education International कुरुविन्दे भृतिकरे घोषकेऽपि प्रकीर्तितः । जीरः स्याज्जीरके खड्गे जीर्णो वृद्ध पुरातने ॥ ६८२ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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