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________________ १२२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जर्जर शब्द जलं गोकलने नीरे ह्रीबेरेऽथ जडे त्रिषु । जलगुल्मो जलावर्ते कमठे नीरचत्वरे ।। ६६१ ।। हिन्दी टोका-जर्जर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. शैलज (पहाड़ से उत्पन्न) २. शक्रध्वज (इन्द्र की पताका) ३. शीर्ण (जीर्ण, पुराना, नष्ट-भ्रष्ट) और ४. जरातुर (जर्जरित, अत्यन्त वृद्ध)। जर्जरीक शब्द भी पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. बहुच्छिद्र द्रव्य (अनेक छिद्र वाला घटादि द्रव्य विशेष) किन्तु २. जरातुर (अत्यन्त वृद्ध) अर्थ में तो जर्जरीक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। जल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१ गोकलन, २. नीर (पानी) ३. ह्रीबेर (नेत्र वाला) और ४. जड (मूर्ख) क्योंकि संस्कृत साहित्य में ड और ल का ऐक्य माना गया है इसलिए जल कहने से जड भी लिया जा सकता है इसीलिए जल से जड अर्थ भी समझना चाहिए। किन्तु इस जड (मूर्ख) अर्थ में जल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। जलगुल्म शब्द पुल्लिग माना गया है और उसके तीन अर्थ होते हैं --१. जलावर्त (भंवर, पानी की भ्रमि, जहाँ पानी चक्कर देता रहता है और उसमें पड़कर प्राणी खतरे में पड़ जाते हैं) २. कमठ (कच्छा, काचवा-काछ) और ३. नीर चत्वर (सलिलाजिर -- पानी का अंगन - आंगन) इस प्रकार जलगुल्म शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिये । मूल : जलजं कमले शंखे लवणाकरजेऽद्वयोः । पुमान् शैवाल-वानीर - मीन-शंख - कुपीलुषु ॥ ६६२ ॥ जलदो मुस्तके मेघे जलदानविधायिनि । मेघे जलधरः सिन्धौ-मुस्तके जलधारिणि ॥ ६६३ ।। हिन्दी टोका – जलज शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कमल, २. शंख, और ३ लवणाकरज (लवण समुद्र-क्षार समुद्र में उत्पन्न होने वाला) किन्तु पुल्लिग जलज शब्द के तो पांच अर्थ होते हैं---१ शैवाल (लीलू, शेमार) २ वानीर (बेंत, वेतसलता) ३. मीन (मछली) ४. शंख और ५ कुपील । जलद शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. मुस्तक (मोथा) २. मेघ (बादल) और ३. जलदानविधायी (जल दान करने वाला)। जलधर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. मेघ (बादल) २. सिन्धु (सागर) ३. मुस्तक (मोथा) और ४. जलधारी (पानी को धारण करने वाला)। मूल : जलप्रायमनूपेऽथ चातकेऽपि जलप्रियः । जलयन्त्रगृहं प्रोक्त जलयन्त्रनिकेतने ।। ६६४ ॥ जलरुण्डो जलावर्ते पयोरेणौ भुजंगमे । जल व्यालोऽलगर्दै स्यात् क्रूरकर्मणि यादसि ॥ ६६५ ॥ हिन्दी टोका-जलप्राय शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-अनूप (जहाँ पर चारों तरफ पानी ही पानी रहता है उसको अनूप कहते हैं)। जलप्रिय शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-चातक (चातक नाम का पक्षी विशेष होता है जोकि स्वाति नक्षत्र के पानी को ही चाहता है) यहाँ पर श्लोक में अपि शब्द का भी प्रयोग किया गया है इसलिए अपि शब्द से मत्स्य (मछली) भी लिया जाता है। जलयन्त्रगृह शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. जलयन्त्रनिकेतन (जल निकालने की मशीन का घर)। जलरुण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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