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________________ १०४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चण्डातक शब्द हिन्दी टीका-चण्डातक शब्द पुल्लिग और नपुंसक है और उसका अर्थ-वरस्त्रीणाम् अोरुक (लहंगा, सारी) । चण्डाल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं—१. पुवकश (भील कोल किरात) २. क्रूरकर्मा (अत्यन्त कठोर कर्म करने वाला)। चण्डिल शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. नापित (हज्जाम) २. रुद्र (क्रूर) ३. वास्तूक (वथुआ शाक) और ४. नदीभिद् (नदी विशेष) अर्थ में स्त्रीलिंग माना जाता है। चण्डी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. दाक्षायणीदेवी (दुर्गा पार्वती देवी) और २. कोपना (कोपनशीला क्रोध स्वभाव वाली)। मूल: मार्कण्डेयपुराणोक्त देवी माहात्म्य हिंस्रयोः ॥ ५६१ ।। चतुरो निपुणे दक्षे त्रिषु लोचनगोचरे । पुमांस्तु हस्तिशालायां चक्रगण्डावपीष्यते ॥ ५६२ ।। हिन्दी टीका-चण्डी शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं -१. मार्कण्डेयपुराणोक्त देवी माहात्म्य (माकण्डेय ऋषिप्रोक्त देवी दुर्गा का माहात्म्य विशेष सप्तशती) और २. हिंस्रा (घातक स्वभाव वाली स्त्री) । त्रिलिंग चतुर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं –१. निपुण (प्रवीण) २. दक्ष (कुशल) ३. लोचनगोचर (नयन का प्रत्यक्ष) इन तीन अर्थों में चतुर शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी वस्तु पुरुष, स्त्री साधारण नयनगोचर (आँखों से देखे जा सकते हैं) और निपुण (प्रवीण) और दक्ष (कुशल तत्पर) हो सकते हैं किन्तु १. हस्तिशाला (हथिसार) और २. चक्रगण्डि इन दो अर्थों में चतुर शब्द पुल्लिग ही माना जाता है । इस तरह चतुर शब्द के कुल पाँच अर्थ जानना । मूल: चतुष्पथः पुमान् विप्रे क्लीवं श्रृङ्गाटके स्मृतम् । चतुष्पदी स्त्रियां पद्ये पुमांस्तु करणे पक्षौ ॥ ५६३ ॥ चन्दनाऽगरु-कस्तूरी कुकुमे तु चतु:समम् । चदिरो भुजगे चन्द्रे कर्पू रे कुञ्जरे पुमान् ॥ ५६४ ॥ हिन्दी टीका-चतुष्पथ शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-विप्र (ब्राह्मण) होता है क्योंकि उसके (ब्राह्मण के) चतुष्पथ चार मार्ग (धर्म अर्थ काम और मोक्ष होते हैं) किन्तु नपुंसक चतुष्पथ शब्द का अर्थ-२. श्रृंगाटक (चौराहा) होता है । चतुष्पदो शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. पद्य (श्लोक, चार पाद का पद्य) कहलाता है किन्तु पुल्लिग चतुष्पद शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. करण और २. पशु । इस तरह चतुष्पथ शब्द के दो और चतुष्पद शब्द के तीन अर्थ हुए। चतुःसम शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. चन्दन, २. अगरु (अगरबत्तो) ३. कस्तूरी और ४. कुंकुम (सिन्दूर)। चदिर शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. भुजग (सर्प) २. चन्द्र, ३. कर्पूर और ४. कुञ्जर (हाथी)। चन्दनोऽस्त्री भद्रसारे क्लीबन्तु रक्तचन्दने । चन्दिरः कञ्जरे चन्द्र चन्दनी सरिदन्तरे ॥ ५६५ ॥ चन्द्रश्चन्द्रमसिस्वर्णे काम्पिल्ये बर्हचन्द्रके। शोणमुक्ताफले द्वीपविशेष कमनीययोः ॥ ५६६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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