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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चंचल शब्द | १०३ मूल: चञ्चलं चपले क्लीबं मारुते तु पुमान् स्मृतः । चञ्चला कमला विद्युत पिप्पली पुंश्चलीषु च ॥ ५५३ ।। चञ्चा तृणमये पुंसि स्त्रियां खलु प्रकीर्तिता। चञ्चुर्नाडीच शाके स्यात् मृगेपञ्चांगुले पुमान् ॥ ५५४ ॥ स्त्रियां त्रोटौ पत्र शाक विशेषेऽपि प्रयुज्यते । हिन्दी टीका- चञ्चल शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. चपल (चञ्चल) होता है किन्तु पुल्लिग चंचल शब्द का ---१. मारुत (पवनसुत हनुमान बन्दर) अर्थ होता है। चंचला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं ---१. कमला (लक्ष्मी) २. विद्युत (बिजली, एलेक्ट्रिक) ३. पिप्पली (पीपरि) और ४. पुंश्चली (व्यभिचारिणी स्त्री) इस प्रकार चञ्चला शब्द के चार अर्थ हुए। चंचा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-तृणमय पुमान् (घास पात का बनाया हुआ पुरुषाकार) है । चञ्चु शब्द का नाडीच शाक (शाक विशेष) अर्थ होता है और २. मृग (हरिण) तथा ३. पञ्चांगुल (पांच अंगुल को) भी चञ्चु कहते हैं किन्तु इन तीनों अर्थों में इसको पुल्लिग ही माना जाता है। स्त्रीलिंग चञ्चु शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं—१. त्रोटि (चोंच ठोर) और २. पत्र शाक विशेष (नोनी शाक या पालक शाक वगैरह)। चटक: कलविके स्यात् चटका चटक स्त्रियाम् ॥ ५५५ ॥ श्यामायां पिप्पलीमूले चटुलः सुन्दरे चले ॥ ५५६ ॥ चटुः प्रियोक्तौ जठरे वतिनामासनान्तरे ।। ५५७ ॥ चणको हरिमन्थाख्य शस्ये मुन्यन्तरे स्मृतः । चण्डो दैत्य विशेषे स्यात्तितिण्ड्या यमकिकरे ॥ ५५८ ॥ हिन्दी टीका-चटक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ- १. कलविक (चकली, छोटी चिड़िया) है। चटका शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-२. चटक स्त्री (चकली) होता है। चटका शब्द का ३. श्यामा अर्थ भी होता है और ४. पिप्पलीमुल (पीपरि का मूल भाग भी) चटका शब्द का अर्थ होता है। चटुल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. सुन्दर और २. चल (चंचल चपल)। चटु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रियोक्ति (नर्म वचन, चापलूसी, खुशामद) २. जठर (उदर, पेट) और ३. वतिनाम् आसनान्तर (व्रती योगियों का आसन विशेष को भी) चटु कहते हैं। चणक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. हरिमन्थाख्यशंस्य (हरिमन्थ नाम का शस्य विशेष, चना) और २. मुन्यन्तर (मुनि विशेष)। चण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते है-१. दैत्य विशेष (चण्ड नाम का दानव विशेष) २. तितिण्डी (तेतड़ि इमली) और ३. यमकिंकर (यमराज का नौकर)। मूल : अर्थोरुके वरस्त्रीणामस्त्री चण्डातकः स्मृतः । चण्डाल: पुक्कशे क्रूरकर्मण्यपि प्रकीर्तितः ॥ ५५६ ॥ चण्डिलो नापिते रुद्रेवास्तूके स्त्री नदीभिदि । चण्डी दाक्षायणी देव्यां कोपनायामपि स्मृतः ॥ ५६० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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