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________________ ७४ : जैन पुराणकोश कमल-करसंबाधा . युगल को देखकर पार्श्वनाथ ने इससे कहा कि इस लकड़ी में जीव है इसे मत काटो। महीपाल ने इसे अपना अपमान समझा और लकड़ी को काट डाला जिससे नागयुगल भी कट गया । पार्श्वनाथ से वैरभाव रखकर वह मर गया और तपश्चरण के प्रभाव से शम्बर नामक ज्योतिर्देव हुआ। नागयुगल भी पार्श्वनाथ द्वारा सुनाये गये णमोकार मन्त्र के प्रभाव से धरणेन्द्र और पद्मावती की पर्याय में आया। एक दिन आकाशमार्ग से जाते हुए शम्बर देव का विमान रुक गया तब उसने विभंगावधिज्ञान से ध्यानस्थ पार्श्वनाथ को अपना पूर्वभव का वैरी जान लिया और उन पर सात दिन तक अनवरत उपसर्ग किये । धरणेन्द्र और पद्मावती ने इन उपसर्गों से पार्श्वनाथ की रक्षा की। अन्त में कमठ का जीव शम्बर देव भी काललब्धि पाकर शान्त हो गया। उसने सम्यग्दर्शन की विशुद्धता प्राप्त की और मरुभूति का जीव तीर्थकर पार्श्वनाथ होकर मोक्ष गया। मपु० ७३.६-१४८ कमल-चौरासी लाख कमलांग प्रमाण काल । हपु० ७.२७, मपु० ३. १०९, २२४ कमलकेतु-राम का योद्धा । इसने रावण के सेनानी खर के साथ माया युद्ध किया था। मपु० ६०.६२०-६२२ कमलगर्भ-एक निर्ग्रन्थ मुनि। इनके व्याख्यान को सुनकर गान्धारी नगरी के राजा भूति और उसके पुरोहित उपमन्यु ने पाप-कार्य का त्याग कर दिया था । पपु० ३१.४२ । कमलगुल्म-स्वर्ग में इस नाम का एक विमान । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का जीव पूर्वभव में इसी विमान में देव था। पपु० २०.१९१-१९२ कमलध्वज-समवसरण की सहस्रदलकमल के चित्र से अंकित ध्वजा । मपु० २२.२२५-२२७ कमलबन्धु-इक्ष्वाकुवंशी राजा प्रतिमन्यु का पुत्र, रविमन्यु का पिता । पपु० २२.१५५-१५९ कमलसंकुल-एक नगर । राजा सुबन्धुतिलक इसी नगर का राजा था। पपु० २२.१७३ कमलांग-चौरासी लाख नलिन प्रमाण काल । मपु० ३.२२४, हपु० ७.२७ कसला-(१) राजा विमलसेन की पुत्री । मपु० ४७.११४ (२) भरतक्षेत्र में स्थित छत्रपुर नगर के राजा प्रीतिभद्र के मंत्री 'चित्रमति की भार्या, विचित्रमति की जननी । मपु० ५९.२५५-२५६, हपु० २७.९८ (३) भद्रिलपुर के भूतिवर्मा ब्राह्मण की भार्या । मपु० ७१.३०४ (४) राजपुर के सागरदत्त सेठ की भार्या । मपु० ७५.५८७ (५) वेलन्धर नगर के स्वामी समुद्र की द्वितीय पुत्री । यह सत्यश्री की छोटी तथा गुणमाला और रत्नचूला की बड़ी बहिन और लक्ष्मण की भार्या थी। पपु० ५४.६५-६९ (६) उज्जयिनी के राजा वृषभध्वज की रानी । हपु० ३३.१०३ (७) समवसरण के चम्पक वन की वापी । हपु० ५७.३४ (८) कोशिकपुरी के राजा वर्ण तथा उसकी रानी प्रभाकरी की पुत्री। यह युधिष्ठिर से विवाही गयी थी। पापु० १३.३-७, २८-३४ कमलानना-रावण की रानी । पपु० ७७.९-१२ कमलावती-राजा विमलसेन की पुत्री। श्रीपाल ने उसके काम रूप पिशाच को दूर किया था। मपु० ४७.११४-११५ कमलोत्सवा-सिद्धार्थ नगर के राजा क्षेमंकर और उसकी रानी विमला की पुत्री और देशभूषण तथा कुलभूषण की बहिन । परिचय के अभाव में इसके दोनों भाई इस पर कामासक्त हो गये थे, किन्तु बाद में बन्दी से यह ज्ञातकर कि यह उनकी बहिन है वे दोनों परम वैराग्य को प्राप्त होकर दीक्षित हो गये थे । तपस्या से उन्होंने आकाशगामिनी ऋद्धि प्राप्त की और अनेक क्षेत्रों में उन्होंने विहार किया । पपु० ३९.१५८-१७५ कमेकुर-चोल प्रदेश का निकटवर्ती एक देश । भरतेश ने दिग्विजय के समय इस देश के राजा को वश में किया था। मपु० २९.८० कम्बर-एक ग्राम । यहाँ प्रवर वैश्य को पुत्री रुचिरा मरकर विलास नामक वैश्य के घर पर बकरी को पर्याय में आयी थी। पपु० ४१. १२८ कम्बल-(१) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३७ ।। (२) ऋक्षवान् और वातपृष्ठ पर्वतों से आगे का एक पर्वत । यहाँ भरतेश ने अपने सैनिक प्रयाण में विश्राम किया था । मपु० २९.६९ कम्बुक-एक बड़ा सरोवर । यहाँ भरतेश की सेना आयी थी। मपु० २९.५१ कम्ला-भरतेश को सेना का एक महावादित्र । पपु० ८४.१२ कयान-दारुग्राम की ऊरी नामा ब्राह्मणी का पुत्र। इसने अतिभूति की स्त्री सरसा तथा उसके धन का अपहरण किया था। यह हिंसा को धर्म माननेवाला और मुनिद्वेषी था। खोटे ध्यान से मरकर यह क्रम से अश्व तथा ऊँट होने के पश्चात् धूम्रकेश का पिंगल नामक पुत्र हुआ था। पपु० ३०.११६-१२९ करग्रह-पाणिग्रहण । विवाह में होनेवाला संस्कार । मपु० ४.११९ करण-(१) जीव के शुभाशुभ परिणाम । ये तीन प्रकार के होते है अघःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण । आसन्न भव्यात्मा इनसे मिथ्यात्व प्रकृति को नष्ट करके सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है। मपु० ९.१२० (२) इन्द्रियाँ । मपु० २.९१ करणानुयोग-श्रुतस्कन्ध के चार महाधिकारों में द्वितीय महाधिकार । इसमें तीनों लोकों का वर्णन रहता है । मपु० २.९९ करभवेगिनी-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदो। यहाँ भरतेश की सेना ने विश्राम किया था । मपु० २९.६५ कररुह-पुष्पप्रकीर्णनगर का स्वामी । धान्यग्राम के ब्राह्मण तोदन द्वारा परित्यक्त अभिमाना नामा स्त्री ने इसे अपने पति के रूप में स्वीकार किया था । पपु०८०.१५९-१६७ करवाली-रावण कालीन एक अस्त्र (छुरी)। पपु० १२.२५७ करसंबाधा-करजन्यकष्ट । मपु० २.१६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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