SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविरोम - कमठ (२) कैथफल । मपु० १७.२५२ कपिरोम करें। इसके पत्रों के स्पर्श से खुजली उत्पन्न होती है। मपु० ७४.४७३- ४७५ कपिल - (१) रोहिणी के स्वयंवर में सम्मिलित वेदसामपुर का राजा । कृष्ण जरासन्ध युद्ध में इस नृप ने कृष्ण की ओर से भाग लिया था । हपु० २४.२६-२७, ३१.३०, ५०.८२ (२) धातकीखण्ड के भरत क्षेत्र का नारायण । यह एक समय चम्पा नगरी के बाहर आये हुए मुनि की वन्दना के लिए आया था । वहाँ इसने विष्णु के शंख की महाध्वनि सुनकर शंख बजानेवाले, कृष्ण से मिलने की मुनि से इच्छा प्रकट की थी। मुनि ने इसे समझाया था कि तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायणों का परस्पर मिलन नहीं होता, केवल चिह्न मात्र से ही उनसे मिलन संभव है । इसके पश्चात् शंखध्वनि के माध्यम से ही इसने कृष्ण से भेंट की थी । हपु० ५४.५६-६१, पापु० २२.५-१३ (३) वसुदेव तथा कपिला का पुत्र ० २४.२६-२७, ४८.५८ (४) मरीचि का शिष्य । मपु० ७४.६६ दे० मरीचि I (५) मगधदेश में स्थित अचल ग्रामवासी धरणीजट ब्राह्मण की दासी का पुत्र । इसे पिता ने घर से निकाल दिया था, अतः यह रत्नपुर चला गया और वहाँ सत्यकि विप्र की कन्या सत्यभामा से इसका विवाह हुआ। इसके पश्चात् इस नगर से भी निकाल दिये जाने पर यह संसार में भ्रमण करता रहा। अन्त में मरकर यह कौशिक ऋषि का मृगशृंग नामक पुत्र हुआ । मपु० ६२.३२५-३३१, पापु० ४.१९४ २०३, २२०-२२१ (५) अयोध्या निवासी एक ब्राह्मण काली नामा ब्राह्मणी इसकी भार्या थी । मरीचि का जीव ब्रह्म कल्प से च्युत होकर जटिल नाम से इन्हीं का पुत्र हुआ था । मपु० ७४.६८, वीवच० २.१०५-१०८ (७) वल्कलधारी तापस । पपु० ४.१२६-१२७ (८) अरुणग्राम का निवासी एक क्रोधी ब्राह्मण । इसने वनवास के समय उसके यहाँ आये राम, लक्ष्मण और सीता को अपने घर से निकाल दिया था। इस पर लक्ष्मण को क्रोध आ गया और जैसे ही वह इसे दण्ड देने लगा राम ने उसे रोक दिया। तब इसने आत्मनिन्दा की और अन्त में यह दिगम्बर साधु हो गया । पपु० ३५.७-८, १३-१५, २५-२९, ९७-१०२, १७६-१९२ कपिलक- कपिल का अपरनाम । मपु० ६२.३४३ कपिलश्रुति - वेदसामपुर का राजा, कपिला का जनक । वसुदेव ने इसे युद्ध में जीतकर उसकी पुत्री कपिला के साथ विधिपूर्वक विवाह किया था । हपु० २४.२६ युद्ध कपिला - (१) वेदसामपुर के राजा कपिलश्रुति की पुत्री । वसुदेव ने में इसके पिता को जीतकर विधिपूर्वक इसे विवाहा था । हपु० २४.२६ (२) सत्यभामा के भवान्तर से सम्बद्ध भद्रिलपुर नगर के मरीचि ब्राह्मण की भार्या, मुण्डशलायन नामक ब्राह्मण की जननी । हपु० ६०. १०-११ १० Jain Education International जैन पुराणकोश : ७३ कपिशीर्षक - इस नाम के धनुष । अकंकीर्ति और जयकुमार के बीच हुए युद्ध में इन धनुषों का प्रयोग हुआ। मपु० ४४. १७४ कपिष्ट- राजा भीमवर्मा के वंश (हरिवंश) का एक श्रेष्ठ नृप । अजातशत्रु इसी का पुत्र था । हपु० ६६.५ कपिष्टल - (१) भार्गवाचार्य की वंश परम्परा में हुए आचार्यों में एक आचार्य । यह वामदेव आचार्य का शिष्य था तथा जगत्स्थामा इसका शिष्य था । पु० ४५.४६ (२) ब्राह्मण गौतम का पिता, अनुन्धरी का पति । मपु० ७०. १६०-१६१ कपीवतीपूर्वी मध्य आखण्ड की गंगा और गौतमी के साथ वर्णित एक नदी भरतेश की सेना यहाँ ठहरी थी। म० २९.४९, ६२ कबरी - सौन्दर्य वृद्धि के लिए स्त्रियों द्वारा की जानेवाली विशेष प्रकार की केशरचना । मपु० १२.४१, ३७.१०८ कमठ -- भरतक्षेत्र के सुरम्य देश में पोदनपुर नगर के निवासी विश्वभूति ब्राह्मण तथा उसकी पत्नी अनुन्धरी का बड़ा पुत्र । मरुभूति इसका छोटा भाई था। इन दोनों भाइयों में कमठ की स्त्री का नाम वरुणा तया मभूति की मी का नाम वसुन्धरी या दोनों भाई पोदनपुर नगर के राजा अरविन्द के मन्त्री थे। इसने अपनी भाभी वसुन्धरी के निमित्त अपने भाई मरभूति को मार डाला था। मरुभूति मरकर मलय देश के कुब्जक वन में वज्रघोष नामक हाथी हुआ और इसकी पत्नी वरुणा कुब्जक वन में ही हथिनी हुई। यह मरकर कुक्कुट साँप हुआ, इसने पूर्व पर्याय के वर के कारण हाथी को काटा जिससे मरकर हाथी सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ । यह कुक्कुट साँप भी मरकर धूमप्रभा नरक में उत्पन्न हुआ । स्वर्ग से चयकर मरुभूति का जीव विजया पर्वत में त्रिलोकोत्तम नगर के राजा विद्य ुद्गति का रश्मिवेग नामक पुत्र हुआ और यह धूमप्रभा नरक से निकलकर अजगर हुआ। रश्मिवेग मुनि हो गया था । उस अवस्था में अजगर ने रश्मिवेग को देखा और पूर्व वैर वश क्रुद्ध होकर उसे निगल गया । इस तरह मरकर रश्मिवेग अच्युत स्वर्ग के पुष्पक विमान में देव हुआ । अजगर भी मरकर छठे नरक में उत्पन्न हुआ । स्वर्ग से चयकर रश्मिवेग का जीव राजा वज्रवीर्थ और रानी विजया का वज्रनाभि नामक पुत्र हुआ और कमठ का जीव छठे नरक से निकलकर कुरंग नामक भील हुआ । वचनाभि को आतापन योग में स्थित देखकर पूर्व वैर वश कमठ के जीव कुरंग भील ने वज्रनाभि पर भयंकर उपसर्ग किया । इससे वज्रनाभि मरकर अहमिन्द्र हुआ और यह कमठ का जीव कुरंग भील नारकी हुआ । स्वर्ग से चयकर मरुभूति का जीव राजा वज्रबाहु और प्रभंकरी का आनन्द नामक पुत्र हुआ तथा कमठ का जीव नरक से निकलकर सिंह हुआ। इस पर्याय में भी कमठ के जीव सिंह ने मरुभूति के जीव आनन्द को उसकी मुनि अवस्था में कण्ठ पकड़ कर मार दिया था । आनन्द आनत स्वर्ग में इन्द्र हुआ और सिंह महीपाल नगर का राजा महीपाल हुआ। स्वर्ग से चयकर मरुभूति का जीव पार्श्वनाथ हुआ। महीपाल रानी के वियोग से पंचाग्नि तप करने लगा था । वह अग्नितप के लिए लकड़ी काट रहा था तब लकड़ी में नाग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy