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________________ ४८४ : जैन पुराणकोश हुताशनशिख-हेमांगव की वेतरतीव-असमान रचना । नारकियों के शरीर की रचना ऐसी हेमकन्छ–दशार्ण देश का एक नगर । राजा चेटक की तीसरी पुत्री ही होती है । मपु० १०.९५, हपु० ४.३६८ सुप्रभा इसी नगर के राजा दशरथ से विवाही गयी थी । पपु० ७५. हुताशनशिख-ज्योतिःपुर नगर का राजा । ह्री इसकी रानी और सुतारा १०-११ पुत्री थी । पपु० १०.२-३ हेमकूट-विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी का चालीसवाँ नगर। मपु० हूहू-(१) काल का एक प्रमाण-हूआँग प्रमित काल के चौरासी लाख १९.५१-५३ से गणित होने पर प्राप्त संख्यात्मक काल । मपु० ३.२२५ हेमगर्भ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८१ (२) गन्धर्व व्यन्तर देवों की एक जाति विशेष के देव । पपु० । हेमगौर-रावण का अश्वरथी एक सामन्त । पपु० ५७.५५ १७.२७९, २१.२७ हेमचूला-अयोध्या के राजा विजय को रानो। सुरेन्द्र-मन्यु इसका पुत्र हूलग-काल का एक प्रमाण-हाहा प्रमित काल के चौरासी से गुणित था। पपु० २१.७३-७५ करने पर प्राप्त संख्यात्मक काल । मपु० ३.२२५ हेमजाल-चक्रवर्ती भरतेश का स्वर्ण तारों से निर्मित एक आभूषण-जाल । हृदयधर्मा-सुग्रीव की तीसरी पुत्री। यह और इसकी बड़ी बहिन मपु० ३०.१२७ हृदयावली दोनों राम के गुणों को सुनकर स्वयं वरण की इच्छा से हेमनाभ-अयोध्या नगरी का राजा। इसकी रानी का नाम धरावतो उनके पास आयी थीं । पपु० ४७.१३६-१३७ था। मधु और कैटभ दोनों इसके पुत्र थे । इसने मधु को राज्य देकर हृदयवेगा-महेन्द्रनगर के राजा महेन्द्र की रानी। इसके अरिंदम आदि तथा कैटभ को युवराज बनाकर जिनदीक्षा धारण कर ली थी। हपु० सौ पुत्र तथा अंजनासुन्दरी नाम की एक पुत्री थी। मपु० १५.१४ ४३.१५९-१६० हेमपाल-रावण का पक्षधर एक राजा। यह रावण के साथ राजा इन्द्र हृदयसुन्दरो-(१) हिडिम्ब वंश के राजा सिंहघोष और रानी सुदर्शना को जोतने के लिए गया था । पपु० १०.३७ की पुत्री । त्रिकूटाचल का राजा मेघवेग इसे चाहता था किन्तु वह हेमपुर-विदेहक्षेत्र का एक नगर । पपु० ६.५६४ दे० हेम इसे प्राप्त नहीं कर सका था। निमित्तज्ञानियों ने विंध्याचल पर गदा- हेमपूर्ण-एक राजा । इसने रावण को भेंट देकर संतुष्ट किया था । पपु० विद्या की सिद्धि करनेवाले के मारनेवाले को इसका पति बताया था। १०.२४ अन्त में भीम पाण्डव के साथ इसका विवाह हुआ। हपु० ४५.११४- हेमप्रभ-जरासन्ध का पक्षधर एक राजा । मपु० ७१.७९ ११८ हेमबाहु-चक्रवर्ती सनत्कुमार का जीव-गोवर्धन ग्राम का एक गृहस्थ । (२) रथनूपुर नगर के सहस्रार विद्याधर की रानी। विद्याधरों के यह आस्तिक और परम उत्साही जिनेन्द्र-भक्त था। मरकर यह यक्ष राजा इन्द्र की यह माता थी । पपु० १३.६५-६६ हुआ । पपु० २०.१३७-१४६, १५३ हृदयावली-सुग्रीव की दूसरी पुत्री । पापु० ४७.१३७ दे० हृदयधर्मा हेममाला-स्वर्ण निर्मित माला । इसे पुरुष पहिनते थे । चक्रवर्ती भरतेश हृविक-राजा शान्तन का पौत्र और राजा विषमित्र का पुत्र । इसके को यह माला प्रभासदेव ने भेंट में दो थो। इसे वर्तमान की स्वर्णदो पुत्र थे-कृतिधर्मा और दृढ़धर्म । हपु० ४८.४०-४२ जंजीर से समीकृत किया जा सकता है । मपु० ३०.१२४ हृषीकेश-(१) राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३६ हेमरथ-(१) अश्वपुर नगर का राजा। यह दृढ़रथ द्वारा मारा गया (२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । पपु० था। मरकर यह कैलास पर्वत को पर्णकान्ता नदी के किनारे सोम २५.१३४ नामक तापस हुआ था। मपु० ६३.२६५-२६७, पापु० ४.२७ हृष्यका-संगीत के मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना । हपु० १९.१६४ (२) पोदनपुर नगर के राजा उदयाचल और रानी अहंच्छी का हृष्यकान्ता-संगीत की एक मूच्छना । हपु० १९.१६८ पुत्र । इसकी जिनपूजा में विभोर होकर महारक्ष नृत्य करके अपने हेड-राम का पक्षधर योद्धा । पपु० ५८.२१ पुण्यबन्ध के फलस्वरूप मरकर यक्ष हुआ। पपु० ५.३४६-३५० दे० हेतु-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५ १४३ महारक्ष हेतगुजा-राम के समय का एक हस्त वाद्य । यह मांगलिक अवसरों (३) इक्ष्वाकुवंशो राजा चतुमुख का पुत्र और शतरथ का पिता । पर बजाया जाता था। पपु० ५८.२८ पपु० २०.१५३ हेतुविचय-धर्मध्यान के दस भेदों में दसवाँ भेद-तक का अनुसरण और हेमवती-(१) विजया पर्वत को दक्षिणश्रेणी के असुरसंगीत नगर के स्याद्वाद आश्रय लेकर समीचीन मार्ग का ग्रहण करना अथवा उसका राजा दैत्य नाम से प्रसिद्ध विद्याधर मय की स्त्री। रावण की रानी चिन्तन करना । हपु० ५६.५० मन्दोदरी इसी की पुत्री थी । पपु०८.१-३, ७८ हेम-हेमपुर नगर का एक विद्याधर राजा । भोगवती इसकी रानी और (२) मृणालकुण्ड नगर के राजा वचकम्बु की रानी । शम्भु इसका चन्द्रवती पुत्री थी। विद्याधर माली इसका जामाता था । पपु० ६. पुत्र था । पपु० १०६.१३३-१३४ ५६४-५६५ हेमांगव-(१) वाराणसी नगरी के राजा अकम्पन का पुत्र । सुकेतुश्रो Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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