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________________ ४८२ : जैन पुराणकोश हिंसानंद-हिरण्यनाभ व्यवरोपण करना, कराना या करते हुए की अनुमोदना करना । मपु० २.२३, पपु० ५.३४१, हपु० ५८.१२७-१२९ हिंसानंद-रौद्रध्यान के चार भेदों में प्रथम भेद-हिंसा में आनन्द मनाना जीवों को मारने और बाँधने आदि को इच्छा रखना, उनके अंगउपांगों को छेदना, सन्ताप देना, कठोरदण्ड देना आदि । ऐसे कार्यों को करनेवाला पुरुष अपने आपका घात पहले करता है पीछे अन्य जीवों का घात करे या न करे । क्रूरता, शस्त्रधारण, हिंसाकथाभिरति ये रौद्रध्यान के चिह्न हैं। मपु० २१.४५-४९, हपु० ५६. १९, २२ हिडम्ब-रावण का पक्षधर एक राजा । पपु० १०.३६ हिडिम्बा-हिडिम्ब वंश के राजा सिंहघोष और उसकी रानी लक्ष्मणा की पुत्री । इसे पाण्डव भीम ने विवाहा था । घुटुक इसका पुत्र था। हपु० ४५.११४-११८. पापु० १४.२७-२९, ६३-६६, २०.२१८ २१९ हिण्डिव-एक देश । लवणांकुश ने यहाँ के राजा को पराजित किया था। पपु० १०१.८२ हितंकर-काकन्दी नगरी के राजा रतिवर्धन और रानी सुदर्शना का कनिष्ठ पुत्र और प्रियंकर का छोटा भाई । ये दोनों भाई मुनि दीक्षा लेकर ग्रैवेयक में उत्पन्न हुए तथा वहाँ से च्युत होकर लवण और अंकुश हुए । पपु० १०८.७, ३९, ४६ हित-महारक्ष विद्याधर के पूर्वभव का जीव-पोदनपुर नगर का एक सामान्य नागरिक । इसकी स्त्री माधवी और पुत्र प्रीति था। यह मरकर यक्ष हुआ । पपु० ५.३४५, ३५० हितकर-संजयन्त मुनिराज के पूर्वभव का जीव-शकट ग्राम का एक भक्त । पपु० ५.३५-३६ हिम-छठी पृथिवी के तीन इन्द्रक बिलों में प्रथम इन्द्रक बिल । हपु० ४.८४ हिमगिरि-(१) हरिवंशी एक राजा । यह हरि का पौत्र, महागिरि का पुत्र और वसुगिरि का पिता था। मपु० ६७.४२०, पपु० २१.७८, हपु० १५.५८-५९ (२) विजयाध पर्वत की गुहा । रश्मिवेग मुनि को अजगर ने इसी गुहा में निगला था । मपु० ७३.२६-३० । (३) गान्धार देश की पुष्कलावती नगरी के राजा इन्द्रगिरि और रानी मेरुमती का पुत्र । गांधारी इसकी बहिन थी। कृष्ण इसे मारकर गान्धारी को हर लाये थे तथा उन्होंने उसे विवाह लिया था। हपु०४४.४५-४८ हिमपुर-विजयाध पर्वत की दक्षिण श्रेणी का उन्तालीसवाँ नगर । हपु० २२.९८ हिममुष्टि-वसुदेव तथा रानी मदनवेगा के पुत्रों में तीसरा सबसे छोटा पुत्र । दृढ़मुष्टि और अनावृष्टि का यह छोटा भाई था। हपु. ४८.६१ हिमवत्-(१) भरतक्षेत्र का प्रथम कुलाचल । इसकी ऊँचाई सौ योजन, गहराई पच्चीस योजन, और चौड़ाई एक हजार बाबन योजन तथा बारह कला प्रमाण है । इसकी प्रत्यंचा चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस योजन तथा कुछ कम एक कला प्रमाण, बाण एक हजार पाँच सौ अठहत्तर योजन अठारह कला प्रमाण, चूलिका पाँच हजार दो सौ तीस योजन कुछ अधिक सात कला प्रमाण तथा पूर्व पश्चिम दोनों भुजाओं का विस्तार पाँच हजार तीन सौ पचास योजन साढ़े पन्द्रह भाग है। यह स्वर्णमय है। इसके ग्यारह कूट है-१. सिद्धायतनकट २. हिमवत्कूट ३. भरतकूट ४. इलाकुट ५. गंगाकूट ६. श्रीक्ट ७. रोहितकट ८. सिन्धुकूट ९. सुरादेवीकूट १०. हैमवतकूट ११. वैश्रवणकूट । ये कूट मूल में पच्चीस योजन, मध्य में पौने उन्नीस योजन और साढ़े बारह योजन विस्तृत है । हपु० ५.४५-५६ (२) इसी कुलाचल का दूसरा कूट । हपु० ५.५३ (३) समुद्रविजय का भाई। इसके विद्य त्प्रभ, माल्यवान् और गन्धमादन ये तीन पुत्र थे । हपु० ४८.४७ हिमवान--(१) शौर्यपुर के राजा अन्धकवृष्णि और रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में दूसरा (हरिवंशपुराण के अनुसार चौथा) पुत्र । इसकी रानी धृतीश्वरा और विद्युत्प्रभ, माल्यवान तथा गन्धमादन ये तीन पुत्र थे। मपु० ७०.९६, ९८, हपु० १८.९-१०, १२-१३, ४८.४७ दे० हिमवत्-३ (२) भरतक्षेत्र के हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, महामेरु, नील, रुक्मी और शिखरी इन सात कुलाचलों में प्रथम कुलाचल । मपु० ६३.१९२-१९३, पपु० १०५.१५७-१५८, दे० हिमवत्-१ (३) राम का पक्षधर एक गजवाही योद्धा राजा । पपु० ५८.८ (४) इस नाम के पर्वत का इसी नाम का एक देव । चक्रवर्ती भरतेश ने दिग्विजय के समय इसे पराजित किया था। मपु० ३२.१९८ (५) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३५ हिरण्यकशिपु-इक्ष्वाकुवंश का एक राजा । यह राजा सिंहदमन का पुत्र तथा पुंजस्थल राजा का पिता था। पपु० २२.१५८-१५९ हिरण्यकुम्भ-एक मुनि । विद्याधर अमितगति के पिता ने उसे राज्य देकर इन्हीं से दीक्षा ली थी। हपु० २१.११८-११९ हिरण्यगर्भ-(१) अयोध्या के राजा सुकोशल और रानी विचित्रमाला का पुत्र । इसके गर्भ में आने पर इसको माता ने स्वण के समान सुन्दर हो जाने से इसका यह नाम रखा गया था। राजा हरि की पुत्री अमृतवती इसकी रानी थी । यह विद्वान् सुन्दर और धनी था। बालों में एक सफेद बाल देखकर उत्पन्न हुए वैराग्य से इसने नघुष नामक पुत्र को राज्य देकर विमल मुनि से दोक्षा धारण कर ली था। पपु० २२.१०३-११२ (२) भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३३, २५. ११८, पपु० ३.१५६, हपु०८.२०६ हिरण्यनाभ-अरिष्टपुर के राजा रुधिर और रानी मित्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह नीतिज्ञ, रण-निपुण और कलाओं का पारगामी था। रोहिणी इसकी बहिन और श्रीकान्ता रानो थी। इसका पुत्री पद्मावती के Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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