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________________ अमृतात्मा-अम्मोद 1 अमृतात्मा सोधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम ० २५.१२० अमुतार - प्रथम बलभद्र अचल के पूर्वजन्म के दीक्षागुरु । पपु० २०.२३४ अमृतोद्भव - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५. १३० अमृत्यु --- सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३० अमुष्ट राम का सहायक, शाईलरथवाही, विद्याधरों का स्वामी एक योद्धा । पपु० ५८.५-७ अमृतस्वर - ( १ ) पद्मिनी नगरी के राजा विजयपर्वत का शास्त्रज्ञान में निपुण और राजकर्त्तव्य में कुशल दूत । इसकी भार्या उपयोगा से उदित और मुदित नाम के दो पुत्र हुए थे 1 पपु० ३९.८४-८६ (२) लवकुश के दीक्षागुरु प० ११५.५८-५९ अमेय - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५० अमेयात्मा - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१०१ अमोघ – (१) कभी व्यर्थ नहीं होनेवाला भरतेश का शीघ्रगामी दिव्य शर । मपु० २८.११९-१२०, ३७.१६२, १५० १२.८४, हपु० ११.६ (२) बलभद्र राम को प्राप्त चार महारत्नों में एक रत्न । मपु० ६८.६७३-६७४ (३) रुचकवर नाम के तेरहवें द्वीप में स्थित रुचकवर पर्वत की दशिण दिशा के आठ कूटों में प्रथम कूट । यह स्वास्थिता देवी की निवासभूमि है। पु० ५.१९९, ७०८ (४) अधोग्रैवेयक के तीन इन्द्र क विमानों में दूसरा इन्द्रक विमान । हपु० ६.५२-५३ (५) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०१ अमोधक - समसमरणभूमि के तीसरे कोट के उत्तर दिशावर्ती द्वार के आठ नामों में एक नाम । हपु० ५७.५६, ६० दे० आस्थानमंडल अमोघजिह्न - एक निमित्तज्ञानी मुनि । इन्होंने पोदनपुर के राजा के मस्तक पर सातवें दिन व्रजपात होने की भविष्यवाणी की थी । मपु० ६२.१७३, १९६, २५३ अमोघवर्शन - चन्दनवन नगर का राजा इसकी रानी चारुमति और चारुचन्द्र पुत्र था । कौशिक ऋषि के आक्रोश से भयभीत होकर यह सपत्नीक तापस हो गया था। तापस वेष में ही ऋषभदत्ता नाम की इसे एक पुत्री हुई थी। यह पुत्री प्रसूति के बाद मरकर ज्वलनप्रभबल्लभा नाम की नागकुमारी हुई । हपु० २९.२४-५० अमोघमुखी - शक्ति | लक्ष्मण को प्राप्त सात रत्नों में एक रत्न । मपु० ६८.६७५-६७७ अमोधमूला - श्रीकृष्ण को प्राप्त सात रत्नों में इस नाम की शक्ति । हपु० ५३.४९-५० अमोघमा - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५. १८४ , अमोघविजया मनोनुकूल रूप बदलने में सहायक देवों को भी भयोत्पादिनी एक विद्या । यह विद्या नागराज ने रावण को दी थी, जिससे रावण ने लक्ष्मण को आहत किया था । पपु० ९.२०९-२१४ Jain Education International जैन पुराणकोश : ३१ अमोषशर एक ब्राह्मण इराकी मित्ररथा नाम की पतिव्रता-सती स्त्री थी । वह विधवा तथा दुःखिनी होकर हेमांग ब्राह्मण के घर में रहती थी और वहाँ अपने पति के गुणों का स्मरण करती रहती थी । पपु० ८०.१६८-१६९ अमोघशासन -सोधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५. १८४ अमोघाज्ञ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८४ अमोह सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। म० २५.२०४ अम्बरचारण- आकाश में निराबाध गमन कराने में समर्थ एक ऋद्धि । मपु० २.७३ अम्बरतिलक - (१) विदेह सेना के चारणचरित वन का एक पर्वत । मपु० ६.१३१ (२) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक नगर । मपु० १९. ८२, ८७ } अम्बविद्युत् दशानन का सहयोगी एक विद्यावर पु० ८.२६९-२७० अम्बष्ठ – राजा ओष्ठिल की शासनभूमि । पपु० ३७.२३ अम्बा कुरुवंशी राजा बुतराज की तीन पत्नियों में तीसरी पत्नी । विदुर इसी रानी के पुत्र थे । हपु० ४५.३३-३४ अम्बालिका कुरुवंशी राजा धृतराज की तीन रानियों में दूसरी रानी । पाण्डु इसी रानी का पुत्र था। हपु० ४५.३३-३४ अम्बिका (1) कुरुवंशी राजा धृतराज की तीन रानियों में प्रथम रानी, धृतराष्ट्र की जननी । हपु० ४५.३३-३४ (२) एक शासन देवी । हपु० ३७.७ (३) चक्रपुर के राजा प्रख्यात की रानी, पाँचवें नारायण पुरुषसिंह की जननी । पपु० २०.२२१-२२६ (४) विद्याधर सिंहसेन की पत्नी, सुमित्र केशव नारायण की जननी । मपु० ६१.७०-७१ - अम्बुज - कृष्ण का शंख। यह प्रचण्ड आवाज करता है। कृष्ण ने इसे महानागशय्या पर आरूढ़ होकर बजाया था । हपु० ५५.६०-६१ अम्बुदावर्त - भगली देश का पर्वत । यहाँ चारण ऋद्धिधारी श्रीधर्म और अनन्तवीर्यं मुनियों का समागम हुआ था। अपने भाई शतबली द्वारा निर्वासित हरिवाहन इसी पर्वत पर इन मुनियों से दीक्षा लेकर सल्लेखना द्वारा ऐशान स्वर्ग में देव हुआ था । हपु० ६०.१९-२१ अम्बुवाहरय — राम के भाई भरत के साथ दीक्षा लेनेवाला एक नृप । पपु० ८८.१ ३ अम्बेणा-भरत चक्रवर्ती की विजय यात्रा में पड़नेवाली दक्षिण दिशा की एक नदी । मपु० २९.८७ अम्भोजकाण्ड - राम का शय्या गृह । पपु० ८३.१० अम्बोजमाला - पोदनपुर के राजा व्यानन्द की भार्या, विजया की जननो । पपु० ५.६१ अम्भोद - भानुरक्ष के पुत्रों द्वारा बसाया गया नगर, राक्षसों की निवासभूमि । पपु० ५.३७३ ३७४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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