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________________ ४५६ : जैन पुराणकोश (४) जम्बूद्वीप के वत्सदेश की कौशाम्बी नगरी के राजा सुमुख का मंत्री । इसने राजा का वनमाला से मिलन कराया था । हपु० १४.१-२, ६, ५३-९५ (५) एक मुनि । इन्होंने वसिष्ठ मुनि को अपने पास छः मास रखकर मुनि-चर्या सिखाई थी। हपु० २३.७३ (६) राजा अकम्पन की पुत्री सुलोचना की धाय । यह सुलोचना का लालन-पालन करती थी। मपु. ४३.१२४-१२७, १३६-१३७, पापु० ३.२६ (७) राजा अकंपन का एक मंत्री। इसने सुलोचना का परिचय स्वयंवरविधि से करने का राजा से आग्रह किया था। मपु० ४३. १२७, १८२, १९४-१९७, पपु० ३.३२, पापु० ३.३९-४० (८) भरतक्षेत्र के विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित रथनूपुर नगर के राजा ज्वलनजटी का मंत्री । इसने राजा की पुत्री स्वयंप्रभा का विवाह करने के लिए राजा से स्वयंवर विधि का प्रस्ताव रखा था जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार किया था। मपु० ६२.२५-३०, ८१-८२, पापु० ४.११-१३, ३७-३९ (९) पोदनपर के राजा श्रीविजय का मंत्री। इसने राजा को मरने से बचाने के लिए पानी के भीतर पेटी में बन्द रखने का उपाय बताया था । पापु० ४.९६-९७, ११४ (१०) जम्बूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा दृढ़रथ की रानी । वरसेन इसका पुत्र था। मपु० ६३.१४२-१४८, पापु० ५.५३-५७ (११) विदेहक्षेत्र में गन्धिल देश के पाटलीग्राम के वणिक् नागदत्ता की स्त्री। इसके नन्द, नन्दिमित्र, नन्दिषण, वरसेन और और जयसेन ये पांच पुत्र और मदनकान्ता तथा श्रीकान्ता ये दो पुत्रियाँ थीं । मपु० ६.१२६-१३० (१२) विदेहक्षेत्र में गन्धिल देश के पलाल पर्वत ग्राम के देवलिग्राम पटेल की स्त्री । धनश्री इसकी पुत्री थो। मपु० ६.१३४-१३५ (१३) तीर्थकर पुष्पदन्त का पुत्र । पुष्पदन्त ने इसे ही राज्य भार सौंपकर दीक्षा ली थी । मपु० ५५.४५ (१४) अपराजित बलभद्र और रानी विजया को पुत्री । इसने एक देवी से अपने पूर्वभव सुनकर सुव्रता आयिका के पास सात सौ कन्याओं के साथ दीक्षा ले ली थी। आयु के अन्त में यह आनत स्वर्ग के अनुदिश विमान में देव हुई । मपु० ६३.२-४, १२-२४ (१५) कौशाम्बी नगरी का एक सेठ । इसकी स्त्री सुभद्रा थी। मपु०७१.४३७ (१६) साकेत नगर के राजा दिव्यबल की रानी। हिरण्यवती इसकी पुत्री थी । मपु० ५९.२०८-२०९ (१७) एक गणनी। धातकोखण्डद्वीप के तिलकनगर की रानी सुवर्णतिलका ने इन्हीं से दीक्षा ली थी। मपु० ६३ १७५ (१८) रावण का सारथी । रावण ने अपना रथ इससे इन्द्र के समक्ष ले जाने को कहा था । पपु० १२.३०५-३०६ सुमति-सुमित्र (१९) महेन्द्र विद्याधर का मंत्री । इसने रावण को अंजना का पति होने योग्य नहीं बताया था । पपु० १५.२५, ३१ (२०) एक राजा । यह भरत के साथ दीक्षित हो गया था। पपु०८८.१-२, ४ सुमनस्-(१) नन्दीश्वर द्वोप के उत्तरदिशा संबंधी अंजनगिरि की दक्षिण दिशा में स्थित वापी । हपु० ५.६६४ (२) ऊर्ध्व ग्रैवेयक का प्रथम इन्द्रक विमान । हपु० ५.५३ सुमनार-एक मुनि । सद्भद्रि लपुर नगर के राजा मेघरथ के ये दीक्षागुरु थे । ये पांच वर्ष तक विहार करते रहे और अन्त में राजगृह नगर से मोक्ष गये । हपु० १८.११२-११६, ११९ सुमना-विजया, पर्वत की दक्षिणश्रेणी में कनकपुर नगर के राजा हिरण्याभ की रानी। इसके पुत्र का नाम विद्य त्प्रभ था। पपु० १५.३७-३८ सुमहानगर-तीर्थङ्कर विमलनाथ के पूर्वभव की राजधानी । पपु. २०.१४, १७ सुमागधी-भरतक्षेत्र के पूर्वी मध्य आर्यखण्ड की एक नदी । दिग्विजय के समय भरतेश की सेना यहाँ आयी थी । मपु० २९.४९ सुमात्रिका-एक नगर । यह तीर्थङ्कर धर्मनाथ के पूर्वभव की राजधानी समाविका थी। पपु० २०.१४, १७ सुमाया-एक यक्षिणी । ब्राह्मण कपिल को इसने धन प्राप्ति का उपाय बताया था । पपु० ३५.७२-८१ दे० कपिल-८ सुमाली–अलंकारपुर के राजा सुकेश और रानी इन्द्राणी का दूसरा पुत्र । माली का यह छोटा भाई तथा माल्यवान् का अग्रज था। इसका विवाह प्रीतिकूटपुर के राजा प्रीतिकान्त की पुत्री प्रीति से हुआ था। यह इन्द्र विद्याधर से हारकर अलंकारपुर नगर (पाताल लंका) में रहने लगा था। प्रीतिमति रानी से इसका रत्नश्रवा नाम का पुत्र यहीं हुआ था। पपु० ६.५३०-५३१, ५६६, ७.१३३ सुमित्र-(१) कुरुवंशी राजा सागरसेन का पुत्र और राजा वप्रभु का पिता । हपु० १८.१९ । (२) सौर्यपुर नगर के एक आश्रम का तापस । सोमयशा इसकी पत्नी थी। यह उच्छवृत्ति से जीविका चलाता था । उच्छवृत्ति के लिए पुत्र को अकेला छोड़ जाने से इसके पुत्र को जृम्भक देव उठा ले गया था। जो नारद नाम से विख्यात हुआ। हपु० ४२.१४-२७, दे० जम्भक (३) हरिवंश में हुआ कुशाग्रपुर नगर का राजा । इसक रानी पद्मावती थी। ये दोनों तीर्थङ्कर मुनिसुव्रत नाथ के माता-पिता थे। मपु० ६७.२०-२१, २६-२८, पपु० २०.५६, २१.१०-२४, हपु० १५.९१-९२, १६.१७ (४) वसुदेव और उनकी रानी मित्रश्री का पुत्र । हपु० ४८.५८ (५) कृष्ण की पटरानी जाम्बवती के पूर्वभव का पति । हपु. ६०.४३-४४ (६) विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश की पुष्डरोकिणी नगरी का Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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