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________________ सुमित्रवत्त- सुमेधा राजा । यह प्रियमित्र का पिता था। मपु० ७४.२३५ - २३७, वीवच० ५ ३५-३७ ( ७ ) ऐरावतक्षेत्र में शतद्वारपुर के निवासी प्रभव का मित्र । इसका विवाह म्लेच्छ राजा द्विरदंष्ट्र की पुत्री वनमाला से हुआ था। इसने अन्त में मुनि दीक्षा ले ली थी तथा आयु के अन्त में मरकर ऐशान स्वर्ग में देव हुआ। वहाँ से चयकर यह मथुरा नगरी का राजा मधु हुआ । पपु० १२.२२-२३, २६-२७, ५२-५४ (८) कौशल देश की साकेतपुरी, पदमपुराण के अनुसार आवस्ती का राजा और चक्रवर्ती मघवा का पिता । मपु० ६१.९१-९३ पपु० २०.१३१-१३२ (९) छठे बलभद्र नन्दिमित्र के गुरु । पपु० २०.२४६-२४७ (१०) भरत के साथ दीक्षित एक नृप । पपु० ८८.१-६ (११) मन्दिरपुर नगर का नृप। इसने तीर्थकर शान्तिनाथ को आहार दिया था । मपु० ६३.४७८-४७९ (१२) सुमीमा नगरी के राजा अपराजित का पुत्र म० ५२. ३, १२ (१३) राजगृह नगर का राजा । राजसिंह से हारने के पश्चात् यह पुत्र को राज्य देकर दीक्षित हो गया था । निदानपूर्वक मरकर यह माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुआ । मपु० ६१.५७-६५ (१४) सुजन देशासंबंधी हेमाभनगर के राजा दृढमिन का तीसरा पुत्र । यह गुणमित्र और बहुमित्र का अनुज तथा था। इसकी हेमाभा बहिन थी, जो जीवन्वर के थी । मपु० ७५.४२०-४३० धनमित्र का अग्रज साथ विवाही गयी सुमित्रवत्त - पद्मखण्डनगर का एक वणिक् । लौटने पर श्रीभूति ने इसे ठगना चाहा किन्तु प्रार्थना करने पर रानी रामदत्ता ने युक्तिपूर्वक इसके रत्न इसे दिलवा दिये थे । यह रानी का पुत्र होने का निदान बाँधकर मरा था जिसके यह रानी रामदत्ता का सिंहचन्द्र नाम का पुत्र हुआ । हपु० २७.२० ४६, ६४ दे० श्रीभूति सुमित्रवत्तिका इसका अपर नाम सुमित्रा था। यह पद्मपुर नगर सेठ सुदत्त अपर नाम सुमित्रदत्त की स्त्री थी । भद्रमित्र इसका पुत्र था। यह मरकर व्याघ्रो हुई थी। पूर्व पर्याय के वैरवश इस पर्याय में इसने पुत्र को तथा हरिवंशपुराण के अनुसार पति को खा लिया था । मपु० ५९.१४८, १८८-१९२, हपु० २७.२४, ४५ दे० भद्रमित्र सुमित्रा - (१) चारुदत्त के मामा सर्वार्थ की स्त्री । मित्रवती इसकी पुत्री थी । हपु० २१.३८ (२) एक दिक्कुमारो देवी । हपु० ५.२२७ (३) जम्बूद्वीप सबंधो अरिष्टपुर नगर के राजा वासव की रानी । वसुसेन इसका पुत्र था । यह पुत्र के मोह से पति के दीक्षित हो जाने पर भी दोक्षा नहीं ले सकी थी । अन्त में यह मरकर भोलिनी हुई। यह कृष्ण की पटरानो लक्ष्मणा के पूर्वभव का जीव है । हपु० ६०.७४-७८ ५८ Jain Education International जैन पुराणकोश : ४५७ (४) कौशाम्बी नगरी के सुभद्र सेठी की स्त्री । कृष्ण की पटरानी गौरी के पूर्वभव के जीव धर्ममति के कन्या की यह माता थी । हपु० ६०.९४, १०१ (५) कमलसंकुल नगर के राजा सुबन्धुतिलक और रानी मित्रा की पुत्री । यह राजा दशरथ की रानी और लक्ष्मण को जननी थी । पपु० २२.१७३ १७५, २५.२३, २६ (६) सेठ सुदत्त की स्त्री । मपु० ५९.१४८, १८८-१९२ दे० सुमित्रदत्तिका सुमुख - 1१) वसुदेव और उसकी रानो अवन्ती का ज्येष्ठ पुत्र । दुर्मुख और महारथ इसके छोटे भाई थे। हपु० ४८.६४ (२) हयपुरी का राजा । गान्धार देश की पुष्कलावती नगरी के राजा इन्द्रगिरि का पुत्र हिमगिरि अपनी बहिन गान्धारी इसे ही देना चाहता था किन्तु कृष्ण ने ऐसा नहीं होने दिया था। वे गान्धारी को हरकर ले आये थे तथा उसे इन्होंने विवाह लिया था । हपु० ० ४४.४५-४८ (३) कौशाम्बी नगरी का राजा। यह अपने यहाँ आये कलिंग देश के वीरदत्त वणिक् को पत्नी वनमाला पर मुग्ध हो गया था। इसने वीरदत्त को बाहर भेजकर वनमाला को अपनी पत्नी बनाया था । वीरदत्त ने वनमाला के इस कृत्य से दुःखी होकर जिनदीक्षा धारण कर ली तथा मरकर सौधर्म स्वर्ग में चित्रांगद देव हुआ । इसने और वनमाला दोनों ने धर्मसिंह मुनि को आहार दिया था । अन्त में मरकर यह भोगपुर नगर में विद्याधर राजा प्रभंजन का सिंहकेतु नाम का पुत्र हुआ। मपु० ७०.६४-७५, पपु० २१.२-३, हपु० १४.६, १०१-१०२, पापु० ७.१२१-१२२ ( ४ ) राजा अकम्पन का एक दूत । चक्रवर्ती भरतेश के पास अकम्पन ने इसी दूत के द्वारा समाचार भिजवाये थे । मपु० ४५.३५, ६७, पापु० ३.१३९ - १४० (५) कृष्णका पक्षधर एक राजा । यह कृष्ण के साथ कुरुक्षेत्र में गया था । मपु० ७१.७४ (६) राक्षसवंशी राजा श्रीग्रीव का पुत्र । इसने सुव्यक्त राजा को राज्य देकर दीक्षा ले ली थी । पपु० ५.३९२ (७) कौमुदी नगरी का राजा। इसकी रतवती रानी थी । पपु० ३९.१८०-१८१ (८) एक बलवान् पुरुष । परस्त्री की इच्छा मात्र करने से इसकी मृत्यु हो गयी थी । पपु० ७३.६३ (९) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १७८ सुमुखो - विजयार्ध पर्वत की दक्षिश्रेणी को उन्चासवीं नगरी । मपु० १९.५२-५३ सुमेधा - ( १ ) सुमेरु पर्वत के नन्दन वन में स्थित निषेधकूट की एक दिक्कुमारी देवी । हपु० ५.३३३ (२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १७२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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