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________________ सुभूषण-सुमति तपस्वी को मार डाला था। इसके फलस्वरूप जमदग्नि के पुत्र परशुराम द्वारा इनके पिता भी मार डाले गये थे। तारा भयभीत होकर गुप्त रूप से कौशिक ऋषि के आश्रम में चली गयी थी। इनका जन्म आश्रम के एक तलघर में हुआ था। इससे ये "सुभौम" नाम से प्रसिद्ध हुए। ये अपनी माँ से पिता के मरण का रहस्य ज्ञात करके परशुराम की दानशाला में गये थे । वहाँ इन्होंने भोजन किया था । परशुराम ने इनकी थाली में दाँत परोसे थे। वे दाँत खीर में बदल गये थे । इस घटना से निमित्तज्ञानी के कथनानुसार परशुराम ने इन्हें अपना मारनेवाला जानकर फरसा से मारना चाहा था किन्तु उमी समय इनकी भोजन की थाली चक्र में बदल गई और इसी से इन्होंने परशुराम को हो मार डाला था। इसने चक्ररत्न से इक्कीस बार पृथिवी को ब्राह्मण रहित किया था। साठ हजार वर्ष इनकी आयु थो । शरीर अट्ठाईस धनुष ऊँचा था । चौदह रत्न, नौ निधियाँ और मुकुटबद्ध बत्तीस हजार राजा इसकी सेवा करते थे। इसने मेघनाद को विद्याधरों का राजा बनाया था । आयु के अन्त तक भी इन्हें तृप्ति नहीं हो पाई थी अतएव मरकर ये सातवें नरक गये। प्रथम पूर्वभव में ये महाशुक्र स्वर्ग में देव और दूसरे पूर्वभव में भरतक्षेत्र में भूपाल नामक राजा थे । इनका अपर नाम सुभौम था। मपु० ६५.५१-५५, १३१-१५०, १६६-१६९, पपु० ५.२२३, २०.१७११७७, हपु० २५.८-३३, ६०.२८७, २९५, वीवच० १८.१०१, जैन पुराणकोश : ४५५ (३) साकेत नगर के राजा विजयसागर की रानी और दूसरे चक्रवर्ती सगर की जननी । पपु० ५.७४, २०.१२८-१२९ (४) इक्ष्वाकुवंशी राजा अनरण्य की रानी और राजा दशरथ की जननी । पपु० २८.१५८ सुमति-(१) अवसर्पिणी काल के सुषमा-दुःषमा चौथे काल में उत्पन्न पाँचवें तीर्थंकर । ये जम्बूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के क्षत्रिय राजा मेघरथ और रानी मंगला के पुत्र थे । ये श्रावस मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि और मघा नक्षत्र में सोलह स्वप्नपूर्वक रानी मंगला के गर्भ में आये थे तथा चैत्र मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन इनका जन्म हुआ था। इन्द्र ने जन्मोत्सव मनाकर इनका नाम "सुमति" रखा था । इनकी आयु चालीस लाख पूर्व की थी। शरीर तोन सौ धनुष ऊंचा था तथा कान्ति स्वर्ण के समान थी । कुमारकाल के दस लाख पूर्व वर्ष बाद इन्हें राज्य प्राप्त हुआ था। राज्य करते हुए उनतीस लाख पूर्व और बारह पूर्वाङ्ग वर्ष बीत जाने पर इन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ । सारस्वत देव की स्तुति करने के पश्चात् ये अभय नामक शिविका में सहेतुक वन ले जाये गये थे। वहाँ इन्होंने वैशाख सुदी नवमी के दिन मघा नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ वेला का नियम लेकर दीक्षा ली थो । सौमनस नगर के राजा पद्मराज ने इनकी पारणा कराई थी। छद्मस्थ अवस्था में बीस वर्ष बीतने पर सहेतुक वन में प्रियंगुवृक्ष के नीचे इन्होंने दो दिन का उपवास धारण करके योग धारण किया था। चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन सूर्यास्त के समय इन्हें केवलज्ञान हुआ । केवली होने पर इनके संघ में अमर आदि एक सौ सोलह गणधर थे। मुनियों में दो हजार चार सौ पूर्वधारो दो लाख चौवन हजार तीन सौ पचास शिक्षक, ग्यारह हजार अवधिज्ञानी, तेरह हजार केवलज्ञानी, आठ हजार चार सौ विक्रियाऋद्धिधारी, दस हजार चार सौ पचास वादी कुल तीन लाख बीस हजार मुनि, अनन्तमती आदि तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएँ, असंख्यात देवदेवियाँ और संख्यात तिथंच थे। अन्त में एक मास की आयु शेष रहने पर ये सम्मेदगिरि पर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग में स्थिर हुए तथा चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। मपु० ५१.१९-२६, ५५, ६८-८५, हपु० १.७, १३,३१, ६०.१५६-१८६, ३४१-३४९, वोवच० १८.८७, १०१ ११० (२) तीर्थङ्कर अरनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता। मपु० ७६.५३२ सुभूषण-रावण के भाई विभीषण का पुत्र । पपु०७०.२९ सुभोगा-एक दिक्कुमारी देवी । यह मेरू पर्वत पर क्रीडा करती है। हपु० ५.२२७ सुभोटक-भरतक्षेत्र का एक देश । तीर्थकर महावीर यहाँ विहार करते हुए आये थे । पापु० १.१३३-१३४ सुभोम-(१) आठवें चक्रवर्ती । मपु० ६५.५१, दे० सुभूम । (२) कुरुवंशी एक राजा। यह राजा पद्ममाल का पुत्र तथा पद्मरथ का पिता था। हपु० ४५.२४ सुभोमकुमार-पार्श्वनाथ का दूसरा नाम । राजा महीपाल इनके नाना थे । इन्होंने राजा महीपाल को तापस अवस्था में नमस्कार नहीं किया था जिससे महीपाल कुपित हो गया था। इन्होंने उसके तप को अज्ञान तप कहकर उसे पापास्रव का कारण बताया था। इससे वह और अधिक कुपित हो गया था। वह मरकर शम्बर ज्योतिषो देव हुआ । मपु० ७३.९४-११७ दे० पार्श्वनाथ सुमंगला-(१) साकेत नगर के राजा मेघप्रभ की रानी और तीर्थङ्कर सुमतिनाथ की जननी । पपु० २०.४१ (२) आदित्यपुर के राजा विद्यामन्दर विद्याधर की पुत्री श्रीमाला की धाय । स्वयंवर में आये राजकुमारों का परिचय श्रीमाला को इसी ने कराया था। पपु० ६.३५७-३५८, ३६३, ३८१-३८४ (२) जम्बूद्वीप की पुण्डरीकिणी नगरी के वचमुष्टि और उसकी स्त्री सुभद्रा की पुत्री । इसने सुन्दरी आर्यिका से प्रेरित होकर रलावलो तप किया था जिसके प्रभाव से आयु के अन्त में यह ब्रह्मेन्द्र को इन्द्राणी तथा स्वर्ग से चयकर जाम्बवता हुई। मपु० ७१.३६६३६९, हपु० ६०.५०-५३ (३) धातकोखण्डद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन का मन्त्रो । युद्ध में राजा के मरने पर इसने रानी को धर्म का उपदेश दिया था । हपु० ६०.५७-६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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