SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुभद्रा-सुभूम पुत्र तथा प्रियकारिणी आदि सात पुत्रियों की यह जननी थी। मपु० ७५.३-७ (१४) भरतक्षेत्र की द्वारावती नगरी के राजा ब्रह्म की रानी । बलभद्र अचलस्तोक इसका पुत्र था । पपु० ५८.८३, ८६ दे० अचल स्तोक ४५४ : जैन पुराणकोश (५) कौशाम्बी नगरी का एक सेठ । सुमित्रा इसको स्त्रो थो। हपु० ६०.१०१ (६) सूर्यवंशी राजा अमृत का पुत्र । राजा सागर इसका पुत्र था। पपु० ५.६ (७) दूसरे नारायण द्विपृष्ठ के पूर्वभव के दीक्षागुरु । पपु० २०. २१६ (८) नन्दीश्वरवर समुद्र का एक रक्षक देव । हपु० ५.६४५ सुभद्रा-(१) राजा अन्धकवृष्णि की रानी। इसके समुद्रविजय आदि पुत्र तथा कुन्ती और मद्री पुत्रियाँ थीं। मपु० ७०.९३-९७, हपु० १८.१२-१५ (२) सद्भद्रिलपुर के राजा मेघरथ की रानी और दृढ़रथ की जननी । राजा मेघरथ के दीक्षा धारण कर लेने पर सुदर्शना आर्यिका के पास इसने भी दीक्षा ले ली थी। मपु० ७०.१८३, हपु० १८. ११२, ११६-११७ (३) भरतेश चक्रवर्ती की रानी और नमि-विनमि विद्याधर की बहिन । यह केवल एक कबल प्रमाण आहार लेती थी। मपु० ३२. १८३, पपु० ४.८३, हपु० ११.५०, १२५, १२.४३, २२.१०६ (४) दूसरे बलभद्र विजय की जननी । पपु० २०.२३८-२३९ (५) चम्पापुरी के वैश्य भानुदत्त की स्त्री । चारुदत्त की यह जननी थी। हपु० २१.६, ११ (६) जम्बद्रीप की पुण्डरीकिणी नगरी के निवासी वज्रमुष्टि की स्त्री । हपु० ६०.५१ दे० वज्रमुष्टि (७) अर्जुन की स्त्री। यह कृष्ण की बहिन तथा अभिमन्यु की जननी थी। इसने राजीमती गणिनी से दीक्षा लेकर तपश्चरण किया था। आयु के अन्त में मरकर सोलहवें स्वर्ग में देव हुई। मपु० ७२. २१४, २६४-२६६, हपु० ४७.१८, पापु० १६.३६-३९, ५९, १०१, २५.१५, १४१ (८) विजया पर्वत पर स्थित द्यु तिलक नगर के राजा चन्द्राभ की रानी। यह वायुवेगा की जननी थी। मपु० ६२.३६-३७, ७४. १३४ वीवच० ३.७३-७४ (९) बुद्धिमान् व्यास की स्त्री । इसके धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर ये तीन पुत्र थे । मपु० ७०.१०३, पापु० ७.११६-११७ (१०) एक आर्यिका। नित्यालोकपुर के राजा महेन्द्र विक्रम की रानी सुरूपा इन्हीं से दीक्षित हुई थी। मपु० ७१.४२०, ४२३ (११) जम्बूद्वीप की कौशाम्बी नगरी के सुमति सेठ की स्त्री। कृष्ण की पटरानी गौरी की उसके पूर्वभव में यह माता थी। मपु० ७१.४३७-४४१ (१२) सेठ वृषभदत्त की स्त्री। यह चन्दना का सेठ के साथ सम्बन्ध न हो जाये इस शंका से चन्दना को कांजी से मिला हुआ भात सकोरे में रखकर खाने के लिए देती तथा उसे साँकल से बांधकर रखती थी । मपु० ७४.३४०-३४२, वीवच० १३.८४-९० (१३) वैशाली नगर के राजा चेटक की रानी । धनदत्त आदि दस (१५) द्वारावती नगरी के राजा भद्र की रानी। यह धर्म बलभद्र की जननी थी। मपु० ५९.७१, ८७, दे० धर्म-३ सुभद्रिलपुर-एक नगर । यहाँ देवकी के पुत्रों का पालन हुआ था। हपु० ३५.४ सुभा-हरिवर्ष देश में वस्वालय नगर के राजा वज्रचाप की रानी। विद्युन्माला इसो की पुत्री थी। मपु० ७०.७५-७७ सुभानु-(१) कृष्ण और उनकी सत्यभामा रानी का पुत्र । यह भानु का अनुज था । मपु०७२.१७५-१७५, हपु० ५८.७,६९ (२) हरिवंशी राजा । यह यवु का पुत्र और भीम का जनक था। हपु० १८.३ __(३) मथुरा के करोड़पति सेठ भानु और उनकी स्त्री यमुना का ज्येष्ठ पुत्र । इनके भानुकीति, भानुषेण, शूर, शूरदेव, शूरदत्त और शुरसेन ये छ: छोटे भाई थे । इसने इन सभी भाइयों के साथ बरधर्म मनि के पास दीक्षा ले ली थी। तप करते हुए यह समाधिमरण करके प्रथम स्वर्ग में त्रायस्त्रिंश देव हुआ। मपु० ७१.२०१-२०३, २३४२४३, २४८, हपु० ३३.९६-९९, १२६-१२७ (४) एक मुनिराज । राजा रतिवर्धन के दीक्षागुरु थे। पपु. १०८.३५ सुभानुक-कृष्ण का एक पुत्र । हपु० ४८.६९ सुभाषित-काव्य को हित-मित-प्रिय उक्ति । मपु० २.८७,११६, १२२, १०.८०, ८८ सुभीम-(१) राजा धृतराष्ट्र और रानो गान्धारी का दसवाँ पुत्र । पापु० ८.१९४ (२) राक्षसों का इन्द्र । इसने सगर चक्रवर्ती के प्रतिद्वन्दी मेघवाहन को तीर्थकर अजितनाथ के समवसरण में अभयदान देकर लंका का राज्य दिया था। पापु० ५.१४९, १५८-१६० सुभाषण-रावण का सामन्त । यह व्याघ्र रथ पर बैठकर युद्ध करने निकला था। पपु० ५७.४९ सुभुज-राजा धृतराष्ट्र और गान्धारी का निन्यानवेवा पुत्र । पापु० स० स्ला। ८.२०५ सुभुत्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४० सुभूति-नारायण पुरुषसिंह के पूर्वभव क दीक्षागुरु एक मुनि । पपु० २०.२१६ सभूम-(१) अवसर्पिणी के दुःषमा-सुषमा चोथे काल के शलाका-पुरुष एवं आठवें चक्रवर्ती । ये तीर्थकर अरनाथ और मल्लिनाथ के अन्तराल में हुए थे । ये हस्तिनापुर के राजा कार्तवीर्य और उनकी रानी नारा के पुत्र थे । इनके पिता ने कामधेनु को पाने के लिए जमदग्नि Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy