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________________ अमल-क्षमितवाहन अमल - ( १ ) राजा समुद्रविजय का मन्त्री । हपु० ५०.४९ (२) शोभपुर नगर का राजा। अन्त में यह पुत्र को राज्य सौंपकर आठ गाँवों का प्रमाण करके श्रावक हो गया तथा मरकर स्वर्ग में देव हुआ । पपु० ८०.१८९-१९५ (३) लंका का एक देश । पपु० ६.६६-६८ (४) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११२ अमलकण्ठ – एक नगर कनकरथ (हेमरथ) यहाँ का राजा था। वह हस्तिनापुर के राजा मधु की सेवा के लिए उसके पास गया था । मपु० ७२.४०-४१ अमात्य -- राजा का मन्त्री स्तर का एक अधिकारी मपु० ५.७ अमित - (१) सिंहरथ विद्याधर का विमान । मपु० ६३.२४१-२४२ (२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९६९ अमितगति - ( १ ) राजा वसुदेव और उसकी रानी गन्धर्वसेना का पुत्र, वायुवेग का अनुज तथा महेन्द्रगिरि का अग्रज । हपु० ४८.५५ (२) अरिंजय के साथी एक चारणमुनि । पापु० ४. २०५ (३) भवनवासी देवों का पन्द्रहवाँ इन्द्र । वीवच० १४.५४-५८ (४) मति, श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानों के धारक एक मुनि । गर्भिणी अंजना को उसका पूर्वभव आदि इन्हीं ने आकाशगामी थे । पपु० १७.१३९- १४० बताया था । ये (५) विजयार्घ पर्वत की दक्षिण श्रेणी के शिव मन्दिर नगर के राजा महेन्द्र विक्रम का पुत्र । इस विद्याधर के धूमसिंह और गौरमुण्ड नाम के दो विद्याधर मित्र थे । हिरण्यरोम तापस की पुत्री सुकुमारिका से इसने विवाह किया था। हपु० २१ २२ २८ इसकी विजयसेना और मनोरमा नाम की दो स्त्रियाँ और थीं। विजयसेना की पुत्री सिंहसेना तथा मनोरमा के पुत्र सिंहयश और वराहग्रीव थे । बड़े पुत्र को राज्य देकर और छोटे पुत्र को युवराज बनाकर यह अपने पिता मुनि महेन्द्रविक्रम के पास दीक्षित हो गया । हपु० २१. ११८-१२२ अमितगुणचारण ऋद्धिपारी मुनि अजितंजय मुनि के साथी मपु० ७४. १७३, वीवच० ४ ६-७ दे० अंजितंजय अमितज्योति - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०५ अमिततेज - ( १ ) राजा अर्ककीर्ति और उसकी रानी ज्योतिर्माला का पुत्र, सुतारा का भाई । त्रिपृष्ठ नारायण की पुत्री ज्योतिःप्रभा ने इसे तथा इसकी बहन सुतारा पृष्ठ के पुत्र श्री विजय को स्वयंवर में वरण किया था । पिता के दीक्षित होने पर इसने राज्य प्राप्त किया, फिर अपने बड़े पुत्र सहस्ररश्मि के साथ होमन्त पर्वत पर संजयंत मुनि के पादमूल में विद्याच्छेदन करने में समर्थ महाज्वाला आदि विद्याएं सिद्ध कीं । रथनूपुर नगर से आकर अशनिघोष को पराजित किया और अपनी बहिन सुतारा को छुड़ाया। पापु० ४.८५ ९५, १७४-१९१ यह पिता के समान प्रजा पालक था और इस लोक और परलोक के हित कार्यों में उद्यत रहता था । प्रज्ञप्ति आदि अनेक विद्याएँ Jain Education International जैन पुराणकोश : २९ इसे सिद्ध थीं। दोनों श्रेणियों के विद्याधर राजाओं का यह स्वामी था । दमवर मुनि को आहार देकर इसने पंचाश्चयं प्राप्त किये थे । मुनि विपुलमति और विमलगति से अपनी आयु मास मात्र की अवशिष्ट जानकर इसने अपने पुत्र अर्कतेज को राज्य दे दिया, आष्टाह्निक पूजा की और प्रायोपगमन में उद्यत हुआ तथा देह त्याग कर तेरहवें स्वर्ग के नन्द्यावर्त नाम के विमान में रविचूल नाम का देव हुआ यहाँ से युत होकर सावती देश की प्रभावती नगरी में स्तिमितसागर और उनकी रानी वसुन्धरा का अपराजित नाम का पुत्र हुआ । मपु० ६२. १५१, ४११, पापु० ४.२२८-२४८ (२) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गगनवल्लभ नगर के राजा गगनचन्द्र और उसकी रानी गगनसुन्दरी का छोटा पुत्र । अतिवेग, अपरनाम अमितमति, इसका भाई था । मपु० ७०.३८४१, हपु० ३४.३४-३५ (३) वज्रजंघ की अनुजा अनुन्धरी का पति, चक्रवर्ती वज्रदन्त का पुत्र और नारायण त्रिपृष्ठ का जामाता । यह पिता के साथ यशोधर योगीन्द्र के शिष्य गुणधर से दीक्षित हो गया था । मपु० ८.३३-३४, ७९, ८५, ६२.१६२ (४) विजय पर्वत को दक्षिणी के विद्युत्कान्त नगर के स्वामी प्रभंजन विद्याधर और उसकी रानी अंजना देवी का पुत्र यह अखण्ड पराक्रमी, विजयार्ध के शिखर पर दायाँ पैर रखकर बायें पैर से सूर्य-विमान का स्पर्श करने में समर्थ शरीर को सूक्ष्म रूप देने में चतुर होने से विद्याधरों द्वारा अणुमान् नाम से अभिहित और 'सुधीव का प्राणप्रिय मित्र था राम नामाङ्कित मुद्रिका लेकर यह सीता को खोजने लंका गया था। राम ने इसे अपना सेनापति बनाया था । मपु० ६८.२७५-४७२, ७१४-७२० दे० अणुमान् अमितप्रभ - (१) राजा वसुदेव और उसकी रानी बालचन्द्रा का छोटा पुत्र, वज्रदंष्ट्र का अनुज । हपु० ४८.६५ (२) एक मुनि से पुण्डरीकिणी नगरी में आये थे। वहाँ मणिकुण्डल विद्याधर को इन्होंने सनातन धर्म का स्वरूप बताया था । मपु० ६२.३६२-३६३ दूसरी रानी थी । मन्दर अनन्तवीर्यं और इसकी अमितप्रभा - यह मथुरा के राजा रत्नवीर्य को इसका पुत्र था । महापुराण में इसका नाम रानी का नाम अमितवती बताया गया है । हपु० २७.१३५-१३६ अमितमति - (१) गुणवती की दीक्षागुरु कार्यिका मपु० ४६.४५०४० मपु० ५९.३०२ ३०३, (२) अमिततेज का भाई । मपु० ७०.३९-४१ दे० अमिततेज (३) पद्मिनीलेट नगर निवासी सागरसेन की पत्नी, पनमित्र और नन्दिषेण की जननी । मपु० ६३.२६३ अमितवती - मथुरा नगरी के राजा अनन्तवीर्यं की दूसरी रानी, राजकुमार मन्दर की जननी । मपु० ५९.३०२-३०३ अमितवाहन - ( १ ) भवनवासी देवों का इन्द्र । वीवच० १४.५४-५८ ( २ ) इस नाम के एक मुनि । अलका के राजा विद्यद्दष्ट के पुत्र सिंहरथ ने इनकी वन्दना की थी । पापु० ५.६६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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