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________________ १७८ सुगत-सुतारा जैन पुराणकोश : ४४७ योग्य सुख भोगते हुए देवलोक में रहता है । मपु० ३८.६०, २००- सुगुप्त-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७८ २०१ सुगुप्तात्मा--सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. सुगत-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२१० १४० सुगति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का पक नाम । मपु० २५.१२० । सुगुप्ति-वाराणसी नगरी के राजा अचल और रानी गिरि देवी का सुगन्ध-अरुण समुद्र का रक्षक एक देव । हपु० ५.६४६ ज्येष्ठ पुत्र । यह गुप्त का बड़ा भाई था। मुनि अवस्था में इन दोनों सुगन्धा-पश्चिम विदेहक्षेत्र में नील पर्वत और सीतोदा नदी के मध्य में भाईयों को राम और सीता ने वन में आहार कराया था। एक कुरूप स्थित एक देश । खड्गपुरी इस देश की राजधानी थी। इसका गीध इन मुनियों के दर्शन करके सुरूप हो गया था। पपु० १४.१३अपर नाम सुगन्धि एवं सुगन्धिल था। मपु० ५४.९-१०, ६३.२१२- १६, २७, ५३.५४, १०७, ११३ २१७, ७०.४, हपु० ५.२५१ सुघोष-(१) बलदेव का शंख । हपु० ४२.७९ सुगन्धि-पश्चिम विदेहक्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर स्थित (२) चमरचंच नगर के राजा अशनिघोष विद्याधर का पुत्र । एक देश । इसका अपर नाम सुगन्धा था। मपु० ५४.९-१० दे० मपु० ६२.२४५-२४६, २७५-२७६ सुगन्धा (३) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. सुगन्धिनी-विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी की सत्तावनवी नगरी । मपु० १९.८६-८७ सुघोषा-गन्धर्वसेना का सत्रह तारोंवाली एक वीणा । किन्नर-देवों ने यह वीणा दक्षिणतटवासी विद्याधरों को दो थी। मपु० ७०.२९६, सुगन्धिल-जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट ७५.३२७, हपु० १९.१३७, २०.६१ पर स्थित एक देश । मपु० ७०.४ दे० सुगन्धा सुचक्षु-मानुषोत्तर पर्वत का रक्षक व्यन्तरदेव । हपु० ५.६३९ सुगर्भ-राजा वसुदेव और रानी रलवती का कनिष्ठ पुत्र । यह रलगर्भ सुचन्द्र-(१) राम के भाई भरत के साथ दीक्षित एक नृप । पपु० ___ का छोटा भाई था ! हपु० ४८.५९ ८८.५ सुगात्र-राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का चौदहवां पुत्र । हपु० (२) आगामी आठवां बलभद्र । मपु० ७६.४८६, हपु० ६०.५६९ ८.१९४, पापु० ८.१९४ सुचारु-(१) कृष्ण का एक पुत्र । हपु० ४८.७१ सुप्रीष-(१) विजयखेट नगर का एक क्षत्रिय गन्धर्वाचार्य । इसकी (२) कुरुवंशी एक राजा। यह तीर्थङ्कर अरनाथ के बाद हुआ सोमा और विजयसेना दो पुत्रियाँ थीं। इसने अपनी इन पुत्रियों का था। हपु० ४५.२२-२३ । विवाह वसुदेव से किया था । हपु० १९.५३-५५, ५८ सुजट-रावण का पक्षधर एक राजा। रथनूपुर के इन्द्र विद्याधर को (२) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की काकन्दीपुरी के राजा एवं तीर्थकर जीतने रावण के साथ यह भी गया था । पपु० १०.३६ । पुष्पदन्त के पिता । मपु० ५५.२३-२४, २७-२८, पपु० २०.४५ सुजन-भरतक्षेत्र का एक राष्ट्र । कुमार नंदाढ्य की रानी श्रीचन्द्रा इसी (३) किष्किन्ध नगर के राजा वानरवंशी सूर्यरज और रानी इन्दु- देश के नगरशोभ नगर के राजा के भाई सुमित्र की कन्या थी। मपु० मालिनी का कनिष्ठ पुत्र और बाली का भाई । श्रीप्रभा इसकी बहिन ७५.४३८-४३९, ५२०-५२१ थी। महापुराण के अनुसार यह विजया पर्वत के किलकिल नगर सुजय-चक्रवर्ती भरतेश का एक पुत्र । यह चरमशरीरी जयकुमार के के राजा विद्याधर वलीन्द्र और रानी प्रिंयगुसुन्दरी का पुत्र था । इसका साथ दीक्षित हो गया था । मपु० ४७.२८२-२८३ विवाह ज्योतिपुर के राजा अग्निशिख और रानी ही देवो की पुत्री सुज्येष्ठा-(१) राजा सुराष्ट्रवर्धन की रानी । कृष्ण की पटरानो सुसीमा सुतारा से हुआ था। इसके अंग और अंगद दो पुत्र और तेरह पुत्रियाँ की यह जननी थी। मपु० ७१.३८४, ३९६-३९७ थीं। साहसगति नामक एक दुष्ट विद्याधर इसका रूप धारण कर (२) सद्भद्रिलपुर नगर के धनदत्त सेठ को छोटो पुत्री । सुदर्शना इसको पत्नी सुतारा के पास आन-जाने लगा था। इसके इस संकट इसकी बड़ी बहिन थी। हपु० १८.११२-११५ को राम ने दूर किया। उन्होंने उससे युद्ध किया और उसे मार डाला सुतनु-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२१० था। लंका में इन्द्रजित ने इसके साथ मायामय युद्ध किया था। सुतार-प्रकीर्णकासुरी विद्याधर का पुत्र । इसने किरात के वेष में जिसमें नागपाश से यह बाँध लिया गया था। अन्त में यह राम के धनुर्धारी अर्जुन से युद्ध किया था तथा युद्ध में पराजित होकर इसे द्वारा मुक्त हुआ। इसके पश्चात् इसने निर्ग्रन्थ दीक्षा ले लो थी। घर लौट जाना पड़ा था । हपु० ४६.८-१३ मप०६८.२७१-२७३, पपु० ८.४८७, ९.१, १०-१२, १०.२-१२, सुतारा-(१) विजयाध पर्वत को दक्षिणश्रेणी में स्थित रथनूपुर-चक्रवाल ४७.५३, १२४-१२६, १३७-१४२, ६०.१०८, ६१.१०, ११९.३९ नगरो के राजा विद्याधर ज्वलनजटी के पुत्र अर्ककीर्ति और उसकी (४) राक्षसवंश के राजा संपरिकीर्ति का पुत्र और हरिग्रीव का पत्नी ज्योतिमाला की पुत्री और अमिततेज की बहिन । इसने पोदनपुर पिता । यह पुत्र को राज्य सौंपकर उग्र तपश्चरण करते हुए देव हुआ के राजा त्रिपृष्ठ नारायण के पुत्र श्रोविजय का स्वयंवर विधि से वरण था। पपु० ५.३८७-३९० किया था। चमरचंचपुर के राजा इन्द्राशनि के पुत्र अशनिघोष Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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