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________________ ४८ : जैन पुराणकोश सुतेजस्-सुदर्शन विद्याधर ने मुग्ध होकर माया से इसके पति का रूप धारण कर इसका हरण किया था। इसके पति श्रीविजय ने अशनिघोष से युद्ध किया। युद्ध से विरत होकर अशनिघोष ने विजय तीर्थङ्कर के समवसरण में जाकर अपने प्राण बचाये। यहाँ दोनों का वैर शान्त हो गया था। मपु० ६२.२५, ३०, १५१-१६३, २२७-२३३, २७८२८३, पापु० ४.८५-९१, १८४-१९१ (२) ज्योतिःपुर नगर के राजा हुताशनशिख और ह्री रानी की पुत्री । साहसगति विद्याधर इस पर मुग्ध था, किन्तु इसे अल्पायु बताये जाने से इसका विवाह साहसगति से न किया जाकर सुग्रीव से किया गया था। पपु० १०.२-१० दे० सुग्रीव-३ सुतेजस्-कुरुवंशी एक राजा । यह राजा सूर्यघोष के पश्चात् हुआ था। हपु० ४५.१४ सुत्वा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२७ सत्रामपूजित-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १२७ सुबत्त--(१) जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में स्थित गान्धार देश के विन्ध्यपुर नगर के सेठ धनमित्र और उसकी पत्नी श्रीदत्ता का पुत्र । इसकी स्त्री प्रीतिकरा थी। नलिनकेतु द्वारा प्रीतिकरा का अपहरण किये जाने से विरक्त होकर इसने सुव्रत मुनि से दीक्षा ले ली थी। अन्त में संन्यासमरण करके यह ऐशान स्वर्ग में देव हुआ । मपु० ६३.९९ १०४ विवाह हुआ था। यशोधरा इसकी पुत्री थी। पत्नी और पुत्री दोनों अयिकाएँ हो गयी थीं । हपु० २७.७७-८२ (४) एक यक्ष । इसने शौर्यपुर के गन्धमादन पर्वत पर प्रतिमा योग में लीन सुप्रतिष्ठ मुनि पर अनेक उपसर्ग किये थे। मपु० ७०. ११९-१२४, हपु० १८.२९-३१ (५) अवसर्पिणो काल के दुःषमा-सुषमा चौथे काल में उत्पन्न पांचवां बलभद्र । ये तीर्थकर धर्मनाथ के तीर्थ में हुए थे। जम्बद्वीप में खगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा सिंहसेन इनके पिता और रानी विजया माता थी। पुरुषसिंह नारायण इनका छोटा भाई था । इनके इस छोटे भाई द्वारा चलाये गये चक्ररत्न से मधु क्रीड प्रतिनारायण मारा गया था। आयु के अन्त में अपने भाई के मरने से शोक संतप्त होकर इन्होंने धर्मनाथ की शरण में जाकर दीक्षा ले ली थी तथा परम पद पाया था। मपु० ६१.५६, ७०-८३, २०.२३२-२४०, २४८, वीवच० १०१.१११ (६) एक कुरुवंशी राजा । ये अठारहवें तीर्थंकर अरनाथ के पिता थे। मपु० ६५.१४-१५, १९-२१, पपु० २०.५४, हपु० ४५.२१-२२ (७) रुचकगिरि का उत्तर दिशा में विद्यमान आठ कूटों में आठवाँ कूट । इस कूट पर धृति देवी का निवास है। हपु० ५.७१६-७१७ (८) अधोवेयक का एक विमान । मपु० ४९.९, हपु० ६.५२ (९) मानुषोत्तर पर्वत की उत्तरदिशा में स्थित स्फटिक कूट पर रहनेवाला देव । हपु० ५.६०५ (१०) एक व्रत । विदेहक्षेत्र के प्रहसित और विकसित विद्वानों ने यह व्रत किया था । मपु० ७.६२-६३, ७७ (११) विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी का चौवनवा नगर । मपु. १९.८५-८७ (१२) एक चक्ररत्न । मपु० ३७.१६९, ६८.६७५-६७७, पपु. ७५.५०-६०, हपु० ५३.४९-५०, ११,५७ (१३) एक उद्यान । यहाँ मन्दिरस्थविर मुनि आये थे। मपु० ७०.१८७, हपु० ५२.८९ (१४) उज्जयिनी नगरी के बाहर स्थित एक सरोवर । हपु० ३३.१०१, ११४ (१५) चन्द्रोदय पर्वत का निवासी एक यक्ष । जीवन्धर ने पूर्वभव में इसे जब यह कुत्ते की पर्याय में था, पंच नमस्कार मन्त्र दिया था। मपु० ७५.३६१-३६२ (१६) छठे बलभद्र नन्दिमित्र के पूर्वजन्म का नाम । पपु० २०.२३२ (१७) एक मुनि । वेदवती की पर्याय में सीता के जीव ने इन्हें अपनी बहिन आर्यिका सुदर्शना से बातचीत करते हुए देखकर अपवाद किया था। इसी अपवाद के फलस्वरूप सीता का भी अयोध्या में मिथ्या अपवाद हुआ । पपु० १०७.२२५-२३१ (१८) जम्बूद्वीप के मध्य में स्थित मेरु पर्वत । वीवच० २.२-३ (१९) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १८१ (२) जम्बद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित कलिंग देश के कांचीपुर नगर का एक वैश्य था। इसने सूरदत्तवैश्य के साथ युद्ध किया था। इस युद्ध में दोनों एक दूसरे के द्वारा मारे गये थे। मपु०७०.१२७१३२ (३) भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के चक्रवर्ती पुष्पदन्त और रानी प्रीतिकारी का पुत्र । इसने विजया पर्वत की दक्षिकश्रेणी में नन्दपुर के राजा हरिषेण के पुत्र हरिवाहन को मारकर दक्षिणश्रेणी में ही मेघपुर नगर के राजा धनंजय की पुत्री धनश्री के साथ पाणिग्रहण किया था। मपु० ७१.२५२-२५७ (४) सिन्धु देश की वैशाली नगरी के राजा चेटक और रानी सुभद्रा का चौथा पुत्र । धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र इसके बड़े भाई तथा सिंहभद्र, सुकुम्भोज, अकम्पन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास छोटे भाई थे। प्रियकारिणी आदि इसकी सात बहिनें थीं। मपु० ७५. (५) पद्मखेटपुर का एक सेठ। इसी के पुत्र भद्रमित्र को सिंहपुर के राजा ने सत्यघोष नाम दिया था। मपु० ५९.१४८-१७३ सुदर्शन-(१) जरासन्ध का एक पुत्र । हपु० ५२.३२ (२) धृतराष्ट्र तथा गान्धारी का सत्तावनवाँ पुत्र । पापु०८. २०० (३) अलका नगरी का राजा । विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के धरणीतिलक नगर के राजा अतिबल की पुत्री श्रीधरा का इसके साथ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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