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________________ जैन पुराणकोश : ४११ ओपर्वत-श्रीभूति नगर के राजा श्रोषेण ने इनसे धर्मोपदेश सुनकर दीक्षा ली थी। मपु० ५४.८-१०, ३६, ७३-७६ (२) जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के सुप्रकारपुर के राजा शम्बर और रानी श्रीमती का पुत्र । यह कृष्ण की पटरानी लक्ष्मणा का भाई था । ध्रुवसेन इसका छोटा भाई था। मपु० ५४.४०९-४१४ श्रीपर्वत-भरतक्षेत्र का एक पर्वत । चक्रवर्ती भरतेश ने दिग्विजय के समय इस पर विजय की थी। राम और रावण के बीच हुए युद्ध के समय यहाँ का राजा राम से जा मिला था। लंका को जीतकर अयोध्या में राम ने यहां का साम्राज्य हनुमान को दिया था । मपु० २९.९०, पपु० ५५.२८, ८८.३९ श्रीपाल–पूर्वविदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा गुणपाल का छोटा पुत्र । वसुपाल का यह छोटा भाई था । राजा ने शिशुकाल में ही वसुपाल को राजा और इसे युवराज बनाकर दीक्षा ले ली थो । अपने पिता गुणपाल के ज्ञान-कल्याणक में जाते समय इसे अशनिवेग विद्याधर ने घोड़े का रूप धारणकर और अपनी पीठ पर बैठाकर रत्नावर्त पर्वत पर छोड़ा था । इसने माता-पिता द्वारा स्वीकृत की गयो कन्या को छोड़कर अन्य कन्या को स्वीकार नहीं करने का व्रत ले रखा था। फलस्वरूप विवाह के प्रसंग आने पर यह सभी के प्रस्ताव अस्वीकार करता रहा। लाल कम्बल ओढ़ कर सोये हुए इसे विद्युद्वेगा के मकान से भेरुण्ड पक्षो मांस का पिण्ड समझकर सिद्धकूट चैत्यालय उठा ले गया था। वहाँ इसे हिलते हुए देखकर पक्षी इसे छोड़कर उड़ गया था। यहां से कोई विद्याधर इन्हें शिवंकरपुर ले गया था। यहां आने से इसे सर्वव्याधिविनाशिनी विद्या प्राप्त हुई थी। इसके दर्शन से शिवकुमार राजकुमार का टेढ़ा मुह ठीक हो गया था । अग्नि निस्तेज हो गयी थी। इसके यहाँ चक्र, छत्र, दण्ड, चूड़ामणि, चर्म, काकिणी रत्न प्रकट हुए । इसने रत्न पाकर चक्रवर्ती के भोगों को भोगा। नगर में पहुँचते ही इनका जयावती आदि चौरासी कन्याओं से विवाह हुआ था। जयावती रानी से उत्पन्न इसके पुत्र का नाम गुणपाल था। पुत्र के उत्पन्न होते ही आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट हुआ था। अन्त में इसने रानी सुखावती के पुत्र नरपाल को राज्य देकर जयावती आदि रानियों और वसुपाल आदि राजाओं के साथ दीक्षा ले ली थी और तप कर मोक्ष पाया । मपु० ४६.२६८, २८९, २९८, ४७.३-१७२, २४४-२४९, हपु० १२.२४ श्रीपुर-(१) जम्बूद्वीप के विजयार्घ पर्वत की दक्षिणश्रेणी का बारहवाँ नगर । लंका की विजय करने के पश्चात् राम ने विराधित विद्याधर को इस नगर का राजा बनाया था । विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी की उशीरवती नगरो के राजा हिरण्यवर्मा ने इसी नगर में श्रीपाल मुनि के पास जैनेश्वरी दीक्षा ली थी। मपु० ४६.१४५-१४६, २१६२१७, पपु० ८८.३९, हपु० २२.९४, पापु० ३.२२६ (२) पुष्कर द्वीप में पूर्व मेरु के सुगन्धि देश का एक नगर । यहाँ के राजा का नाम श्रीषण था। मपु० ५४.८-१०, २५, ३६ (३) जम्बूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र का एक नगर । यहाँ का राजा वसुन्धर था । मपु० ६९.७४ श्रीप्रभ-(१) जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी __ का नौवां नगर । मपु० १९.४०, ५३ (२) ऐशान स्वर्ग का एक विमान । वनजंघ का जीव इसी विमान में देव हुआ था। मपु० ९.१०९ (३) एक पर्वत । श्रीधर देव ने स्वर्ग से इस पर्वत पर आकर पूर्वभव के गुरु प्रीतिकर की पूजा की थी। वज्रनाभि ने यहाँ संन्यास धारण किया था । मपु० १०.१-३, ११.९४ (४) एक मुनि । राजा श्रीवर्मा ने इन्हीं से दीक्षा ली थी। मपु. ५४.८१ (५) सौधर्म स्वर्ग का एक विमान । राजा श्रीवर्मा का जीव इसी विमान में श्रीधर नाम का देव हुआ था। मपु० ५४.७९-८२ (६) राजा श्रीषण का जीव-सौधर्म स्वर्ग का एक देव । मपु० ६२.३६५ (७) पुष्करवर समुद्र का रक्षक देव । हपु० ५.६४० (८) सहस्रार स्वर्ग का एक विमान । हपु० २७.६७-६८ श्रीप्रभा-(१) विजयार्ध पर्वत के तडिदंगद विद्याधर की स्त्री। उदित विद्याधर की यह जननी थी । पपु० ५.३५३ (२) वानरवंशी राजा अमरप्रभ के पुत्र कपिकेतु को रानो । प्रतिबल इसका पुत्र था। पपु० ६.१९८-२०० (३) कालाग्नि विद्याधर की स्त्री। यह यम लोकपाल की जननी थी । पपु० ७.११४ (४) किष्किन्ध नगर के राजा सूर्यरज और रानी इन्दुमालिनी की पुत्री । यह बाली और सुग्रीव की छोटी बहिन तथा रावण की रानी थी। पपु० ९.१, १०-१२, १०० श्रीभूति-(१) आगामी छठा चक्रवर्ती । मपु० ७६.४८३, हपु० ६०. ५६४ (२) भरतक्षेत्र के शकट देश में सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन का पुरोहित । इसका दूसरा नाम सत्यघोष था । पद्मखण्ड नगर का सुमित्रदत्त वणिक् इसके यहाँ पाँच रत्न रखकर प्रवास में चला गया था, लौटकर रत्न मांगने पर इसने रत्न नहीं दिये। सुमित्रदत्त का रुदन सुनकर रामदत्ता ने जुए में इसे पराजित किया तथा बुद्धि कौशलपूर्वक इसके घर से सुमित्रदत्त के रत्न मँगवाकर उसे दिला दिये। राजा ने इसका समस्त धन छीनकर इसे मल्लों के मुक्कों से पिटवाया। अन्त में आर्तध्यान से मरकर यह राजा के भण्डार में अगन्धन नाम का सर्प हुआ। मपु० २७.२०-४२, ५९.१४६-१७७ दे० श्रीदत्ता-१ (२) महोदधि विद्याधर का दूत । महोदधि ने हनुमान के पास इसी से समाचार भिजवाये थे । पपु० ४८.२४९ (४) भरतक्षेत्र के मृणालकुण्ड नगर के राजा शम्भु का पुरोहित । सरस्वती इसकी स्त्री तथा वेदवती पुत्री थी। राजा शम्भु ने वेदवती Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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