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________________ ४१२ : जैन पुराणकोश श्रीमती-श्रीवर्धन को पाने के लिए इसे मार डाला था। धर्म के प्रभाव से यह देव (१७) राजा सत्यंधर के पुरोहित सागर की रानी । यह बुद्धिषण हुआ। पपु० १०६.१३३-१३५, १४१-१४५ की जननी थी। मपु० ७५.२५४-२५९ श्रीमती-(१) राजा सर्वार्थ की रानी । यह सिद्धार्थ की जननी (भगवान् (१८) विजयाध पर्वत की अलका नगरी के राजा हरिबल की महावीर की दादी) थी। हपु० २.१३ दूसरी रानी । हिरण्यवर्मा की यह जननी थी। मपु०७६.२६२-२६४ (२) राजा श्रेयांस के पूर्वभव का जीव । पूर्वभव में यह राजा (१९) राजा पारत की बहिन । यह राजा शतबिन्दु की रानी और वज्रजंघ की रानी थी। हपु० ९.१८३ जमदग्नि की जननी थी। मपु० ६५.५९-६० (३) भरतक्षेत्र में जयन्तनगर के राजा श्रीधर की रानी। यह (२०) राजा जयकुमार की रानी । पापु० ३.१४ विमलश्री की जननी थी। मपु० ७१.४५३, हपु ६०.११७ (२१) विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा (४) अरिष्टपुर नगर के राजा स्वर्णनाभ की रानी । कृष्ण की। अतीन्द्र की रानी। श्रीकण्ठ इसका पुत्र तथा महामनोहर देवी पुत्री पटरानी पद्मावती की यह जननी थी। मपु० ७१.४५७, हपु० ६०. थी । पपु० ६.२-६ १२१ (२२) रावण की रानी । पपु० ७७.१३ (५) साकेत नगर के राजा अतिबल की रानी। यह हिरण्यवती (२३) एक आर्यिका । इनसे सत्ताईस हजार स्त्रियों ने आयिका की माता थी । हपु० २७.६३ दीक्षा ली थी । पपु० ११९.४२ (६) विदर्भ देश में कुण्डिनपुर के राजा भीष्म की रानी । यह श्रीमत्कन्या-एक विद्या। अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज ने यह विद्या कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी की जननी थी। मपु० ७१.३४१, हपु० सिद्ध की थी। मपु० ६२.३९६ ६०.३९ श्रीमनोहरपुर-विद्याधरों का नगर । यहाँ का राजा रावण के पास (७) जम्बद्वीप में भरतक्षेत्र के पुष्कलावती देश की वीतशोका उसकी सहायतार्थ आया था । पपु० ५५.८६ ।। नगरी के राजा अशोक की रानी। कृष्ण की पटरानी सुसीमा के श्रीमन्तपुर-विद्याधरों का एक नगर । यहाँ का राजा रावण के पास 'पूर्वभव का जीव श्रीकान्ता को यह जननी थी। हपु० ६०.५६, उसकी सहायतार्थ आया था । पपु० ५५.८६ ६८-६९ श्रीमन्यु-सप्तर्षियों में एक मुनि । पपु० ९२.१-१४, दे० सप्तर्षि (८) कौशाम्बी नगरी के राजा महाबल की रानी। श्रीकान्ता । श्रीमहिता-सुमेरु पर्वत की वायव्य दिशा में स्थित वापी । हपु० ५.३४४ इसको पुत्री थी । मपु० ६२.३५१, पापु० ४.२०७ श्रीमान्-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु. (९) उज्जयिनी नगरी के राजा श्रीधर्मा की रानी । हपु० २०.३ २५.१०० (१०) गजपुर (हस्तिनापुर) के राजा श्रीचन्द्र की रानी । सुप्रतिष्ठ (२) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३३ की यह जननी थी। मपु० ७०.५२, हपु० ३४.४३ श्रीमाला-(१) आदित्यपुर के राजा विद्याधर विद्यामन्दर और रानी (११) कुरुवंशी राजा सूर्य की रानी । तीर्थकर कुन्थुनाथ की यह वेगवती की पुत्री। इसने स्वयंवर में किष्कन्धकुमार का वरण किया जननी थी। हपु० ४५.२० था । सूर्यरज और यक्षरज इसके दो पुत्र तथा सूर्यकमला पुत्री थी। (१२) एक आर्यिका । बन्धुयशा की पर्याय में कृष्ण की पटरानी पपु० ६.३५७-३५८, ४२६, ५२३-५२४ जाम्बवती ने इन्हीं से प्रोषधव्रत धारण किया था। हपु. ६०. (२) रावण की रानी । पपु० ७७.१४ ४८-४९ श्रीमाली-राक्षसवंश में हुए राजा माल्यवान् का पुत्र । इसका इन्द्र के (१३) विदेहक्षेत्र में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा वज्रदन्त तथा पुत्र जयन्त के साथ युद्ध हुआ था, जिसमें यह मारा गया था। पपु० रानी लक्ष्मीवती की पुत्री। यह बहुत सुन्दर थी। इसका विवाह १२.२१२, २२१, २४०-२४२ राजा वज्रदन्त ने अपने भानजे वज्रजंघ के साथ किया था। इसके बीरम्भा-राजा मेरुकान्त की रानी और मन्दरकुंजनगर के राजा पुरन्दर अट्ठानवें पुत्र थे। आयु के अन्त में केश-संस्कार के लिए जलाई गयी की यह जननी थी । पपु० ६.४०९ धूप के धुएँ से पति के साथ ही इसका भी मरण हुआ । मपु० ६.५८- श्रीवत्स-पुण्यात्माओं का एक शारीरिक लक्षण । यह वक्षःस्थल पर ६०, ९१, १०५, ७.१९२-१९५, २४९, ८.४९, ९.२६-२७, ३३ होता है । मपुः ७३.१७, पपु० ३. १९१ हपु० ९.९ (१४) सुरम्य देश में श्रीपुर नगर के राजा श्रीधर की रानी। श्रीवर-पुष्करवर समुद्र का दूसरा रक्षक देव । हपु० ५.६४० यह जयावती की जननी थी। मपु० ४७.१४ श्रीवर्धन-(१) संजयन्त केवली के पूर्वभव का जोव । यह कुमुदावतो (१५) सुप्रकारपुर के राजा शम्बर की रानी । कृष्ण की पटरानी नगरी का राजा था। वह्निशिख इसका पुरोहित था। पपु० लक्ष्मणा की यह जननी थी। मपु० ७१.४०९-४१० ५.३७-३९ (१६) राजा कुणिक की रानो । अन्य कुणिक के पिता श्रेणिक (२) राजा इलावर्द्धन का पुत्र । यह श्रीवृक्ष का पिता था। की यह जननी थी। मपु० ७४.४१८, वीवच० १९.१३५ पपु० २१.४९ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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