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________________ श्रीधरसेन-श्रीपम ४१० : जैन पुराणकोश (८) एक मुनि । गान्धारी नगरी के राजा रुद्रदत्त की रानी विनयश्री इन्हें आहार देकर उत्तर कुरुक्षेत्र में आर्या हुई थी। हपु० ६०.८६-८८ (९) पुष्करद्वीप में मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर का राजा । इसकी दो रानियाँ थीं—मनोहरा और मनोरमा । इन रानियों से क्रमशः इसके दो पुत्र हुए थे-बलभद्र श्रीवर्मा और नारायण विभीषण । इन्होंने श्रीवर्मा को राज्य देकर सुधर्माचार्य से दीक्षा ले ली थी तथा सिद्ध पद पाया था। मपु० ७.१४-१६ (१०) सुरम्य देश के श्रीपुर नगर का राजा । श्रीमती इसकी रानी और जयवती पुत्री थी। मपु० ४७.१४ ।। (११) प्रथम स्वर्ग के श्रीप्रभ विमान का देव । यह पुष्करद्वीप के सुगन्धि देश में श्रीपुर नगर के राजा श्रीषेण के पुत्र श्रीवर्मा का जीव था । मपु० ५४.८-१०, २५, ३६, ६८, ८२ (१२) एक मुनि । इनसे धर्मश्रवण कर पूर्वधातकीखण्ड के मंगलावती देश में रत्नसंचय नगर के राजा कनकप्रभ ने संयम धारण किया था। मपु० ५४.१२९-१३०, १४३ (१३) भरतक्षेत्र के भोगवर्धन नगर का राजा । यह तारक का पिता था । मपु० ५८.९१ (१४) सहस्रार स्वर्ग के रविप्रिय विमान का एक देव । मपु० ५९.२१९ (१५) किन्नरगीत नगर का राजा । विद्या इसकी रानी तथा रति पुत्री थी । पपु० ५.३६६ (१६) सीता स्वयंवर में सम्मिलित एक नृप । पपु० २८.२१५ (१७) लक्ष्मण और उसकी रानी विशल्या का पुत्र । पपु० ९४.२७२८, ३० श्रोषरसेन-महावीर-निर्वाण के पश्चात् हुए मुनियों में स्वामी दीपसेन मुनि के बाद हुए एक मुनि । हपु० ६६.२८ श्रीधरा--विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में धरणीतिलक नगर के राजा अतिबल और रानी सुलक्षणा की पुत्री । यह अलका नगरी के राजा सुदर्शन के साथ विवाही गयी थी। इसने गुणवती आयिका से दीक्षा लेकर तप किया । तपश्चरण अवस्था में पूर्वभव के वैरी सत्यघोष के जीव अजगर ने इसे निगल लिया। अतः मरकर यह कापिष्ठ स्वर्ग के रुचक विमान में उत्पन्न हुई। मपु० ५९.२२८-२३८, हपु० २७. ७७-७९ श्रीधर्म-(१) जम्बद्वीप के विदेहक्षेत्र सम्बन्धी विजयागिरि का एक म्बूद्वाप क विदहक्षत्र सम्बन्धी विजयागिरि का एक विद्याधर । इसकी श्रीदत्ता रानी थी। विभीषण नारायण का जीव नरक से निकलकर इसका श्रीदास नाम का पुत्र हुआ था। हपु० २७.११५-११६ (२) एक चारण मुनि । कृष्ण की पटरानी सत्यभामा के पूर्वभव के जीव हरिवाहन ने इन्हीं से दीक्षा ली थी तथा अन्त में सल्लेखना सल्लखना पूर्वक मरकर ऐशान स्वर्ग में उत्पन्न हुआ था। हपु० ६०.१०, २०-२१ (३) तीर्थकर सुव्रत (मुनिसुव्रत) के पूर्वभव का जीव । पपु० २०. २२-२४ श्रीधर्मा-(१) उज्जयिनी नगरी का राजा । श्रीमती इसकी रानी थी। बलि, बृहस्पति, नमुचि और प्रह्लाद ये चार इस राजा के मन्त्री थे। इन मन्त्रियों ने श्रुतसागर मुनि से वाद-विवाद में पराजित होकर उन्हें मारने का उद्यम किया था जिससे कुपित होकर इसने उन्हें देश से निकाल दिया था। हपु० २०.३-११ (२) ऐरावत क्षेत्र की अयोध्या नगरी के राजा श्रोवर्मा और रानी सुसीमा का पुत्र । यह मुनिके पास संयमी हो गया था । अन्त में संयम पूर्वक मरकर यह ब्रह्मस्वर्ग में देव हुआ। मपु० ५९.२८२-२८४ श्रीष्वज-बलदेव के उन्मुण्ड, निषध आदि अनेक पुत्रों में एक पुत्र । इसने कृष्ण और जरासन्ध के बीच हुए युद्ध में कृष्ण की ओर से युद्ध किया था । हपु० ४८.६६-६८,५०.१२४ श्रीनन्दन-प्रभापुर नगर का राजा। सप्तर्षि नाम से प्रसिद्ध सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयलालस और जयमित्र इसके पुत्र थे। ये सभी धरणी नाम की रानी से उत्पन्न हुए थे । डमरमंगल नामक एक मास के पौत्र को राज्य देकर इसने और इसके सभी पुत्रों ने प्रीतिकर मुनि से दीक्षा ले ली थी। इसके पुत्र मुनि होकर सप्तर्षि हुए तथा इसने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। पपु० ९२.१-७ श्रीनाग-(१) जम्बुद्वीप के कच्छकावती देश का एक पर्वत । वीतशोक नगर के राजा वैश्रवण ने इसी पर्वत पर श्रीनागपति मुनि से धर्मश्रवण कर तप धारण किया था । मपु० ६६.२, १३-१४ (२) सीमन्त पर्वत पर विराजमान मुनि । ये हरिषेण चक्रवर्ती के दीक्षागुरु थे। मपु० ६७.६१, ८५-८६ श्रीनागपति-एक मुनि । ये वीतशोक नगर के राजा वैश्रवण के दीक्षागुरु __ थे। मपु० ६६.२, १३-१४ दे० श्रीनाग श्रीनिकेत-विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी का चालीसवाँ नगर । इसका दूसरा नाम श्रीनिकेतन था । मपु० १९.८४, ८७, हपु० २२.८९ श्रीनिचय-प्रभापुर नगर के राजा श्रीनन्दन और रानी धरणी का पुत्र । इसके छः भाई और थे। सातों भाई प्रीतिकर मुनि से दीक्षित होकर सप्तर्षि नाम से विख्यात हुए । इन मुनियों के तप के प्रभाव से चमरेन्द्र द्वारा मथुरा में फैलाई गई महामारी बीमारी नष्ट हो गयी थी । पपु० ९२.१-९ दे० श्रीनन्दन श्रीनिलय–सौधर्म स्वर्ग का एक विमान । राना सिंहनन्दिता का जीव इसी विमान में विद्युत्प्रभा नाम की देवी हुई थी। मपु० ६२.३७५ श्रीनिलया-एक वापी। यह मेरु पर्वत को पश्चिमोतर (वायव्य) दिशा में विद्यमान चार वापियों में चौथो वापी है । हपु० ५.३४४ श्रीनिवास-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १७४ श्रीपति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११२ श्रीपद्म-(१) एक मुनि । पुष्करद्वीप सम्बन्धी सुगन्धि देश में श्रीपुर Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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