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________________ बैन पुराणकोश श्रीचन्द्रा-श्रोधर : ४०९ (५) मेरु पर्वत की पश्चिम दिशा में स्थित क्षेमपुरी नगरी के (३) महापुर नगर के राजा छत्रच्छाय की रानी। यह वृषभध्वज राजा विपुलवाहन और रानी पद्मावती का राजपुत्र । इसने समाधि- की जननी थी। पपु० १०६.३९,४८ दे० वृषभध्वज गुप्त मुनिराज से धर्मोपदेश सुनकर घृतिकान्त पुत्र को राज्य सौपकर (४) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र संबंधी शंख नगर के निवासी देविल मुनि दीक्षा ले ली थी। अन्त में समाधिमरण करके यह ब्रह्म स्वर्ग वैश्य और उसकी बन्धुश्री स्त्री की पुत्री। इसने मुनि सर्वयश से का इन्द्र हुआ। इस स्वर्ग से चयकर यह दशरथ का पद्म (राम) अहिंसावत लेते हुए धर्मचक्र-व्रत किया था। आर्यिका सुव्रता के वमन नामक ज्येष्ठ पुत्र हुआ । पपु० १०६.७५-७६, १०९-११९, को देखकर घृणा करने के फलस्वरूप कनकधी को पर्याय में इसका १७२-१७३ पिता मारा गया और इसका अपहरण हुआ । मपु० ६२.४९४-४९५ श्रीचन्द्रा--(१) मेरु की वायव्य दिशा में विद्यमान दूसरी वापी । (५) जम्बूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र संबंधी गान्धार देश में विन्ध्यपुर के हपु० ५.३४४ धनमित्र वणिक् की स्त्री। यह सुदत्त की जननी यी। मपु० (२) वानरवंशी राजा विद्युत्केश की रानी । पपु० ६.२३६-२३८ ६३.१००-१०१ (३) सुजन देश में नगरशोभनगर के राजा दृढ़मित्र के भाई (६) जम्बूद्वीप में राजपुर नगर के श्रेष्ठो धनपाल की पत्नी। सुमित्र और उसकी वसुन्धरा रानी को पुत्री । वनगिरि नगर के वरदत्त की यह जननी थी। मपु० ७५.२५६-२५९ राजकमार वनराज ने इसका अपहरण कराया था। इसके किन्नमित्र श्रीदाम--राजा श्रीधर्म और रानी श्रीदत्ता का पुत्र । हपु० २७. ११६ और यक्षमित्र ने वनराज से युद्ध भी किया था किन्तु वे पराजित हाश्रीना-२ गये थे। अन्त में जीवन्धर ने उसे हराया और इसका विवाह श्रीवामा-(१) राम की चौथी महादेवी । पपु० ९४.२०-२५ नंदाढ्यकुमार के साथ कराया था। मपु० ७५.४३८-४३९, ५२१ (२) नागनगर के राजा कुलकर की रानी । पपु० ८५.६०-६२ श्रोतिलक-भरतक्षेत्र की काकन्दी नगरी के एक साधु । शामली नगर दे० कुलंकर के वसुदेव और सुदेव न इन्ह उत्तम भावा स आहार दिया था जिसक श्रीदेव-एक प्रभावशाली राजा । यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था। फलस्वरूप वे अपनी-अपनी स्त्री सहित भोगभूमि में उत्पन्न हुए थे। हपु ३१.३१ पपु० १०८.३९-४२ श्रीदेवी-(१) अयोध्या के राजा धरणीधर की रानी । यह त्रिदशंजय श्रीवत्त-(१) भगवान् महावीर की मूल परम्परा में लोहाचार्य के की जननी थी । पपु० ५.५९-६० पश्चात् हुए चार आचार्यों में दूसरे आचार्य । विनयदत्त इनके पूर्व (२) नित्यालोक नगर के राजा नित्यालोक की रानी । रत्नावली तथा शिवदत्त और अर्हदत्त बाद में हुए थे। ये चार अंग-पूर्वो के की यह जननी और दशग्रीव की सास थी । पपु० ९.१०२-१०३ एक देश ज्ञाता थे। वीवच० १.५०-५२ (३) राजा सूर्य की रानी । तीर्थकर कुन्थुनाथ की ये जननी थीं। (२) समन्तभद्र के एक उत्तरवर्ती आचार्य । मपु० १.४४-४५ पपु० २०.५३ (३) मृणालवती नगरी का एक सेठ । इसकी सेठानी विमलश्री श्रीषर-(१)विजयाई पर्वत को दक्षिणश्रेणी का दसवाँ नगर । मपु० और पुत्री रतिवेगा थी। मपु० ४६.१०५, पापु० ३.१८९-१९० १९.४०, ५३ (४) विद्याधर श्रीविजय का पुत्र । श्रीविजय इसे राज्य सौंपकर (२) भरतक्षेत्र संबंधी जयन्त नगर का राजा । श्रीमती इसकी दीक्षित हो गया था। मपु० ६२.४०८, पापु० ४.२४३-२४५ रानी तथा विमलश्री पुत्री थी । मपु० ७१.४५२-४५३, हपु० (५) भरतक्षेत्र के मलय देश में रत्नपुर नगर के वैश्रवण सेठ का पुत्र । इसकी मां का नाम गौतमी था । मपु० ६७.९०-९९ (३) एक मुनि । ये मगध देश में राजगृह नगर के राजा विश्व(६) जम्बूद्वीप-भरतक्षेत्र की कौशाम्बी नगरी के राजा सिद्धार्थ भूति के दीक्षागुरु थे। मपु० ७४.८६, ९१, वोवच० ३.१५-१७ का पुत्र । सिद्धार्थ ने इसे राज्य देकर संयम धारण किया था। (४) राजा सोमप्रभ के पुत्र जयकुमार का पक्षधर एक राजा । मपु० ६९.२-४, ११-१४ मपु० ४४.१०६-१०७, पापु० ३.५६, ९४-९५ भोवत्ता-(१) भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के पुरोहित सत्यवादी श्रीभूति (५) तीर्थंकर ऋषभदेव के पूर्व भव का जीव-ऐशान स्वर्ग के श्रीप्रभ की पल्ली। श्रोभूति धरोहर के रूप में रखे गये सुमित्रदत्त के रत्नों को विमान का ऋद्धिधारी देव । मपु० ९.१८२, १८५, हपु० ९.५९, नहीं देना चाहता था। रामदत्ता रानी ने जुए में श्रीभूति की अंगूठी २७.६८ जीत कर अँगूठी इसके पास भेजते हुए सुमित्रदत्त के रत्न इससे (६) श्रीधर और धर्म दो चारण मुनियों में प्रथम मुनि । इन्होंने मँगवा लिये थे। इससे रानी के द्वारा श्रीभूति को बहुत कष्ट उठाना गन्धमादन पर्वत पर पर्वतक भील को व्रत धारण कराया था। हपु० पड़ा । हपु० २७.२०-४३ दे० रामदत्ता ६०.१०, १६-१८ (२) जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र संबंधी विजया के राजा श्रीधर्म की (७) कृष्ण की पटरानी सत्यभामा के पूर्वभव के जीव हरिवाहन रानी। विभीषण के जीव श्रीराम की यह जननी थी। हपु० २७.११५ विद्याधर के पिता, अलका नगरी के राजा महाबल के दीक्षा गुरु एक चारण मुनि । हपु० ६०.१७-१९ ५२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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