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________________ ३७४ : जैन पुराणकोश विपुला-विभोषण वीतभय लान्तवेन्द्र हुआ। नरक में जाकर लान्तवेन्द्र ने इसे समझा या था। नरक से निकलकर यह जम्बद्वीप के विदेहक्षेत्र में विजया पर्वत पर श्रीधर्म राजा और श्रीदत्ता रानी का श्रीदाम पुत्र, महापुराण के अनुसार जम्बद्वीप के ऐरावत क्षेत्र की अयोध्या नगरी के राजा श्रीवर्मा और रानी सुसीमा के श्रीधर्मा नामक पुत्र होगा। मपु० ५९. २७७-२८३, हपु० २७.१११-११६ (२) पुष्करद्वीप के विदेहक्षेत्र में स्थित मंगलावती देश में रत्नसंचय नगर के राजा श्रीषेण का पुत्र । यह श्रीवर्मा का भाई था। यह नारायण था और इसका बड़ा भाई श्रीवर्मा बलभद्र था। मपु० ७. ये पल्य के करोड़वें भाग जीवित रहकर स्वर्ग गये थे। महापुराण में इन्हें विमलवाहन नाम दिया है। ये पद्म प्रमाण आयु के धारक थे । शरीर की ऊंचाई सात सौ धनुष थी। इन्होंने हाथी, घोड़ा आदि सवारी के योग्य पशुओं पर कुथार, अंकुश, पलान, तोबरा आदि का उपयोग कर सवारी करने का उपदेश दिया था। पपु० ३.११६-११९, हपु० ७.१५५-१५७, पापु० २.१०६ विपुला-मिथिला के राजा वासवकेतु की रानी। यह जनक की जननी ___थी । पपु० २१.५२-५४ विपुलाचल-राजगृह नगर की पाँच पहाड़ियों में तीसरी पहाड़ी । यह राजगृह नगर के दक्षिण-पश्चिम दिशा के मध्य में त्रिकोण आकृति से स्थित है । इन्द्र ने तीर्थकर महावीर के प्रथम धर्मोपदेश के लिए यहाँ समवसरण रचा था। तीर्थकर महावीर विहार करते हुए संघ सहित यहाँ आये थे। गौतम गणधर का तपोवन इसी पर्वत के चारों ओर था । जीवन्धर-स्वामी इसी पर्वत से कर्मों का नाश करके मोक्ष गये । इसका अपर नाम विपुलाद्रि है । मपु० १.१९६, २.१७, ७४.३८५, ७५.६८७, पपु० २.१०२-१०९, हपु० ३.५४-५९, वीवच० १९.८४ दे० राजगृह विपृथु पाण्डवों का पक्षधर एक कुमार । यह अनेक रथों से युक्त था। कौरवों का वध करना इसका लक्ष्य था । हपु० ५०.१२६ , विप्रयोदि-राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का बहत्तरवां पुत्र । पपु० ८.२०१ विभंग-विबोध-मिथ्या अवधिज्ञान । नारकियों को पर्याप्तक होते ही यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है । यही कारण है कि वे पूर्वभव के वैर विरोध का स्मरण कर लेते हैं । उन्हें नरक के दुःख भोगने के कारण भी इससे याद आ जाते हैं। कमठ के जीव शम्बर असुर ने इसी ज्ञान से अपने पूर्वभव का वैर जाना था और उसने तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ पर अनेक उपसर्ग किये थे। मपु० १०.१०३, ४६.२४९, ७३.१३७-१३८, वीवच० ३.१२०-१२८ विभंगा-पूर्व और अपर विदेह की इस नाम से विख्यात बारह नदियाँ । उनके नाम है-हृदा, हृदवती, पंकवती, तप्तजला, मत्तजला, उन्मत्तजला, क्षीरोदा, सीतोदा, स्रोतोऽन्तर्वाहिनी, गन्धमालिनी, फेनमालिनी और ऊर्मिमालिनी । मपु० ६३.२०५-२०७ विभय-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२४ विभव--सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११८, १२४ विभावसु-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. ११० विभीषण-(१) पूर्व धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व मेरु सम्बन्धी पश्चिम विदेह में स्थित गन्धिला देश की अयोध्या नगरी के राजा अर्हद्दास • और रानी जिनदत्ता का पुत्र । यह नारायण था। बलभद्र वीतभय इसके बड़े भाई थे। आयु का अन्त होने पर यह रत्नप्रभा पहली । पृथिवी में, महापुराण के अनुसार दूसरी पृथिवी में उत्पन्न हुआ और (३) एक राजा । इसको रानी प्रियदत्ता तथा पुत्र वरदत्त था । मपु० १०.१४९ (४) अलंकारपुर के राजा रत्लश्रवा और रानी केकसी का पुत्र । इसके दशानन और भानुकर्ण ये दो बड़े भाई तथा चन्द्रनखा बड़ी बहिन थी । इसने और इसके दोनों भाइयों ने एक लाख जपकर सर्वकामान्नदा नाम की आठ अक्षरोंवाली विद्या आधे ही दिनों में सिद्ध कर ली थी। इसे सिद्धार्थी, शत्रुदमनी, नियाघाता और आकाशगामिनी चार विद्याएं सहज ही प्राप्त हुई थीं। इसका विवाह दक्षिणश्रेणी में ज्योतिःप्रभ नगर के राजा विशुद्धकमल और रानी नन्दनमाला की पुत्री राजीवसरसी के साथ हुआ था। इन्द्र विद्याधर को जीतने में इसने रावण का सहयोग किया था। केवली अनन्तबल से हनुमान के साथ इसने भी गृहस्थों के व्रत ग्रहण किये थे । सागरबुद्धि निमित्तज्ञानी से राजा दशरथ को रावण की मृत्यु का करण जानकर इसने राजा दशरथ और जनक को मारने का निश्चय किया था। यह रहस्य नारद से विदित होते ही दशरथ और जनक की ___ कृत्रिम आकृतियाँ निर्मित कराई गयीं थी । उनसे सिर काटकर प्रथम तो इसे हर्ष हुआ किन्तु वे कृत्रिम आकृतियाँ थीं यह विदित होने पर आश्चर्य करते हुए शान्ति के लिए इसने बड़े उत्सव के साथ दानपूजादि कर्म किये थे । सीता-हरण करने पर इसने रावण की परस्त्री अभिलाषा को अनुचित तथा नरक का कारण बताया था। इसने सीता को लौटाने का उससे निवेदन भी किया था। इससे कुपित होकर रावण ने इसे असि-प्रहार से मारना चाहा और इसने भी अपने बचाव के लिए वजमय खम्भा उखाड़ किया था। अन्त में यह लंका से निकलकर राम से जा मिला । इसने रावण से युद्ध भी किया। रावण के मरने पर शोक-वश इसने आत्मघात भी करना चाहा किन्तु राम ने समझाकर ऐसा नहीं करने दिया। राम ने इसे लंका का राज्य दिया । यह शासक बना और लंका में रहा । अन्त में यह राम के साथ दीक्षित हो गया । महापुराण में इसे जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के मेघकूट नगर के राजा पुलस्त्य और रानी मेघधी का पुत्र बताया है। अणुमान को रावण के पास राम का सन्देश कहने के लिए यही ले गया था। विद्याधरों के दुर्वचन कहने पर इसने उन्हें रोका था। रावण के राम को तृण तुल्य समझने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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