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________________ ११८: मैनपुराणकोश नगर हैं । पपु० ६.२१०, ४३.३३-३४, हपु० २२.८५-१०१, दे० विजयार्थ-३ विद्याधरवंश - पौराणिक चार महावंशों में तीसरा महावंश विद्याधर नमि इस वंश का प्रथम राजा था। नमि के पश्चात् उसका पुत्र रत्नमाली राजा हुआ। इसके पश्चात् रत्नवज्र, रत्नरथ, रत्नचित्र, चन्द्ररथ, गंध, वचसेन, बावंष्ट्र, वचध्वज, बच्चायुम, वज्र, सुवज्र, वज्रभृत, वज्राभ, वज्रबाहु, वज्रसंज्ञ, वज्रास्य, वज्रपाणि, वज्रजा, वावान्, विद्युन्मुख, सुवक्त्र, विद्य द्वेष्ट्र विद्युत्वान्, विद्यदाम, विद्वेग, राजा हुए इन राजाओं के पा विद्युदृढ़ राजा हुआ । यह दोनों श्र ेणियों का स्वामी था । यह दृढ़रथ पुत्र को राज्य सौंप कर तप करते हुए मरकर स्वर्ग गया । इसके पश्चात् अश्वधर्मा, अश्वायु, अश्वध्वज, पद्मनिभ, पद्ममाली, पद्मरथ, सिंहयान, मृगोद्धर्मा, सिंहसप्रभु, सिंहकेतु, शशांकमुख, चन्द्र, चन्द्रवार इन्द्र चन्द्ररथ, चक्रवर्मा, चक्रायुध, चक्रम्बल, मणिद्रीय, मयंक, मणिभासुर मणिस्यन्दन, मध्यास्य विम्बोष्ठ, लम्बितावर, रक्तोष्ठ, हरिचन्द्र, पूश्चन्द्र, पूर्णचन्द्र, बालेन्दु, चन्द्रचूड, व्योमेन्दु, उडुपालन, एकजुड, द्विचूड, त्रिचूड, वज्रचूड, भूरिचूड, अर्कचूड, वह्निजटी, वह्नितेज, इसी प्रकार इस वंश में और भी राजा हुए। इनमें अनेक नृप पुत्रों को राज्य सौंपते हुए कर्मों का क्षय करके सिद्ध हुए हैं। ०५.३, १६-२५, ४०-५५ विद्यानिधि - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१४१ - विद्यानुवादों में दस पूर्व इसका अपर नाम विद्यानुवाद है। इसमें एक करोड़ दस लाख पद है। इन पदों में अंगुष्ठ, प्रवेग आदि सात सौ लघु विधाएँ और रोहिणी आदि पाँच सो महाविधानों का वर्णन है । पु० २.९९, १०.११३-११४ विद्यामन्दिर - आदित्यपुर का राजा एक विद्याधर । वेगवती इसकी रानी तथा श्रीमाला पुत्री थी । पपु० ६.३५७-३५८, ३६३ विद्याविच्छेदिनी - एक विद्या। इससे वैतालिक क्रिया का विच्छेद किया जाता था । यह विद्या विद्याधरों के पास होती थी । मपु० ६२.२३४ २३९ विद्यासंवावगोष्ठी-विद्या-सम्बन्धी विषयों पर चर्चा करने के लिए आयोजित एक सभा । मपु० ७.६५ विद्यासमुखात रत्यपुर नगर के राजा विद्यांग और रानी लक्ष्मी का पुत्र । यह विद्यावरों का स्वामी था । पपु० ६.३९० । वोर सुरम्य देश के प्रसिद्ध पोदनपुर के राजा विद्याज और रानी विमलमती का पुत्र इसका मूल नाम यद्यपि विद्युत्प्रभ था परन्तु यह इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह तन्त्र-मन्त्र आदि के द्वारा किवाड़ खोलना, अदृश्य होकर रहना आदि जानता था । जम्बूस्वामी के पिता सेठ दास के घर यह धन चुराने आया था वहाँ इसे उदासी का कारण पूछने दीक्षा लेना बताया था जम्बूस्वामी की माँ उदास दिखाई दी थी। पर जिनदासी ने इसे प्रातः जम्बूस्वामी का Jain Education International विद्यार उन्हें दीक्षा से रोकनेवाले को मनचाहा घन दिये जाने की उसने घोषणा की थी । यह सुनकर इसे बोध जागा । इसने अपने को बहुत धिक्कारा इसने सोचा था कि ये जम्बूस्वामी है जो भोग सामग्री रहते हुए भी विरक्त होना चाहते हैं और मैं यहाँ धन चुराने के लिए आया हूँ । इन विचारों के साथ यह जम्बूस्वामी के पास गया । वहाँ इसने अनेक कहानियाँ सुनाकर जम्बूस्वामी को संसार की विरक्ति से रोकने का यत्न किया किन्तु जम्बूस्वामी कहानियों के माध्यम से ही इसे निरुत्तर करते रहे । यह जम्बूस्वामी को विरक्ति से न रोक सका, किन्तु यह स्वयं ही विरक्त हो गया । मपु० ४६.२८९, २९४३४२, ७६.५३-१०८ विद्युज्जिह्न - रावण का पक्षधर एक योद्धा । पपु० ५७.५० विद्युत्कर्ण - राम का पक्षधर एक योद्धा । पपु० ५८.१२ विद्युत्कान्त - विजयार्घ पर्वत की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । प्रभंजन यहाँ का राजा और विद्याधर अमिततेज उसका पुत्र था। मपु० ६८. २७५ विद्य कुमार पाताललोक में रहनेवाले देवों में एक प्रकार के भवनवासी देव । हपु० ४.६४-६५ विद्युत्केतु - राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३५ - विद्य स्केश - लंका का राजा। यह राक्षसवंशी था । श्रीचन्द्रा आदि इसकी अनेक रानियाँ थीं । श्रीचन्द्रा को एक वानर ने नोंच लिया था जिससे कुपित होकर इसने उस वानर को मार कर घायल कर दिया था । यह वानर घायल अवस्था में मुनि संघ के निकट पृथिवी पर भागते हुए गिर गया था । मुनियों के पंच-नमस्कार मंत्र का उपदेश देने से वानर मरकर महोदधिकुमार नामक भवनवासी देव हुआ । इस देव ने इसे कर्त्तव्य-बोध कराया। यह इसे अपने गुरु के पास ले गया। वहीं दोनों ने गुरु से धर्म का उपदेश सुना और अपना पूर्वभव ज्ञात किया । इससे इसे प्रबोध हुआ । अपने पुत्र सुकेश को अपना पद सौंप कर इसने दीक्षा ले ली तथा समाधिमरण के प्रभाव से उत्तम देव हुआ । इसकी दीक्षा के समाचार पाकर महोदधिकुमार ने भी विरक्त होकर दीक्षा ले ली । पपु० ६.२२३-३५० विद्याकाशाकिनगर के राजा विद्याधर महोदधि की रानी। इसके एक सौ आठ पुत्र थे । पपु० ६.२१८-२२० विद्युत् (१) मेर के दक्षिण-पश्चिम कोण में स्थित स्वर्णमय एक पर्वत । इसके नौ कूट हैं - १. सिद्धकूट २ विद्युत्प्रभकूट ३. देवकुरुकूट ४. पद्मककूट ५. तपनकूट ६. स्वस्तिककूट ७. शतज्वलकूट ८. सीतोदाकूट और हर १.२१२, २२२-२२३ ( २ ) इस नाम के पर्वत का दूसरा कूट । हपु० ५.२२२ (१) यदुवंशी राजा अन्धकवृष्णि के पुत्र राजा हिमवान् का प्रथम पुत्र । माल्यवान् और गन्धमादन इसके भाई थे । हपु० ४८.४७ (४) विजयार्ध पर्वत को उत्तरश्रेणी में स्थित चौथा नगर । मपु० १९.७८, ८७, हपु० २२.९० (५) हेमपुर नगर के राजा कनकद्य तिका पुत्र । राजा महेन्द्र ने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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