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________________ विदेह विद्यार १६.१५५, ७४.२५१-२५२, पु. ११.७५ प १.७१-७७, वीवच० ७.२-३, ८-१० (३) विदेह देश का एक नगर । गोपेन्द्र यहाँ का राजा था। मपु० ७५.६४३ विदेहकूट निवाल के नौ कूटों में आठ कूट। इसकी ऊंचाई और मूल की चौड़ाई सौ योजन मध्य की चौदाई पचहतर योजन और ऊर्ध्व भाग की चौड़ाई पचास योजन है । हपु० विदेहा - राजा जनक की रानी। यह सीता और थी । पपु० २६.२, १२१, दे० जनक ५.८९-९० भामण्डल की जननी विद्यांग -- रत्नपुर नगर का राजा । लक्ष्मी इसकी रानी और विद्यासमुद्धात इसका पुत्र था। पपु० ६.३९० विद्या - (१) किन्नरगीतनगर के विद्याधर श्रीधर की स्त्री और रति की जननी । पपु० ५.३६६ 3 (२) विद्यापरों को विधाऐं ये विद्याएँ शक्ति रूप होती है। इन विद्याओं के नाम है-प्रज्ञप्ति, कामरूपिणी, अग्निस्तम्भिती, उदकस्तम्भिनी, आकाशगामिनो, उत्पादिनी वशीकरणी, दशमी, आबेशिनी, माननीय, प्रस्थापिनी प्रमोहिनी, प्रहरणी, संक्रमणी आवर्तनी संप मंजनी, विपाटिनी प्रावर्तनी प्रमोदिनी, प्रहापणी, प्रभावती प्रापिनो निक्षेपियो, शर्वरी, बण्डली, मातंगी, गौरी, षडंमिका, श्रीमत्कन्या, शतसंकुला, कुभाण्डी, विरलवेगिका, रोहिणी, मनोवेगा, महावेगा, चण्डवेगा, चपलवेगा, मधुकरी, पर्णलघु, वेगावती, पीना उगवा, बेताली, महत्म्याला सर्वविद्याछेदिनी, पुद्धवीर्या यन्मोचिनी, प्रहरावरणी, भ्रामरी और अभोगिनी पद्मपुराण में इनके अतिरिक्त भी कुछ विद्याओं के नाम आये हैं । वे हैं -कामदायिनी, कामगामिनी, दुर्निवारा, जगत्कम्पा, भानुमालिनी, अणिमा, लचिमा, क्षोण्या मनः स्तम्भनकारिणी संवाहिनी, सुरभ्यंसी, कौमारी, वधकारिणी, सुविधाना, तपोरूपा, दहनी, विपुलोदरी, शुभहृदा, रजोरूपा, दिनरात्रि - विधायिनी, वज्रादरी, समाकृष्टि, अदर्शनी, अजरा, अमरा, गिरिदारणी, अवलोकिनी, अरिध्वंसी, धीरा, घोरा, भुजंगिनी, वारुणी, भुवना, अवच्या दारुणा, मदनाशिनी, भास्करी, भयसंभूति, ऐशानी, विजया जया, बन्धनी, बाराही कुटिलाकृति, चित्तोद्भवकरी, शान्ति, कौबेरी, वशकारिणी, योगेश्वरी, बलोत्सादी, चण्डा, भीति और प्रवर्षिणी । ये विद्याएँ दशानन को प्राप्त थीं । सर्वाहा, इतिसंवृद्धि, जृम्भिणी, व्योमगामिनी और निद्राणी विद्याएँ भानुकर्ण को तथा सिद्धार्था, शत्रुदमनी, निर्व्याघाता और आकाशवामिनी में चार विधाएं विभीषण को प्राप्त थीं। तोयं वृषभदेव से नमि और विनमि द्वारा राज्य की याचना किये जाने पर धरणेन्द्र ने उन दोनों को अपनो देवियों से कुछ विद्याऍ दिलवाकर सन्तुष्ट किया था । अदिति देवों ने विद्याओं के उन्हें जो आठ निकाय दिये थे वे इस प्रकार हैं- मनु, मानव, कौशिक, गौरिक, गान्धार, भूमितुण्ड, मूलवीर्यंक और शंकुक । दूसरी देवी दिति ने भी उन्हें आठ निकाय निम्न प्रकार दिए थे-मातंग, पाण्डुक, काल, स्वपाक, , Jain Education International , 1 1 1 जैन पुराणकोश: ३६७ 7 " पर्वत, वंशालय, पांशुमूल और वृक्षमूल । इन सोलह निकायों की निम्न विद्याएँ है प्रज्ञप्ति, रोहिणी, अंगारिणी, महागौरी, गौरी, सर्वविद्याप्रकर्षिणी, महाश्वेता, मापूरी, हारी, निशशाला, तिर स्कारिणी छायासंक्रामिणी, कूष्माण्डगणमाता सर्वविद्या विराजिता, आर्यकुष्माण्डदेवी अच्युता, आर्यवती गान्धारी, निति वायगण, दण्डभूतसहस्रक, भद्रकाली, महाकाली, काली और कासमुखी । इनके अतिरिक्त एकपर्णा, द्विपर्वा, त्रिपर्वा, दशपर्वा शतपथ सहस्र पर्वा लक्षपर्वा उत्पातिनी त्रिपातिनी धारिणी, अन्तविचारिणी, जगति और अग्निगति ये औषधियों से सम्बन्ध रखनेवाली विद्याएँ थीं सर्वासिद्धा, सिद्धार्या जयन्ती मंगला, जया, प्रहारसंक्रामिणी, अपस्माराधिनी विशल्यकारिणी, व्रणरोहिणी, सवर्णकारिणी और मृतसंजीवनी ये सभी तथा ऊपर कथित समस्त विद्याएँ और दिव्य औषधियाँ धरणेन्द्र ने नमि-विनमि दोनों को दी थीं। पाण्डवपुराण में महापुराण की अपेक्षा कुछ नवीन विद्याओं के उल्लेख हैं । वे विधाएँ है— प्रवर्तिनी महापतो, प्रमादिनी, पलायिनी, खवागिका, श्रीमद्गुण्या माण्डी बनेगा तालिका और उष्णतालिका। मपु० ४७.७४, ६२.३९१-४००, पपु० ७.३२५-३३४, हपु० २२.५७-७३, पापु० ४.२२९-२३६ (३) शिक्षा | रूप लावण्य और शील से समन्वित होने पर भी जन्म की सफलता शिक्षित होने में ही मानी गयी है । लोक में विद्वान् सर्वत्र सम्मानित होता है। इससे यश मिलता है और आत्मकल्याण होता है । अच्छी तरह अभ्यास की गयी विद्या समस्त मनोरथों को पूर्ण करती है। मरने पर भी इसका वियोग नहीं होता। यह धु मित्र और धन है। कन्या या पुत्र यह समान रूप से दोनों को अर्जनीय है । इसके आरम्भ में श्रुतदेवता की पूजा की जाती है । इसके पश्चात् लिपि और अंकों का ज्ञान कराया जाता है। वृषभदेव ने अपने पुत्र और पुत्रियों को विद्याभ्यास कराया था। मपु० १६.९७-१०४, १२५ विद्याकर्म- प्रजा की आजीविका के लिए वृषभदेव द्वारा उपदेशित छः कर्मों में चौथा कर्म शास्त्र लिखकर रचकर अथवा अध्ययनअध्यापन के द्वारा आजीविका प्राप्त करना विद्या कर्म है । मपु० १६.१७९-१८१, हपु० ९.३५ विद्याकोश -विद्याओं का भण्डार । अदिति देवी ने अनेक विद्या-कोश नमि और विनमि विद्याधर को दिये थे। हपु० २२.५५-५६, दे० विद्या विद्याकौशिक - रावण का सामन्त । इसने राम-रावण युद्ध में राम के विरुद्ध युद्ध किया था । पपु० ५७.५३ विद्याधर - नमि और विनमि के वंश में उत्पन्न विद्याओं को धारण करनेवाले पुरुष । ये गर्भवास के दुःख भोगकर विजयार्ध पर्वत पर उनके योग्य कुलों में उत्पन्न होते हैं। आकाश में चलने से इन्हें खेचर कहा जाता है । इनके रहने के लिए विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में पचास और उत्तरश्रेणी में साठ कुल एक सौ दस For Private & Personal Use Only 1 , , , www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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