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________________ वसुरथ-वाक् समिति यह विजय आदि अनेक धनिक रावण द्वारा अपहृता सीता सूचना देने गया था किन्तु मंतव्य प्रकट नहीं कुछ ही वर्ष जीवित रहा। इसके मर जाने से देविला ने व्रत ग्रहण कर लिये थे । मपु० ७१.३६०-३६१ दे० देविला - २ वसुरथ - कुरुवंशी एक राजा । यह राजा वसुन्धर का पुत्र और इन्द्रवीर्य का पिता था। हपु० ४५.२६-२७ वसुल - अयोध्या का एक धनी पुरुष। पुरुषों के साथ राजा राम को को वापिस ले आने के अवर्णवाद को राम के पूछने पर भी उनसे यह संकोचवश अपना कर सका था । पपु० ९६.३०-५० वसुषेण - पोदनपुर का राजा। इसकी पाँच सौ रानियाँ थीं। इनमें नन्दा इसकी सर्वप्रिय रानी थी। मलयदेश का राजा चण्डशासन इसका मित्र था । इसकी रानी नन्दा को देखकर चण्डशासन मोहित हो गया था । अतः वह उसे हरकर अपने देश ले गया था। इस दुःख से दुःखी होकर इसने मुनि श्रेय से दीक्षा ले ली थी। आयु के अन्त में यह महाप्रतापी राजा होने का निदान कर संन्यासपूर्वक मरा और सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ । मपु० ६०.५०-५७ बसुसेन (१) तीर्थंकर वृषभदेव के तीस गणचर० १२.६१ (२) जम्बूद्वीप के कच्छकावती देश में अरिष्टपुर के राजा वासव और रानी सुमित्रा का पुत्र राजा वासव सागरसेन मुनिराज से धर्मश्रवण करके विरक्त हो गया था। उसने इसे राज्य देकर दीक्षा ले ली थी। इसकी माँ कृष्ण की पटरानी लक्ष्मणा के पूर्वभव का जीव थी । पु० ६०.७५-८५ वस्तु - श्रुतज्ञान के बीस भेदों में सत्रहवाँ भेद । हपु० १०.१३ वस्तु समास - श्रुतज्ञान के बीस भेदों में अठारहवाँ भेद । हपु० १०.१३ वस्त्वोकासार - विजयार्ध पर्वत का एक नगर । यहाँ के राजा समुद्रसेन की पुत्री राजा कनकशान्ति की छोटी रानी थी । मपु० ६३.११८ दे० कनकशान्ति वस्त्र - सिले हुए कपड़े। ये रंग-बिरंगे होते थे। कुलकर सीमंकर के समय में इनका शरीर पर धारण करना आरम्भ हो गया था। मपु० ३.१०८, ५.२७८ वस्त्रांग - इच्छित वस्त्र देनेवाले कल्पवृक्ष । मपु० ९.३५-३६, ४८, हपु० ७.८०, ८७, वीवच० १८.९१-९२ वस्त्रांकित ध्वजा - समवसरण की दस प्रकार की ध्वजाओं में एक प्रकार की ध्वजा । ये प्रत्येक दिशा में एक सौ आठ होतो थीं। इनका निर्माण महोन और सफेद वस्त्रों से होता था । मपु० २२.२१९२२०, २२३ वस्वालय - ( १ ) भरत क्षेत्र के हरिवर्ष देश का एक नगर । इसी नगर में सेठ सुमुख की पत्नी वनमाला का जीव राजा वज्रचाप की विद्युन्माला नाम की पुत्री हुई थी । मपु० ७०.७४-७६ ० वज्रचाप (२) एक नगर। यह विजयार्ध पर्वत के दक्षिण में स्थित है । मपु० ६३.२५१ Jain Education International पुराणको ३५५ वस्वोक जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के विजयार्थ पर्वत की उत्तरखेगी का तेरहवाँ नगर । हपु० २२.८७ (१) निवासी देवोत्तम शुभलेश्वावाले सौम्य एवं महाष्टद्धिधारी लोकान्तिक देवम० १७.४७-५० वीच० १२. - , २-८ (२) वृषभदेव का अनुकरण करके उनके पथ से च्युत हुए साधुओं में एक साधु । यह अज्ञानवश वल्कलधारी तापस हो गया था । पपु० ४.१२६ वह्निकुमार विजदार्थ का पर्वत का एक विद्याधर अश्विनी इसकी स्त्री थी । इसके दो पुत्र थे - हस्त और प्रहस्त । रावण ने इसके इन पुत्रों को अपना मन्त्री बनाया था। पपु० ५९.१६-१७ वह्निजटी - एक विद्याधर राजा । यह विद्याधर वंश में हुए राजाओं में राजा अर्कचूड़ का पुत्र और वह्नितेज का पिता था। पपु० ५.५४ तेज - एक विद्याधर यह विद्याधरनिटी का पुत्र था। प० ५.५४० वह्निप्रभ - विद्याधरों का एक नगर। इसे लक्ष्मण ने अपने अधीन किया था । पपु० ९४.४ (२) एक ज्योतिष्क देव | इसने वंशधर पर्वत पर विराजमान देशभूषण और कुलभूषण मुनियों पर अनेक उपसर्ग किये थे वहाँ राम और लक्ष्मण के आने पर उन्हें क्रमशः बलभद्र और नारायण जानकर यह उनके भय से तिरोहित हो गया था । पपु० ३९.५९-७४ वह्निमूर्ति सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१२६ वशिख कुमुदावती नगरी के राजा चोपन का पुरोहित यह यद्यपि सत्यवादी नाम से प्रसिद्ध था, परन्तु छिपकर खोटे कर्म करता था । इसने एक बार नियमदत्त वणिक् के रत्न छिपा लिए थे । राजा की अनुमति से रानी ने इसके साथ जुमा खेलकर जुए में इसकी अंगूठी जीत ली और अंगूठी दासी के द्वारा इसके घर भेजकर नियमदत्त के रत्न मँगवा लिए थे । नियमदत्त को उसके रत्न देकर राजा ने इसका सर्व धन छीनकर उसे नगर से निकाल दिया था । यह सब होने पर इसे सुबुद्धि उत्पन्न हुई। इसने तप किया और तप के प्रभाव से यह मरकर माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुआ । पपु० ५.३८-४३ दे० रामदत्ता बह्निवे एक विद्याधर यह अरिजयपुर का राजा था। वेगवती इसकी रानो और आहल्या पुत्री थी । पपु० १३.७३-७६ दे० आहल्या बहुरव - विद्याधरों का एक नगर । इसे लक्ष्मण ने अपने अधीन किया था । पपु० ९४.६ वासमिति पांच समितियों में दूसरी समिति निन्य साधु को इसका पालन करना होता है। इसमें सदा कर्कश और कठोर वचनों का त्याग और यत्नपूर्वक धार्मिक कार्यों में हित, मित और प्रिय भाषा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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