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________________ ३५४ : जैन पुराणकोश वसुन्धरपुर-वसुमित्र (२) कुरुवंशी एक नृप । यह श्रीवसु का पुत्र और वसुरथ का पिता था । हपु० ४५.२६-२७ । (३) चक्रवर्ती जयसेन के तीसरे पूर्वभव का जीव-ऐरावत क्षेत्र के श्रीपुर नगर का राजा । यह अपने विनयन्धर पुत्र को राज्य सौंपकर संयमी हो गया था तथा आराधनापूर्वक मरण करके महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ । मपु० ६९.७४-७७ (५) राजा जीवन्धर और रानी गन्धर्वदत्ता का पुत्र । जीवन्धर ने इसे राज्य देकर संयम धारण कर लिया था। मपु० ७५.६८०-६८१ (५) दशानन का पक्षधर एक नृप । इन्द्र विद्याधर के साथ हुए रावण के युद्ध में यह रावण के साथ था । पपु० १०.२८, ३७ (६) बलभद्र नन्दिषेण के पूर्व जन्म का नाम । पपु० २०.२३३ वसुन्धरपुर-एक नगर । इस नगर के राजा विध्यसेन की पुत्री वसन्त सुन्दरी थी । हपु० ४५.७० दे० वसन्तसुन्दरी वसुन्धरा-(१) एक देवी। यह रुचकवर पर्वत के दक्षिण में विद्यमान आठ कूटों में सातवें चन्द्रकूट पर रहती है । हपु० ५.७१० (२) श्वेताम्बिका नगरी के राजा वासव की रानी। यह नन्दयशा की जननी थी। इसका अपर नाम वसुन्धरी था। मपु० ७१.२८३, हपु० ३३.१६१ (३) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश को प्रभावती अपर नाम प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमितसागर की रानी । यह अपराजित की जननी थी। मपु० ६२.४१२-४१३, पापु० ४.२४६२४७ (४) जम्बदीप के पुष्कलावती देश में उत्पलखेटक नगर के राजा वज्रबाहु को रानी । यह वज्रसंघ की जननी थी। मपु० ६.२६-२९ (५) जम्बूद्वीप के पुष्कलावती देश में उत्पलखेटक नगर के राजा वज्रबाहु की रानी । यह वज्रसंघ की जननी थी। मपु० ६.२६-२९ (६) धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश को प्रभाकरी नगरी के राजा महासेन की रानी। यह जयसेन की जननी थी। मपु० ७.८४-८६ (७) राजा यशोधर की रानी । वजदन्त इसका पुत्र था। मपु० ७.१०२ (८) सुजन-देश के नगरशोभनगर के राजा दृढमित्र के भाई सुमित्र की पत्नी । श्रीचन्द्रा इसी की पुत्री था । मपु० ७५.४३८-४३९ (९) विजया पर्वत की अलका नगरी के राजा महासेन की पुत्री। उग्रसेन और वरसेन इसके भाई थे। इसका विवाह प्रीतिकर के साथ किया गया था। इसके पिता ने इसके पुत्र प्रियंकर को राज्य सौंप करके तीर्थंकर महावीर से संयम ले लिया था। मपु० ७६.२६५, ३४६-३४७, ३८५-३८६ (१०) रावण की अनेक रानियों में एक रानी । पपु० ७७.१४ बसुन्धरी-(१) श्वेतिका नगरी के राजा वासव की रानी। मपु० ७१. २८३ दे० वसुन्धरा-२ (२) पोदनपुर नगर के निवासी विश्वभूति की पुत्र-वधू और ___ मरुभूति की स्त्री । मपु० ७३.६-१० वसुधारक-भरतेश का एक कोष्ठागार । मपु० ३७.१५२ वसुपाल-पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा। गुणपाल इसके पिता और कुबेरश्री माता थी। इसके पिता ने इसे राज्य सौंपकर तथा श्रीपाल को युवराज बनाकर तप धारण कर लिया था। मपु० ४६.२८९, २९८, ३४०-३४१, ४७.५ दे० गुणपाल वसुपूज्य-तीर्थकर वासुपूज्य का पिता । यह जम्बूद्वीप में स्थित भरतक्षेत्र की चम्पा नगरी का राजा था। जयावती इसकी रानी थी। मपु० ५८.१७-२२, पपु० २०.४८ वसुभूति-(१) पुण्डरीक नारायण के पूर्वभव के दीक्षागुरु । पपु० २०.२१६ (२) पद्मिनी नगरी के राजदूत अमृतस्वर का एक मित्र । अमृतस्वर के प्रवास में जाने पर यह भी उसके साथ गया था। यह मित्र अमृतस्वर की स्त्री उपयोगा में आसक्त था। फलस्वरूप इसने असिप्रहार से अमृतस्वर को मार डाला था। अपने पिता के मरण को कारण जानकर अमृतस्वर के पुत्र उदित और मुदित क्रोधित हुए। उदित ने इसे मारकर अपने पिता के मारे जाने का बदला लिया। यह मरकर म्लेच्छ हुआ । पपु० ३९.८४-९४ वसुमती-(१) चेदिराष्ट्र के संस्थापक अभिचन्द्र की रानी। राजा वसु की यह जननी थी। हपु० १७.३६-३७ (२) विदेहक्षेत्र के मंगलावती देश में रत्नसंचयपुर के राजा अजितंजय की रानी । यह युगन्धर को जननी थी । मपु० ७.९०-९१ (३) विजयाध पर्वत पर स्थित उत्तरश्रेणी की सत्र हवीं नगरी । मपु० १९.८० (४) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी। दिग्विजय के समय भरतेश की सेना यहाँ आयी थी। मपु० २९.६३ (५) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश के अरिष्टपुर नगर के राजा वासव की रानी । सुषेण की यह जननी थी। आयु के अन्त में मरकर यह भीलिनी हुई । मपु० ७१.४००-४०३ (६) कुबेरमित्र राजसेठ की पुत्री । यह राजा लोकपाल की रानी थी। मपु० ४६.६२ । वसमत्क-विजया की उत्तरश्रेणी का सोलहवाँ नगर । मपु० १९.८० वसुमान्-अन्धकवृष्णि और सुभद्रा का पौत्र । यह राजा स्तिमितसागर और रानी स्वयंप्रभा का पुत्र था । ऊर्मिमान् इसका बड़ा भाई तथा वीर और पाताल-स्थिर छोटे भाई थे। हपु० १८.१२-१३, १९.३, ४८.४६ दे० मिमान् वसुमित्र-(१) तीर्थकर वृषभदेव के छत्तीसवें गणधर। हपु० १२.६१ (२) कृष्ण की पटरानी जाम्बवती के पूर्व भव का पति । वीतशोकनगर के दमन वैश्य और उसकी स्त्री देवमति की पुत्री देविला की पर्याय में जाम्बवती का इससे विवाह हुआ था। यह विवाह के पश्चात् Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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