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________________ जैन पुराणकोश : ३२३ मुनि वज्रायुध का घात करने की दृष्टि से आये अतिबल और महाबल असुरों को डांटकर भगा दिया था। मपु० ६३.१३१-१३७ रम्य-एक सुन्दर क्षेत्र। यह जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर अवस्थित है । कृष्ण की चौथी पटरानी सुशीला पूर्वभव में इसी क्षेत्र के शालिग्राम नगर में यक्षिल की पुत्री यक्षदेवी हुई थी। हपु० ६०.६२-६३ रम्यक-(१) जम्बूद्वीप के सात क्षेत्रों में पाँचवाँ क्षेत्र । यह नोल और रुक्मि कुलाचल के मध्य में स्थित है। मपु० ६३.१९१, पपु० १०५. १५९-१६०, हपु० ५.१३-१५ (२) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का एक देश । इसकी रचना तीर्थङ्कर वृषभदेव की इच्छा होते ही स्वयं इन्द्र ने की थी। मपु० १६.१५२ रम्यककूट-(१) नील पर्वत के नौ कूटों में आठवाँ कूट । हपु० ५.९९ रथपुर-रविप्रभ रथपुर-भरतक्षेत्र के विजयाध पर्वत को दक्षिणश्रेणी का ग्यारहवाँ नगर । हपु० २२.९४ रथरेणु-एक क्षेत्र मापक प्रमाण । यह आठ त्रस रेणुओं के बराबर होता है । हपु० ७.३९ रथसेना-अच्युतेन्द्र की सेना की सात कक्षाओं में तीसरा सैन्य कक्ष । यह सेना अपने सेनापति के आधीन रहती है। इसमें आठ हजार हाथी होते हैं । ये सेना युद्ध के समय अश्वसेना के पीछे चलती है । संग्राम के समय इस सेना के रथ सम्बद्ध राजाओं की ध्वजाओं से युक्त होते हैं । मपु० १०.१९८-१९९, २६.७७ रथावर्त-(१) भरतक्षेत्र की हंसावली नदी का तटवर्ती एक पर्वत । मुनि आनन्दमाल ने यहीं नप किया था । मपु० ६२.१२६, ७४.१५७, पपु० १३.८२-८६, पापु० ४.६४ (२) एक पूजा । पार्श्वनाथ के पूर्वभव के जीव अयोध्या के राजा वज्रबाहु के पुत्र आनन्द ने यह पूजा की थी। मपु० ७३.४१ ४३, ५८ रथास्फा-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड को एक नदी। दिग्विजय के समय भरतेश की सेना के हाथियों ने यहाँ विचरण किया था। मपु० २९.४९ रथी-राजाओं का एक भेद। ये भेद है-अतिरथ, महारथ, समरथ, अर्धरथ और रथी । ये सामान्य योद्धा होते हैं । कृष्ण और जरासन्ध के युद्ध में ऐसे अनेक राजा दोनों पक्षों में थे। हपु० ५०.७७-८६ रन्ध्रपुर-भरतक्षेत्र का एक नगर । यहाँ का राजा सीता के स्वयंवर में आया था । पपु० २८.२१९ रमण-वाराणसी के वैश्य धनदेव और जिनदत्ता का पुत्र । इसने सागरसेन मुनिराज से धर्म सुनकर मधु-मांस आदि का त्याग कर दिया था। सिंह के उपद्रव से यह मरकर अन्त में यक्ष देव हुआ। मपु० ७६.३१९-३३१ रमणीकमन्दिर-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड एक नगर । तीर्थकर महावीर पूर्वभव में यहाँ ब्राह्मण गौतम के अग्निमित्र नामक पुत्र थे। वोवच० २.१२१-१२२ रमणीय-रत्नद्वीप के मनुजोदय-पर्वत पर स्थित एक नगर । इसे विजया की दक्षिणश्रेणी के गगनवल्लभ नगर के राजा गरुडवेग ने बसाया था। मपु० ७५.३०१-३०३ रमणीया-पूर्व विदेहक्षेत्र का एक देश । शुभा-नगरी इस देश की राजधानी थी। यह सीता नदी और निषध-पर्वत के मध्य दक्षिणोत्तर लम्बा है । मपु० ६३.२१०, २१५, हपु० ५.२४७-२४८ रम्भ-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पद्मक नगर का एक धनिक एवं गणितज्ञ-पुरुष । इसके चन्द्र और आवलि दो शिष्य थे। मुनियों को आहार देने के फलस्वरूप यह देवकुरु नामक उत्तम भोगभूमि में आर्य हुआ था । पपु० ५.११४-११६, १३५ रम्भा-(१) रावण की रानी । पपु० ७७.१२ (२) तिलोत्तमा देवी के साथ विहार करनेवाली एक देवी । इसने (२) रुक्मी पर्वत के आठ कूटों में तीसरा कूट । हपु० ५.१०२ रम्यका पूर्व विदेहक्षेत्र में विद्यमान दक्षिणोत्तर लम्बे आठ देशों में छठा देश । पद्मावती नगरी इस देश की राजधानी थी। मपु० ६३.२१०, २१४, हपु० ५.२४७-२४८ रम्यकावती-एक देश । यह पश्चिम धातकीखण्ड द्वीप में मेरु पर्वत से पश्चिम की ओर सीता नदी के दक्षिण तट पर विद्यमान है । मपु. ५९.२ रम्यपुर-विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी का अड़तीसवां नगर । हपु० २२.९८, रम्या-(१) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी। दिग्विजय के समय भरतेश की सेना यहाँ आयी थी । मपु० २९.६१ (२) पूर्व विदेहक्षेत्र का पाँचवाँ देश । अंकवती नगरी इस देश की राजधानी थी। मपु० ६३.२०८-२१४, हपु० ५.२४७-२४८ रवि-(१) लंका का राक्षसवंशी एक राजा विद्याधर । पपु० ५.३९५ (२) पद्मपुराण के कर्ता आचार्य रविषेण । इनके लक्ष्मणसेन गुरु और अहंद्यति दादा गुरु थे। पपु० १.४२, १२३.१६८, हपु० १.३४ (३) राजा वसु का पुत्र । यह पर्वत और नारद का सहपाठी था। हपु० १७.५९ रविकीति-(१) भरतेश का पुत्र । इसने जयकुमार के साथ तीर्थङ्कर वृषभदेव से दीक्षा ले ली थी। मपु० ४७.२८१-२८४ (२) रावण का एक सेनापति । इसकी ध्वजा हरिण से अंकित थी। रावण ने रणभेरी बजाने का इसे ही आदेश दिया था। और इसने भो विनयपूर्वक उसका पालन किया था। मपु० ६८.५३१ ५३२ रविचल-तेरहवें स्वर्ग के नन्द्यावर्त-विमान का एक देव । पूर्वभव म यह देव राजा अर्ककीति का पुत्र अमिततेज था । मपु० ६२.४०८-४१० रवितेज-आदित्यवंशी राजा भद्र का पुत्र । यह राजा शशी का पिता था। पपु० ५.६ रविप्रभ-(१) प्रथम स्वर्ग का विमान । मपु० ४७.२६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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