SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नसंचया-रचनेमि ३२२ : जैन पुराणकोश (४) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मंगलावती देश का एक नगर । महाबल यहाँ का राजा था। मपु० ५०.२-३, पापु० ५.११ दे० महाबल (५) पूर्व घातकीखण्ड द्वीप के मंगलावती देश का एक नगर । कनकप्रभ यहाँ का राजा था। मपु० ५४.१२९-१३०, हपु० ६०.५७ दे० कनकप्रभ रत्नसंचया-विदेह की बत्तीस नगरियों में सोलहवीं नगरी । यह विदेह के बत्तीस देशों में सोलहवें मंगलावती देश की राजधानी थी । मपु० ६३.२१०, २१५ रत्नसेन–विदेहक्षेत्र के रलपुर नगर का राजा । इसने मुनिराज कनक शान्ति को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ६३.१२७ रत्नस्थलपुर-राम के भाई भरत का एक नगर । पुराण में उल्लेख है कि सीता का जीव इसी नगर में चक्ररथ चक्रवर्ती होगा तथा रावण और लक्ष्मण के जीव इसी नगर में उसके क्रमशः इन्द्ररथ और मेघरथ नाम के पुत्र होंगे। पपु० १२३.१२१-१२२ रत्नस्थली-लक्ष्मण की रानी । इसने अपने देवर भरत के साथ जलक्रीड़ा करके उसे विरक्ति से हटाना चाहा किन्तु भरत का मन रंचमात्र भी चलायमान नहीं हुआ था। पपु० ८३.९६-१०२ रत्नांक-राम का विरोधी एक नृप। लवणांकुश की ओर से राम की सेना के साथ युद्ध के लिए तैयार ग्यारह हजार राजाओं में यह भी एक राजा था। पपु० १०२.१५६-१५७, १६७-१६८ रत्नांगव-विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित अलकानगरी के राजा अश्वग्रीव और रानी कनकचित्रा के रत्नग्रीव, रत्नचूड़, रत्नरथ आदि पाँच सौ पुत्रों में एक पुत्र । मपु० ६२.५८-६० रत्ना-जम्बद्वीप में पश्चिम विदेहक्षेत्र के चक्रवर्ती अचल की रानी । अभिराम इसका पुत्र था। पपु० ८५.१०२-१०३ रत्नाकर-विजया, पर्वत की उत्तरश्रेणी का उनसठवाँ नगर। मपु० १९.८६-८७ रत्नाकिनी-जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मत्तकोकिल ग्राम के राजा कान्तिशोक की रानी । यह बाली के पूर्वभव के जीव सुप्रभ की जननी थी । पपु० १०६.१९०-१९७ रत्नायुध-(१) जम्बूद्वीप में चक्रपुर नगर के राजा वज्रायुध और रत्न माला का पुत्र । इसके पिता ने राज्यभार इसे सौंपकर चक्रायुध के -समीप दीक्षा ले ली थी। आयु के अन्त में मरकर यह पूर्व धातकीखण्ड के पश्चिम विदेहक्षेत्र में गन्धिल देश की अयोध्या नगरी के राजा अहंदास और रानी जिनदत्ता का पुत्र विभीषण हुआ। मपु० ५९. २३९-२४३, २४६, २७६-२७९, हपु० २७.९२ (२) अश्वग्रीव का पुत्र । मपु० ६३.१३५ दे० रत्नकण्ठ रत्नावतंसिका-बलभद्र राम की माला । इसकी एक हजार देव रक्षा करते थे। राम को प्राप्त रत्नों में यह एक रल था। मपु० ६८. रत्नावर्त-एक पर्वत । एक विद्याधर श्रीपाल चक्रवर्ती को हरकर ले गया था और उसने उन्हें पर्णलघु-विद्या से इसी पर्वत की शिखर पर छोड़ा था । मपु० ४७.२१-२२ रत्नावली-(१) एक तप । इसमें एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, पुनः पाँच उपवास एक पारणा, इसके पश्चात् चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा के क्रम से तीस उपवास और दस पारणाएं की जाती हैं। इसकी सर्वप्रथम बृहविधि में एक वेला और एक पारणा के क्रम से दस वेला और दस पारणाएँ की जाती है। पश्चात् एक-एक उपवास बढ़ाते हुए सोलह उपवास और एक पारणा करने के बाद एक बेला और एक पारणा के क्रम से तीस बेला और तीस पारणाएँ की जाती है। इसके पश्चात् सोलह उपवासों से एक घटाते हुए एक उपवास और एक पारणा तक आकर एक बेला और एक उपवास के क्रम से बारह बेला और बारह पारणाएँ करने के बाद अन्त में चार वेला और चार पारणाएं की जाती हैं । इसमें कुल तीन सौ चौरासी उपवास और अठासी पारणाएँ की जाती है । यह एक वर्ष तीन मास बाईस दिन में पूरा होता है । इस व्रत से रत्नत्रय में निर्मलता आती है। मपु० ७.३१, ४४, ७१.३६७, हपु० ३४.७१, ७६, ६०.५१ (२) मोती और रत्नों तथा स्वर्ण और मणियों से निर्मित हार । इसके मध्य में मणि होता है । मपु० १६.४६, ५० (३) नित्यालोक नगर के राजा नित्यालोक और उनकी रानी श्रीदेवी की पुत्री । यह रावण की रानी थी । पपु० ९.१०२-१०३ रत्नोच्चय-रुचक पर्वत का उसकी वायव्य दिशा में विद्यमान एक कूट । यहाँ अपराजिता देवी रहती है । हपु० ५.७२६ रथ-प्राचीन काल का एक प्रसिद्ध वाहन । इसमें हाथी और घोड़े जोते जाते थे। युद्ध के समय राजा इस पर आरूढ़ होकर समरांगण में जाता था । मपु० ५.१२७, १०.१९९ रथचर-एक भूमिगोचरी राजा । राजा अकम्पन को उसके सिद्धार्थ मंत्री ने उसकी पुत्री सुलोचना के लिए योग्य वर के रूप में भूमिगोचरी राजाओं में इसका नाम प्रस्तावित किया था। पापु० ३.३५-३७ रथनपुर-भरतक्षेत्र के विजयाध पर्वत की दक्षिण दिशा का एक नगर । रावण-विजय के पश्चात् अयोध्या लौटकर राम ने भामण्डल को यहाँ का राजा नियुक्त किया था। इस नगर का अपर नाम रथनूपुरचक्रवाल था। मपु० ६२.२५, ९६, पपु० ८८.४१, हपु० ९.१३३, २२.९३, पापु० ४.११, १५.६, १७.१४ रथन पुरचक्रवाल-रथनूपुर का दूसरा नाम । मपु० १९.४६-४७, ६२. २५-२८, हपु० ३६.५६ रचनेमि-पाण्डव पक्ष का एक राजा। इसके रथ पर बैल से अंकित ध्वजा थी। रथ के घोड़े हरे थे। युद्धभूमि में जरासन्ध के सोमक दूत ने उसे इसके परिचायक चिह्न बताये थे । पापु० २०.३२०-३२१ ६७४ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy