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________________ रत्नमाला-रत्नसंचम जैन पुराणकोश : ३२१ द्वीप, मोतियों के अक्षत, अमृतपिण्ड से निर्मित नैवेद्य, कल्पवृक्षों से निर्मित धूप और फल के रूप में रत्ननिधियाँ चढ़ाई जाती है । भरतेश ने बाहुबलि के मुनि होने पर उनकी ऐसी ही पूजा की थी। मपु० ३६.१९३-१९५ रत्नमाला (१) रावण की एक रानी । पपु० ७७.१३ (२) विदेहक्षेत्र में पृथिवीतिलक नगर के राजा प्रियंकर और रानी अतिवेगा की पुत्री । अतिवेग इसके पिता और प्रियकारिणी इसकी माँ थी। इसका विवाह जम्बूद्वीप के चक्रपुर नगर के राजा अपराजित के राजकुमार वज्रायुध से हुआ था। रत्नायुध इसका पुत्र था। मपु० ५९.२४१-२४३, हपु० २७.९१ (३) हेमांगद देश में राजपुर नगर के वैश्य रत्नतेज की पत्नी। यह अनुपमा की जननी थी । मपु० ७५.४५०-४५१ दे० अनुपमा रत्नमालिनी-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की एक नदी । चम्पापुरी के धनिक भानुदत्त का पुत्र चारुदत्त जल-विहार के लिए यहाँ आया था। हपु० २१.६-१४ रत्नमाली-(१) विद्याधर नमि का पुत्र और विद्याधर रत्नवज्र का पिता । पपु० ५.१६ (२) विजया पर्वत के शशिपुर नगर का राजा । विद्युल्लता इसकी पत्नी तथा सूर्यजय पुत्र था । पपु० ३१.३४-३५ रत्नमुक्तावली-एक व्रत । इसमें एक-एक का अन्तर देते हुए सोलह अंक तक लिखकर आगे एक-एक अंक कम करते हुए एक अंक तक लिखने के पश्चात् उन अंकों के अनुसार इसमें दो सौ चौरासी उपवास और उनसठ पारणाएं की जाती है। इसमें कुल तीन सौ तेतालीस दिन लगते हैं । रत्नत्रय प्राप्ति इसका फल है । प्रस्तार क्रम निम्न प्रकार बनाया जाता है-१, १, २, १, ३, १, ४, १, ५, १,६, १, ७, १,८,१, ९, १, १०, १, ११, १, १२, १, १३, १, १४, १, १५,१,१६, १,१५, १,१४, १, १३, १, १२, १, ११, १,१०, १, ९, १, ८, १, ७, १, ६, १, ५, १, ४, १, ३, १, २, १, १, १, हपु० ३४.७२-७३ | रत्नरथ-(१) विजयार्द्ध पर्वत की दक्षिण-दिशा में स्थित रत्नपुर नगर का राजा । इसकी रानी चन्द्रानना से दामा और मनोरमा दो पुत्रियां तथा हरिवेग, मनोवेग और वायुवेग ये तीन पुत्र हुए थे। राम और लक्ष्मण ने इसे युद्ध में पराजित करके राम ने इसकी श्रीदामा पुत्री को तथा लक्ष्मण ने मनोरमा को विवाहा था । पपु० ९३. १-५७ ___ (२) विद्याधर निम का वंशज एक विद्याधर । यह रत्नवज्र का पुत्र और रत्नचित्र का पिता था । पपु० ५.१६-१७ (३) भरतक्षेत्र में अरिष्टपुर नगर के राजा प्रियव्रत और रानी पद्मावती का पुत्र । राजा की दूसरी रानी कांचनाभा का पुत्र विचित्ररथ इसका भाई था । इसने श्रीप्रभा को विवाहा था । अन्त में यह तप करके स्वर्ग में देव हुआ । पपु० ३९.१४८-१५७ (४) विजया पर्वत की उत्तर श्रेणी में अलका नगरी के राजा अश्वग्रीव और रानी कनकचित्रा का एक पुत्र । मपु०६८.५८-६१ रत्नराशि-तीर्थकर की माता द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में पन्द्रहवाँ स्वप्न । पपु० २१.१२-१५ रनवन-विद्याधर नमि का पौत्र । यह रत्नमाली का पुत्र तथा रत्नरथ का पिता था। पपु० ५.१६ रत्नवती-(१) भरत की भाभी । पपु० ८३.९४ (२) विदेह देश में विदेहनगर के राजा गोपेन्द्र और रानी पृथिवीसुन्दरी की पुत्री । इसका विवाह सत्यंधर के पुत्र जीवन्धरकुमार से हुआ था । मपु० ७५.६४३-६५२ (३) राजा वसुदेव की रानी । रत्नगर्भ और सुगर्भ इसके पुत्र थे । हपु० २४.३६, ४८.५९ रलवीर्य-(१) साकेत का एक राजा। अन्धकवृष्णि तीसरे पूर्वभव में इसी राजा की नगरी अयोध्या में रुद्रदत्त नामक ब्राह्मण था । हपु० १८.९७-११० (२) मथुरा का राजा। इसकी दो रानियाँ थीं-मेघमाला और अमितप्रभा। मेघमाला के पुत्र का नाम मेरु और अमितप्रभा के पुत्र का नाम मन्दर था। ये दोनों पुत्र दीक्षित हुए। इनमें मेरु केवली होकर मोक्ष गया और मन्दर तीर्थङ्कर श्रेयांस का गणधर हुआ। हपु० २७.१३५-१३८ रत्नवृष्टि-तीर्थङ्करों की गर्भावस्था के समय होनेवाले दस अतिशयों में एक अतिशय-रत्नवर्षा । कुबेर तीर्थंकरों के पिता के आंगन में उनके गर्भावतार के छ: मास पहले से जन्म-पर्यन्त पन्द्रह मास ऐसी वर्षा करता है । मपु० १२.९७ रत्लश्रवा-अलंकारपुर नगर के राजा समाली और रानी प्रीतिमती का पुत्र । अपने वंश परम्परा से प्राप्त विभूति को विद्याधर इन्द्र द्वारा छोड़े जाने पर उसे पुनः पाने के लिए मानस्तम्भिनी विद्या सिद्ध करनी चाही । यह पुष्पवन गया। वहाँ इसकी सहायता करने व्योमबिन्दु ने अपनी पुत्री केकसी को नियुक्त किया था । तप के पश्चात् इसने केकसी का परिचय ज्ञात किया । इसी समय उसे विद्या सिद्ध हुई । विद्या के प्रभाव से इसने पुष्पान्तक नगर बसाया और केकसी को विवाह कर भोगों में मग्न हो गया। केकसी से इसके दशानन, भानुकर्ण और विभीषण ये तीन पुत्र और एक चन्द्रनखा नाम की पुत्री हुई । रावण के मरण से दुःखी होने पर विभीषण ने इसे सांत्वना दी थी। पपु० ७.१३३, १६१-१६५, २२२-२२५, ८०.३२-३३ रलसंचय-(१) विजयाध की दक्षिणश्रेणी का तेरहवां नगर । हपु० २२.९४ (२) पश्चिम विदेहक्षेत्र का एक नगर । चक्रवर्ती सगर पूर्वभव में यहाँ राजा महाघोष का पयोबल नामक राजकुमार था। पपु० ५. १३७, १३.६२ (३) पुष्करार्द्धद्वीप के पूर्व मेरु सम्बन्धी पूर्व विदेहक्षेत्र में मंगलावती देश का एक नगर। बलभद्र श्रीवर्मा और नारायण विभीषण इसी नगर में राजा श्रीधर के घर जन्मे थे। मपु० ७.१३-१५, १०.११४११५ ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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