SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३ २७० : जैन पुराणकोश : मतिसमुद्र-मथुरा मतिसमुद्र-(१) चक्रवर्ती भरत का मंत्री । इसने वृषभदेव के समवसरण स्थित एक ग्राम । बाली के पूर्वभव का जीव सुप्रभ इसी ग्राम में में सुने वचनों के अनुसार भरतेश के समक्ष ब्राह्मणों की पंचमकालीन उत्पन्न हुआ था । पपु० १०६.१९०-१९७ स्थिति का यथावत् कथन किया था। भरतेश इसे सुनकर कुपित ____ मत्तजला-पूर्व विदेह की एक विभंगा नदी । मपु० ६३.२०६, हपु० ५. हुए थे और वे ब्राह्मणों को मारने को उद्यत हुए थे किन्तु वृषभदेव २४० ने "मा-हन्" कहकर उनकी रक्षा की थी । वृषभदेव इस कारण त्राता मत्यनुपालन-क्षत्रियों का दूसरा धर्म-लोक परलोक संबंधी हिताहित कहलाये तथा "मा-हन" ब्राह्मणों का पर्याय हो गया । पपु० ४.११५- ज्ञान का पालन करना। यह अविद्या के नाश से होता है। अविद्या मिथ्याज्ञान है तथा मिथ्याज्ञान अतत्त्वों में तत्त्वबुद्धि है और तत्त्व (२) राम का एक मंत्री। इसने कथाओं के माध्यम से राम को अर्हन्त-वचन है । मपु० ४२.४, ३१-३३ यह विश्वास दिलाया था कि एक योनि से उत्पन्न होने के कारण मत्सरीकृता-षड्ज ग्राम की पांचवीं मूच्र्छना । हपु० १९.१६१ जैसा रावण दुष्ट है, वैसा विभीषण को भी दुष्ट होना चाहिए, यह मत्स्य-(१) भरतक्षेत्र के मध्य आर्यखण्ड का एक देश-महावीर की बात नहीं है। इसके ऐसा कहने पर ही विभीषण को राम के पास विहारभूमि । तीर्थकर नेमि भी विहार करते हुए यहाँ आये थे। आने दिया गया था । पपु० ५५. ५४-७१ हपु० ३.४, ११.६५, ५९.११० मतिसागर-(१) राजा श्रीविजय का मंत्री। यह सूझबूझ का धनी था। (२) एक नृप । यह रोहिणी के स्वयंवर में सम्मिलित हुआ था। निमित्तज्ञानी द्वारा पोदनपुर के राजा के ऊपर वज्रपात होना बताये हपु० ३१.२८ जाने पर इसी ने पोदनपुर के राजा श्रीविजय को वज्रपात के संकट (३) कल्पपुर नगर के हरिवंशी राजा महीदत्त का कनिष्ठ पुत्र से बचाया था। इसने राज्यसिंहासन से राजा श्रीविजय को हटाकर और अरिष्टनेमि का अनुज । इसने अपनी चतुरंग सेना से भद्रपुर राज्य-सिंहासन पर उसका पुतला स्थापित करने के लिए अन्य मंत्रियों और हस्तिनापुर को जीता था। इस विजय के पश्चात् हस्तिनापुर से कहा था। सभी मंत्रियों ने इसकी बुद्धि की प्रशंसा करते हुए को इसने निवास स्थान के रूप में चुना था। इसके अयोधन आदि पुतले की सिंहासन पर स्थापना की थी तथा वे पोदनाधीश की सौ पुत्र हुए थे । अन्त में यह ज्येष्ठ पुत्र को राज्य सौंपकर दोक्षित हो कल्पना से उसे नमस्कार करने लगे थे। राजा ने राज्य त्यागकर गया था। हपु० १७.२९-३१ जिनमन्दिर में जिन पूजन आरम्भ की थी। वह दान देने लगा, कों (४) मन्दिर ग्राम का एक धीवर । मण्डू की इसकी पत्नी तथा की शान्ति के लिए उसने उत्सव किये। परिणामस्वरूप सातवें दिन पूतिका पुत्री थी। मपु० ७१.३२६ उस पुतले के ऊपर वचपात हुआ और राजा इस उपसर्ग से बच (५) जल-जन्तु-मछली । ये जल में ही रहती है। ये मरकर सातवीं गया । मपु० ६२.१७२, २१७-२२४, पापु० ४.१२९-१३५ नरकभूमि तक जाती है। चरणतल में इनकी रेखांकित रचना शुभ (२) पूर्व विदेह क्षेत्र के अमृतस्राविणी ऋद्धि के धारी एक मुनि- मानी गयी है । मपु० ३.१६२, ४.११७, १०.३०, पपु० २६.८४ राज । इन्होंने प्रहसित् और विकसित दो विद्वानों को जीव-तत्त्व मत्स्यगन्धा-राजा शान्तनु की पुत्री । लोककथा के अनुसार इसका जन्म समझाया था। मपु०७.६६-७६ । एक मछली से हुआ था। युद्ध के लिए जाते हुए शान्तनु को अपनी (३) एक धावक । यह राजा सत्यन्धर का मंत्री था। इसकी स्त्री पत्नी के ऋतुकाल का स्मरण हो आया। उन्होंने रतिदान हेतु वीर्य का नाम अनुपमा तथा पुत्र का नाम मधुमुख था। मपु० ७५.२५६ ताम्र-कलश में रखकर उस कलश को एक बाज के गले में बांधकर २५९ पत्नी के पास भेजा। इस श्येन का एक दूसरे श्येन से युद्ध हुआ। (४) भरतक्षेत्र संबंधी विजया की दक्षिणश्रेणी में गगनवल्लभ युद्ध करते समय कलश से वीर्य नदो में गिरा जिसे एक मछली निगल नगर के राजा विद्याधर गरुडवेग का मंत्री। इसने राजा से उसकी गयी। फलस्वरूप वह गर्भवती हुई और उसके गर्भ से एक कन्या पुत्री गन्धर्वदत्ता के विवाह के संबंध में निमित्तज्ञानी मुनि से उत्पन्न हुई । इसके शरीर से मत्स्य के समान दुर्गन्ध आने के कारण सुनकर कहा था कि इसे राजा सत्यन्धर का पुत्र वीणा-वादन से इसे यह नाम दिया गया । युवा होने पर पाराशर ऋषि से यह गर्भस्वयंवर में जीतेगा और यह उसी की भार्या होगी। अन्त में इसी वती हुई और इससे व्यास नामक पुत्र हुआ । पाराशर ने इसे योजनमंत्री के परामर्शानुसार राजा गरुडवेग के निवेदन पर सेठ जिनदत्त ने गन्धा बनाया था। आगे शान्तनु ने इससे विवाह किया तथा चित्र अपने राजपुर नगर में स्वयंवर रचाया था। उसमें सुधोषा वीणा को और विचित्र नाम के इससे दो पुत्र हुए। पापु० २.३०-४३ बजाकर जीवन्धरकुमार ने गन्धर्वदत्ता को पराजित किया और उसे मथुरा-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र को पाण्डवों द्वारा बसायी गयी नगरी। विवाहा था। मपु० ७५.३०१-३३६ यह यमुना-तट पर स्थित है। राजा बृहद्ध्वज ने यहाँ शासन किया मत्त-राम का पक्षधर एक योद्धा । यह रथासीन होकर ससैन्य रणांगण था । भोजकवृष्णि ने उग्रसेन को इसी मगरी का राज्य देकर निग्रन्थ में पहुंचा था । पपु० ५८.१४ दीक्षा धारण की थी। कंस ने अपनी बहिन देवकों का विवाह वसुमत्तकोकिल-जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में विजयावती नगरी के समीप देव के साथ इसो नगरी में किया था। यह सूरसेन देश को राजधानी Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy