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________________ मव-मछ जैन पुराणकोश : २७१ थी। राजा उग्रसेन के पूर्व उसके पितामह सुवीर तथा भोजकवृष्टि यहाँ राज्य करते थे। कंस यहीं पैदा हुआ था। इसका अपर नाम मधुरा था। अन्तिम नारायण कृष्ण का जन्म भी यहीं हुआ था। राजा मधु को पराजित कर राजा दशरथ के पुत्र शत्रुघन ने भी यहाँ राज्य किया था। राजा रत्नवीर्य भी यहाँ का शासक रहा है । इसकी रानी मेघमाला से मेरू पुत्र भी यहाँ हुआ था। मपु० ७०. ३४४, ३५७, ३६७, पपु० २०.२१८-२२२, ८९.१-११७, हपु० १७.१६२, १८.१७९, २७.१३५, ३३.२८-३१, ४७, ५४.७३, ७९, ६२.४, पापु० ७.१४२-१४४, ११.६५ मद-मान (घमण्ड)। यह सज्जाति, सुकुल, ऐश्वर्य, रूप, ज्ञान, तप, बल तथा शिल्पचातुर्य इन आठों के आश्रय से उत्पन्न होता है । मपु० ४.१६७, पपु० ५.३१८, ११९.३०, वीवच० ६.७३-७४ मवन-(१) कृष्ण का पुत्र प्रद्युम्न । हपु० ४३.२४४, ५५.१७ (२) लक्ष्मण का पुत्र । पपु० ६०.५-६, ९४.२७-२८ मदनकान्ता-धातकीखण्ड द्वीप के विदेहक्षेत्र में स्थित गन्धिल देश के पाटली ग्राम का वासी वैश्य नागदत्त और उसकी स्त्री सुमति की बड़ी पुत्री। इसकी श्रीकान्ता छोटी बहिन और नन्द, नन्दमित्र, नन्दिषेण, वरसेन तथा जयसेन ये पांच भाई थे। पूर्वजन्म में वज्रदन्त की पुत्री श्रीमती इसकी बहिन थी। मपु० ६.५८-६०, १२० १३० मदनलता-राजपुर नगर की एक नर्तकी। यह इमी नगर के रंगतेज नामक नट की पत्नी थी। मपु० ७५.४६७-४६९ मवनवती-कांचनपुर नगर की एक कन्या । यह वत्सकावती देश के राजा अकम्पन की पुत्री पिप्पला की सखी थी । मपु० ४७. ७२-७९ मवनवेगा-(१) हस्तिनापुर के कुरुवंशी राजा विद्य द्वेग विद्याधर की पुत्री । चण्डवेग और दधिमुख इसके भाई थे। एक निमित्तज्ञानी मुनि ने बताया था कि चण्डवेग के कंधे पर जिसके गिरने से चण्डवेग को विद्या सिद्ध होगी वह इसका पति होगा। एक समय मानसवेग विद्याधर वसुदेव को हरकर ले गया और उसे गंगा में डाल दिया । वह चंडवेग पर गिरा । चण्डवेग पर यह घटना घटते ही दधिमुख ने इसका विवाह वसुदेव से कर दिया। इसने वसुदेव से अपने पिता को बन्धन मुक्त कराने का वर माँगा था। वसुदेव ने भी इसकी इच्छा पूर्ण की थी । अनावृष्टि इसी का पुत्र था। हपु० २४.८०-८६, २५. ३६-३९, ७१, २६.१ (२) वासव नट तथा प्रियरति नटी की पुत्री। इसने श्रीपाल के समक्ष पुरुष-वेश में और इसके पिता ने स्त्री-वेष में नृत्य किया था। श्रीपाल ने नट और नटी को पहचान लिया था। निमित्तज्ञ ने नट और नटी के इस गुप्त रहस्य के जाननेवाले को सुरम्य देश में श्रोपर नगर के राजा श्रीधर की पुत्री जयवती का पति होना बताया था। मपु० ४७.११-१८ (३) विजया पर्वत के दक्षिण-तट पर स्थित वस्त्वालय नगर के राजा सेन्द्र केतु और उसकी रानी सुप्रभा से उत्पन्न पुत्री। इसने आर्यिका प्रियमित्रा से दीक्षा ले ली थी तथा तपश्चरण करने लगी थी। मपु० ६३.२४९-२५४ मदनांकुश-अयोध्या के राजा राम और उनकी रानी सीता का पुत्र । इसका जन्म जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पुण्डरीक नगर के राजा वनसंघ के यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन युगल रूप में हुआ था। अनंगलवण इसका भाई था। इसने उसके साथ शस्त्र और शास्त्र विद्याएँ सीखी थीं । वज्रसंघ ने इसके लिए राजा पृथु को पुत्री चाही थी किन्तु पृथु के न देने पर वजसंघ पृथु से युद्ध करने को तैयार हुआ ही था कि इसने युद्ध का कारण स्वयं को जानकर वज्रजंघ को रोकते हुए अपने भाई को साथ लेकर पृथु से युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया। इसके पश्चात् पृथ ने वैभव सहित अपनी कन्या इसे देने का निश्चय किया था। इसने पृथु को अपना सारथी बनाकर लक्ष्मण से युद्ध किया था। इस युद्ध में इसने सापेक्षभाव से युद्ध किया था जबकि लक्ष्मण ने निरपेक्ष भाव से । लक्ष्मण ने इसके ऊपर चक्र भी चलाया था किन्तु यह चक्र से प्रभावित नहीं हुआ था। पश्चात् सिद्धार्थ क्षुल्लक से गुप्त भेद ज्ञातकर राम और लक्ष्मण इससे आकर मिल गये थे। कांचनस्थान के राजा कांचतरथ को पुत्री चन्द्रभाग्या ने इसे वरा था। लक्ष्मण के मरण से इसे वैराग्य-भाव जागा था। मृत्यु बिना जाने निमिष मात्र में आक्रमण कर देती है ऐसा ज्ञात कर पुनः गर्भवास न करना पड़े इस उद्देश्य से इसने अपने भाई के साथ अमृतस्वर से दीक्षा ले ली थी। सीता के पूछने पर केवली ने कहा था कि यह अक्षय पद प्राप्त करेगा। इसका दूसरा नाम कुश था । पपु० १००.१७-२१, ३२-४८, १०१.१-९०, १०२. १८३-१८४, १०३.२, १६, २७-३०, ४३-४८, ११०.१, १९, ११५.५४-५९, १२३.८२ मवना-(१) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड को एक नदी । दिग्विजय के समय भरतेश के सेनापति ने ससैन्य इसे पार किया था। मपु० ३०.५९ (२) कौमुदी नगरी के राजा सुमुख की वेश्या । तापस अनुन्धर __ की प्रशंसा सुनकर इसने उसकी परीक्षा ली थी तथा तप से उसे भ्रष्ट किया था। पपु० ३९.१८०-२१२ मदनाशिनी-दशानन को प्राप्त एक विद्या । पपु० ७.३२९ मदनोत्सवा-सुग्रीव की दसवीं पुत्री। यह राम के गुण सुनकर तथा गुणों से आकृष्ट होकर स्वयंवरण की इच्छा से उनके निकट आयी थी। सीता के ध्यान में मग्न राम ने उसे स्वोकार नहीं किया था। पपु० ४७.१३६-१४४ मदिरा-राम के समय का एक मादक पेय । कामसेवन के समय स्त्री पुरुष दोनों इसका पान करते थे । पपु० ७३.१३६-१३७) मवेभ-भरतक्षेत्र का एक पर्वत । दिग्विजय के समय भरतेश को सेना यहाँ आयी थी । मपु० २९.७० मद्य-मादक पेय । अपर नाम मदिरा। यह नरक का कारण होता है । इसके त्याग से उत्तम कुल तथा रूप की प्राप्ति होती है। मपु० ९. ३९, १०.२२, ५६.२६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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