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________________ प्रभव- प्रभावती (२) मानुषोत्तर पर्वत के इस नाम के कूट का निवासी और वायुकुमारों का इन्द्र । हपु० ५.६१० (३) राजा विनमि विद्याधर का पुत्र । हपु० २२.१०३-१०४ ( ४ ) भरतक्षेत्र में स्थित हरिवर्ष देश के भोगपुर नगर का राजा । इसकी मृकण्डु नामा रानी और उससे उत्पन्न सिंहकेतु नामक पुत्र था । मपु० ७०.७५, पापु० ६.११८-१२० (५) वैशाली नगर के राजा चेटक और उसकी रानी सुप्रभा के दस पुत्रों में नवाँ पुत्र । मपु० ७५.३-५ | (६) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के विद्युत्कान्तपुर का राजा ( विद्याधर ) यह अंजना का पति और अमिततेज का जनक था । अपर नाम अणुमान् । मपु० ६८.२७५-२७६ दे० अमिततेज (७) ऐशान स्वर्ग के रुषित विमान में उत्पन्न एक देव । मपु० ८.२१४ (८) विदेह का एक राजा । दूसरी रानी चित्रमालिनी और प्रशान्तमदन इसका पुत्र था । मपु० १०.१५२ (९) भूमिगोचरी एक राजा यह अकम्पन की पुत्री सुलोचना के स्वयंवर में आया था । पापु० ३.३६-३७ प्रभव - (१) सुधर्माचार्य से प्राप्त श्रुत के अवधारक आचार्य । पपु० १.४१-४२ ( २ ) ऐरावत क्षेत्र के शतद्वारपुर का निवासी सुमित्र का मित्र । सुमित्र ने इसे अपने राज्य का एक भाग देकर अपने समान राजा बना दिया था। यह सुमित्र की ही पत्नी वनमाला पर आसक्त हो गया था तथा उसकी पत्नी को इसने अपनी पत्नी बनाना चाहा था । मित्रभाव से सुमित्र ने वनमाला उसे अर्पित कर दी। जब वनमाला से उसका अपना परिचय पाया तो मित्र के साथ इसे अपना अनुचित व्यवहार समझकर यह ग्लानि से भर गया और आत्मघात के लिए तैयार हो गया था परन्तु इसके मित्र ने इसे ऐसा करने से रोक लिया | मरकर यह अनेक दुर्गतियाँ पाते हुए विश्वावसु की ज्योति - ष्मती भार्या का शिखी नाम का पुत्र हुआ। आगे चलकर यही चमरेन्द्र हुआ और इसने सुमित्र के जीव मधु को शूलरत्न भेंट किया । पपु० १२.२२-२५, ३१, ३५-४९, ५५ (३) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११७ प्रभवा- तीसरे नारायण स्वयंभू की पटरानी । पपु० २०.२२७ प्रभविष्णु-सौमेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु० २५.१०९ प्रभा - (१) दूसरे स्वर्ग का एक विमान । मपु० ८.२१४ (२) सौधर्म स्वर्ग का एक पटल । हपु० ६.४७ प्रभाकर - ( १ ) भरत के साथ दीक्षित तथा मुक्तिमार्ग का पार्थिक एक राजा । प० ८८.१-६ (२) ऐशान स्वर्ग का एक विमान । मपु० ९.१९२ (३) प्रभाकरी नगरी के राजा प्रीतिवर्धन के सेनापति का जीव । यह प्रभा नाम के विमान में प्रभाकर देव हुआ । मपु० ८.२१३-२१४ प्रभाकरपुरी- पुष्करवर द्वीप में विदेह की एक नगरी यहाँ विनयन्बर मुनि का निर्वाण हुआ था । मपु० ७.३४ Jain Education International जैन पुराणकोश : २३७ प्रभाकरी - (१) पुष्करा द्वीप के पश्चिमी भाग में स्थित वत्सकावती देश की नगरी । मपु० ७.३३ ३४, पापु० ४.२६४, ६२.७५ (२) मगध देश के सुप्रतिष्ठ नगर के निवासी श्रेष्ठी सागरदत्त की भार्या। यह नागदत्त और कुबेरदत्त की जननी थी । मपु० ७६. २१६-२१८ (३) वत्स देश की कौशाम्बी नगरी के राजा विजय की रानी । यह चक्रवर्ती जयसेन को जननी थी । मपु० ६९.७८-८२ (४) कौशिकपुरी के राजा वर्ण की रानी पा० १२.५-६ प्रभावक्र -- सीता का भाई ( भामण्डल) । पपु० १.७८ प्रभाचन्द्र - चन्द्रोदय के रचयिता एक कवि । आचार्य जिनसेन ने आचार्य यशोभद्र के पश्चात् तथा आचार्य शिवकोटि के पूर्व इनका स्मरण किया है । ये कुमारसेन के शिष्य थे । मपु० १.४६-४९ प्रभापुर - एक नगर । राजा श्रीनन्दन और रानो धरणी से उत्पन्न सप्तर्षियों की जन्मभूमि । प० ९२.१-७ प्रभामण्डल - भगवान् का एक प्रातिहार्य । हपु० ३.३४ प्रभावती (१) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित विजयपर्वत की उत्तरश्रेणी के गन्धर्वपुर नगर के राजा विद्याधर वासव की रानी यह महीधर की जननी थी इसने पद्मावती आर्थिका से रत्नावली तप धारण किया था तथा मरकर यह अच्युतेन्द्र स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुई थी । मपु० ७.३०, २९.३२ (२) विजय पर्वत की उत्तरणी में स्थित भोगपुर नगर के राजा रथ को रानी, स्वयंप्रभा की पुत्री पु० ४६. १४७- १४८, पापु० ३.२१३ ( ३ ) इस नाम की विद्या । इसे अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज ने अन्य कई विद्याओं के साथ सिद्ध किया था । मपु० ६२.३९५ ( ४ ) वैशाली गणराज्य के शासक चेटक और उसकी रानी सुभद्रा की पौवी पुत्री मपु० ७५.२-६, ११-१२ (५) आठवें नारायण लक्ष्मण की पटरानी । पपु० २०.२२८ (६) रावण की भार्या । पपु० ८८. ९-१५ (७) राम की महादेवी । पपु० ९४.२४-२५ (८) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहस्थ वत्सकावतो देश की नगरी । पापु० ४.२४६-२४७ (९) तीर्थंकर मुनिसुव्रत की रानी। इसी रानी से उत्पन्न सुव्रत नामक पुत्र को राज्य देकर मुनिसुव्रत ने संयम धारण किया था । हपु० १६.५५ (१०) विजयार्घ पर्वत की दक्षिणश्रेणी के गान्धार देश में स्थित गन्धसमृद्धनगर के राजा गान्धार और उनकी रानी पृथिवी की पुत्री । यह वसुदेव की रानी थी । पु० १.८६, ३०.६-७, ३२.२३ (११) राजा समुद्रविजय के छोटे भाई धारण की रानी । हपु० १९.२-५ (१२) विजय पर्वत को दक्षिणी के किन्नरोगीनगर के राजा अचमाली की रानी। यह ज्वलनवेग और अशनिवेग पुत्रों की जननी थी । हपु० १९.८०-८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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