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________________ नन्दनपुर-नन्दा (१८) एक देश । सीता के पुत्र लवण और अंकुश ने यह देश जीता था। पपु० १०१.७७ । (१९) एक वानरवंशी राजा । इसके रथ में सौ घोड़े जुते हुए थे। इसने रावण के ज्वर नामक योद्धा को मारा था। यह भरत के साथ दीक्षित हुआ और अपने तप के अनुसार शुभगति को प्राप्त हुआ। पापु० ६०.५-६, १०, ७०.१२-१६, ८८.१-४ (२०) सौधर्मेन्द्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.. नन्दनपुर-एक नगर । तेरहवें तीर्थंकर विमलवाहन को आहार देकर राजा कनकप्रभ ने इसी नगर में पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे। तीसरे प्रतिनारायण सुप्रभ को यह जन्मभूमि थी। मपु० ५९.४२-४३, पपु० २०.२४२ नन्दनमाला-विजया की दक्षिणश्रेणी के ज्योतिप्रभ नगर के राजा विशुद्धकमल की रानी। राजीवसरसी इसकी पुत्री थी । पपु० ८. १५०-१५१ नन्वभूति-आगामी चतुर्थ नारायण । अपर नाम नन्दिभूतिक। मपु० ७६.४८८, हपु ६०.५६६ नन्वभूपति-सिद्धार्थनगर का राजा। इसने तीर्थकर श्रेयांसनाथ को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ५७.४९-५० नन्वयन्ती-संगीत के मध्यम ग्राम के आश्रित ग्यारह जातियों में आठवीं जाति । हपु० १९.१७७ नन्दयशा-(१) जम्बूद्वीप में मंगला देश के सद्भद्रिलपुर नगर के सेठ घनदत्त की स्त्री । इसकी प्रियदर्शना (अपरनाम सुदर्शना) और ज्येष्ठा ये दो पुत्रियाँ तथा धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हद्दत्त, अर्हद्दास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरुचि ये नौ पुत्र थे। इसके पति और सभी पुत्र दीक्षित हो गये थे । गर्भवती होने से यह दोक्षा नहीं ले सकी थी किन्तु धनमित्र नामक पुत्र के जन्म लेते ही इसने भी अपनी दोनों पुत्रियों के साथ सुदर्शना आर्यिका से दीक्षा ले लो थी। अपने पुत्रों को मुनि अवस्था में देखकर इसने अग्रिम भव में भी इन्हीं पुत्रों की जननी होने का निदान किया था । अन्त में समाधिपूर्वक मरण कर यह तथा इसके पुत्र और पुत्रियाँ अच्युत स्वर्ग में देव हुए । निदान के फलस्वरूप स्वर्ग से चयकर यह अन्धकवृष्टि को सुभद्रा रानी हुई। पूर्वभव के सभी पुत्र समुद्रविजय आदि हुए। पूर्वभव की दोनों पुत्रियाँ कुन्ती और माद्री हुई। मपु० ७०.१८२-१९८, हपु० १८. ११३-१२४ (२) श्वेतिका नगर के राजा वासव और उसकी रानी वसुन्धरा की पुत्री । इसका विवाह हस्तिनापुर के राजा गंगदेव के साथ हुआ था । यह युगल रूप में उत्पन्न गंग और गंगदत्त, गंगरक्षित और नन्द तथा सुनन्द और नन्दिषेण की जननी थी। इसके सातवें पुत्र निर्नामक का रेवती धाय ने पालन किया था। इसने अन्त में रेवती धाय और बन्धुमती सेठानी के साथ सुव्रता आयिका के पास दीक्षा ले ली थी। यह इस पर्याय के पुत्र भावी पर्याय में भी प्राप्त हों इस निदान के जैन पुराणकोश : १८९ साथ मरणकर तप के प्रभाव से महाशुक्र स्वर्ग में देव हुई तथा वहाँ से चयकर मृगावती देश के दशाणनगर के राजा देवसेन की रानी धनदेवी की देवकी पुत्री हुई। पूर्वभव में यह एक अन्धी सर्पिणी थी। अकामनिर्जरा से मरण कर इसने मनुष्यगति का बन्ध किया था। मपु० ७१.२६०-२६६, २८३-२९२, हपु० ३३.१४२-१४५, १५९-१६५ नन्ववती-(१) कौतुकमंगल नगर के राजा व्योमबिन्दु विद्याधर की रानी । इसकी कौशिकी और केकसी पुत्रियाँ थीं। अपरनाम मन्दवती था । पपु० ७.१२६-१२७, १६२ (२) समवसरण के अशोकवन की एक वापिका । हपु० ५७.३२ (३) नन्दीश्वर द्वीप की पूर्व दिशा के अंजनगिरि की चार वापिकाओं में एक वापिका । यह ऐशानेन्द्र की क्रीड़ास्थली है। हपु० ५.६५८-६५९ नन्दशोकपुर-धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व मेरु की पश्चिम दिशा का एक नगर । हपु० ६०.९६-९७ नन्वस्थली-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नगरी । राम ने मुनि-अवस्था में बारह दिन के उपवास के पश्चात् यहाँ पारणा की थी। पपु० १२०.२ नन्दा-(१) रुचकगिरि के दिक्नन्दन कूट पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी । हपु० ५.७०६ (२) समवसरण के अशोकवन की एक वापी । हपु० ५७.३२ (३) समवसरण की चारों दिशाओं में विद्यमान चार वापिकाओं में एक वापिका । इसमें स्नान करनेवाले जीव अपना पूर्वभव जान लेते हैं । हपु० ५७.७१-७४ (४) तीर्थकर वृषभदेव की दूसरी रानी । भरतेश और उनकी बहिन ब्राह्मी इसी की कुक्षि से युगल रूप में जन्मे थे । इसने भरत के अतिरिक्त वृषभसेन आदि अठानवे पुत्रों को और जन्म दिया था। ये सभी पुत्र चरमशरीरी थे । पपु० ३.२६०, हपु० ९.१८-२३ (५) भरतखण्ड के मध्यदेश को एक नदी। यमुना पार करके भरतेश की सेना यहाँ भी आयी थी। मपु० २९.६५ (६) नन्दीश्वर द्वीप की पूर्व दिशा के अंजनगिरि की चार वापिकाओं में एक वापिका । यह सौधर्मेन्द्र की क्रीडा स्थली है । हपु० ५.६५८-६५९ (७) तीर्थकर अजितनाथ की रानो । पपु० ५.६४-६५ (८) भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के राजा विष्णु की रानी। यह तीर्थकर श्रेयांसनाथ की जननी थी। मपु० ५७.१७-१८, २२ (९) पोदनपुर के राजा वसुषेण की प्रियतमा रानी। मलयदेश का राजा चण्डशासन इसे हरकर अपने देश ले गया था। वसुषेण उसे वापस नहीं ला सका था। मपु ६०.५०, ५२-५३ (१०) हेमांगद देश में राजपुर नगर के सेठ गन्धोत्कट की पत्नो । जीवन्धरकुमार का पालन-पोषण इसी ने किया था। मपु० ७५.२४६२४९ (११) भद्रिलपुर के राजा मेघवाहन की रानी। मपु० ७१.३०४ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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