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________________ १८८ : जेन पुराणकोश रानी से उत्पन्न पुत्र को राज्य देकर वह दीक्षित हो गया था । समस्त शत्रुओं को वश में कर लेने से यह सुदास नाम से विख्यात हो गया था इसीलिए इसका पुत्र सोदास कहलाया । पपु० २२.१०११३१ नति - दाता की नवधा भक्तियों में एक भक्ति। इसमें दाता मुनि आदि पात्रों को नमस्कार करके दान देता है । मपु० २०.८६ नन्द - (१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १६७ (२) बलभद्र । यह बलि प्रतिनारायण के हन्ता पुण्डरीक नारायण का भाई था । पु० २५.३५ (३) अकृत्रिम चैत्यालयों की पूर्व दिशा में विद्यमान स्वच्छ जल से परिपूर्ण मच्छ तथा कूर्म आदि से रहित एक हृद । हपु० ५.३७२ (४) राजा धृतराष्ट्र तथा गान्धारी का इकतीसवाँ पुत्र | पापु० ८.१९६ (५) गोकुल का प्रधान पुरुष एक गोप । यह यशोदा का पति और कृष्ण का पालक था । मपु० ७०.३८९-४०२, पापु० ११.५८ (६) तीर्थकर शान्तिनाय कायदा १० २०.५२ (७) रावण का एक धनुर्धारी योद्धा । पपु० ७३.१७१ (८) भरत के साथ दीक्षित और मुक्त हुआ एक उच्च कुलीन नृप । पपु० ८८.४ (९) तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव का जीव । मपु० ७६. ५४३ यह छत्रपुर नगर के राजा नन्दिवर्धन और उसकी रानी वीरमती का पुत्र था। आयु के अन्त में इसने गुरू प्रोष्ठिल से संयम धारण कर लिया था। इसने तीर्थंकर प्रकृति का किया और समाचिपूर्वक शरीर त्यागा । यह अच्युत स्वर्ग में इन्द्र हुआ और वहाँ से च्युत होकर कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ के तीर्थंकर के अतिशयों से सम्पन्न • वर्धमान नामक पुत्र हुआ । मपु० ७४.२४२-२७६, बीवच० ६.२१०४,७.११० १११ (१०) राजा गंगदेव और रानी नन्दयशा का चतुर्थ पुत्र । पु० ७१.२६१-२६२ (११) विदेह के गला देश में पाटलिग्राम के निवासी वणिक "नागदत्त और उसकी स्त्री सुमति का ज्येष्ठ पुत्र । इसके नन्दिमित्र, नन्दिषेण, वरसेन और जयसेन छोटे भाई तथा मदनकान्ता और श्रीकान्त छोटी बहनें थीं । मपु० ६.१२८ - १३० (१२) ऐशान स्वर्ग का देव विमान । मपु० ९.१९० (१३) एक यक्ष । इसने और इसके भाई महानन्द यक्ष ने प्रीतिकर कुमार को बहुत साधन देकर सुप्रतिष्ठनगर पहुँचाया था। मपु० ७६.३१५ नन्दक (१) तिलकानन्य मुनि के साथ-साथ वनविहारी मासोपवासी नियम किया था । कुमार चारचयं प्राप्त किये थे। प्रसिद्ध हुआ । हपु० ५०. मुनि । इन्होंने वन में ही आहार लेने का सोहमंच ने इन्हें वन में हो आहार देकर आहार-स्थल देवावतार तीर्थ के रूप में ५८-५९ Jain Education International नति - नन्दन (२) एक खड्ग । कुबेर ने द्वारिका की रचना करके यह आयुध कृष्ण को भेंट किया था। इसी नाम का खड्ग प्रद्युम्न को भी सहस्रवक्त्र नामक नागकुमार से प्राप्त हुआ था । मपु० ७२. ११५- ११६, पु० ४१.३४-३५, ४३, ६७ नन्दघोषा - समवसरण के अशोकवन की एक वापी । हपु० ५७.३२ नन्दन -- ( १ ) विजयार्ध उत्तरश्रेणी का चालीसवाँ नगर । हपु० २२.८९ (२) मानुषोत्तर पर्वत की दक्षिण दिशा के चक्कूट का निवासी एक देव । हपु० ५.६०३ (३) सौधर्म और ऐशान नामक युगल स्वर्गों का सातवाँ इन्द्रक विमान ह० ६.४५, ० ( ४ ) बलदेव का एक पुत्र । हपु० ४८.६७ (५) सीर्थकर वृषभदेव के सातवें गणधर ०४३.५५, ० १२.५६ (६) मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में विद्यमान एक वन अपरनाम महोद्यान | यह भद्रशाल वन से पाँच सौ योजन ऊपर मेरु पर्वत के चारों ओर पाँच सौ योजन चौड़ाई में स्थित है। इस वन के समीप मेरु की बाह्य परिधि इकतीस हजार चार सौ उन्यासी योजन तथा आभ्यन्तर परिधि अट्ठाईस हजार तीन सौ सोलह योजन तथा कुछ अधिक आठ कला प्रमाण है। इस वन के साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर सोमनस वन है । मपु० ५.१४४, १७२, १८३, ७.३५, १३.६९, ४७.२६३, ५७.७५ ७१.१६२, ०६.१३५, २२.१२. हपु० ५.२९०-२९५, ३०७, ३२८, ८.१९०, ६०.४६, वीवच ० ८.१११-११२ (७) नन्दनवन का एक उपवन । हपु० ५.३०७ (८) नन्दनवन का प्रथम कूट । हपु० ५.३२९ (९) विजय नगर के राजा महेन्द्रदत्त के गुरु महेन्द्रसदस चक्रवर्ती हरिषेण के पूर्वभव का जीव था। प० २०.१९८५-१८६ (१०) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में विद्यमान एक नगर मपु० ६०.५८ (११) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का नृप । यह जयसेना का पति और विजयभद्र का पिता था । मपु० ६२.७५-७६ (१२) एक मुनि । अपनी आयु का एक मास शेष रह जाने पर अमिततेज ने अपने पुत्रों को राज्य देकर इनसे प्रायोपगमन संन्यास लिया था । मपु० ६२.४०८-४१० नन्दनपुर के राजा अमितविक्रम को धनश्री और अनन्तश्री नामक पुत्रियों को इन्होंने धर्मोपदेश दिया था । मपु० ६३.१३ (१४) एक पर्वत । मपु० ६३.३३ (१५) नन्दपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार दिया था । मपु० ६३.३३२-३३५ (१६) आगामी नवें तीर्थंकर का जीव । मपु० ७६.४७२ (१७) नन्दन भवन का राजा। यह भरत पर आक्रमण करने के लिए अतिवीर्य की सहायतार्थ उसके पास आया था । पपु० ३७.२० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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