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________________ द्वैतवाद - धनदत्त द्वैतवाद - आत्मा और परमात्मा को तथा पुरुष और प्रकृति को पृथक् मानना । मपु० २१.२५३ इसे द्वारिका-दहन का हैपायन-रोहिणी का भाई एक मुनि बारहवें वर्ष में मंदिरा के निमित से निजोत्पन्न क्रोध से द्वारिका-दहन की बात तीर्थंकर नेमि से जानकर यह संसार से विरक्त हो गया और तप करने लगा था । भ्रान्तिवश बारहवें वर्ष को पूर्ण हुआ जान द्वारिका आया । कृष्ण ने मदिरा फिक्वा दी थी परन्तु प्रक्षिप्त मदिरा कदम्बवन के कुण्डों में अश्मपाक विशेष के कारण भरी रही जिसे शम्ब आदि कुमारों ने तृषाकुलित होकर पी ली। उनके भाव विकृत हो गये । कारण जानकर उन्होंने तब तक मारा जब तक यह पृथिवी पर गिर नहीं पड़ा । इस अपमान से इसे क्रोध उत्पन्न हुआ। बड़ी अनुनयविनय करने से कृष्ण और बलभद्र ही बच सकेंगे ऐसा कहकर अन्त में यह मरकर अग्निकुमार नामक मिध्यादृष्टि भवनवासी देव हुआ। इसने विभंगावधिज्ञान से द्वारिकावासियों को अपना हन्ता जानकर द्वारिका को जलाना आरम्भ किया और छः मास में उसे भस्म करके नष्ट कर दिया । इस दहन में कृष्ण और बलराम दोनों ही बच पाये । अन्य कोई भी नगर से बाहर नहीं निकल पाया । अपरनाम द्वीपायन । यह आगामी अठारहवाँ तीर्थकर होगा। म० ७२.१७८-१८५, ७६. ४७४, पु० १.११८, ६१.२८-७४, ९०, पापु० २२.७८-८५ द्वेषभाव राजा का एक गुण-यात्रुओं में यवावश्यक सन्धि और विग्रह करा देना । मपु० ६८.६६-६७, ७१ ध धनंजय - ( १ ) अर्जुन । हपु० ५०.९४ दे० अजुन (२) विद्याधर विनमि का पुत्र । हपु० २२.१०४ (३) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी के मेघपुर नगर का नृप । इसकी पुत्री का नाम धनश्री था। मपु० ७१.२५२-२५३, हपु० ३३.१३५ (४) राजा धरण का दूसरा पुत्र । हपु० ४८.५० (५) राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३६ (६) विजयार्ध - पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक नगर । मपु० १९. ६४, हपु० २२.८६ (७) महारत्नपुर - नगर का एक विद्याधर राजा । मपु० ६२.६८, पापु० ४.२७ (८) पालकोसण्ड के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती-देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा। यह बलभद्र महाबल और नारायण अतिबल का पिता था। मपु० ७.८०-८२ (९) विदेहक्षेत्र की पुण्डरी किणी नगरी का निवासी एक सेठ । यह जयदत्ता का पिता था । धनश्री इसकी छोटी बहिन थी । जयदत्ता का विवाह वहीं के एक सेठ सर्वदयित से हुआ था। धनश्री का विवाह भी वहीं के दूसरे सेठ सर्वसमुद्र के साथ हुआ था । इसने पुण्डरीकिणी नगरी के राजा यशपाल को रत्नों का उपहार दिया था। मपु० ४७. १९१-२०० २३ Jain Education International जैन पुराणकोश : १७७ (१०) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुरुनांगल देश के हस्तिनापुर नगर का राजा । मपु० ७०.१६० धनद - (१) कुबेर । हपु० ५५. १ (२) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में काम्पिल्यनगर का निवासी वाइस करोड़ दीनार का धनी एक वैश्य। इसकी वारुणी नाम की स्त्री और उससे उत्पन्न भूषण नाम का पुत्र था । पूर्वभव में यह अपने पुत्र का भाई था। अनेक योनियों में भ्रमण करने के बाद यह भरतक्षेत्र के पोदनपुर नगर में अग्निमुख ब्राह्मण का मृदुमति नामक पुत्र हुआ । पपु० ८५.८५-११९ (३) पुण्डरीकी नगरी के राजा महीम का पुत्र मथु ५५.१८ धनदत्त - ( १ ) जम्बूद्वीप में मंगला देश के भद्रिलपुर नगर का निवासी एक वैश्य । नन्दयशा इसकी पत्नी थी। इससे इसके धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हदत्त, अर्हदास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरुचि ये नौ पुत्र तथा प्रियदर्शना और ज्येष्ठा दो पुत्रियाँ हुई थीं। इस नगर के राजा मेघरथ के साथ यह अपने सभी पुत्रों सहित मन्दिरस्थविर मुनि से दीक्षित हो गया था। इसकी पत्नी और दोनों पुत्रियाँ भी सुदर्शना आर्यिका के पास दीक्षित हो गयो थीं। दीक्षा के पश्चात् राजा सहित ये सभी बनारस आये । यहाँ इसे केवलज्ञान हुआ । सात वर्ष तक विहार करने के बाद आयु के अन्त में राजगृह नगर के पास इसने सिद्ध अवस्था प्राप्त की। इसके पुत्र-पुत्रियाँ और पत्नी ने भी विधिपूर्वक संन्यास धारण किया था। इसकी पत्नी ने निदान किया था कि ये सभी पुत्र-पुत्रियाँ पर जन्म में भी उसकी सन्तान हों । बहिनों ने निदान किया था कि अग्रिम भव में भी ये उनके भाई हों। इस प्रकार निदान-पूर्वक मरकर इसकी पत्नी पुत्र-पुत्रियाँ महापुराणकार के अनुसार आनत स्वर्ग के धातंकर विमान में और हरिवंशपुराणकार के अनुसार अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुए। निदान के फलस्वरूप इसकी पत्नी अन्यवृष्ण की रानी सुभद्रा हुई, दोनों बहनें कुन्ती तथा माद्री और धनपाल आदि समुद्रविजय आदि नौ पुत्र हुए। मपु० ७०.१८२१९८, पु० १८.१११-१२४ (२) राजा वज्रजंघ के राजसेठ धनमित्र का पिता । इसकी पत्नी का नाम धनदत्ता था । मपु० ८.२१८ (३) सिन्धु देश की वैशाली नगरी के राजा चेटक और उसकी रानी - सुभद्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सुकुम्भोज, अकम्पन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास का अग्रज तथा प्रियकारिणी, मृगावती, सुत्रभा, प्रभावती लिन ज्येष्ठा और चन्दना का सहोदर था । मपु० ७५.३-७ (४) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नामक नगर के निवासी वणिक् नयदत्त तथा उसकी स्त्री सुनन्दा का पुत्र, यह राम का जीव था और लक्ष्मण के जीव वसुदत्त का भाई था। गुणवती नामा कन्या की प्राप्ति में इसका भाई मारा गया था फिर भी गुणवती इसे प्राप्त न हो सकी थी। अतः भाई के कुमरण और गुणवती की प्राप्ति नहीं होने से बहु दुखी होकर अनेक देशों में भ्रमण करता रहा, अन्त में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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