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________________ १३० : जैन पुराणकोश चिन्तजननी-चेवो (४) नागपुर [हस्तिनापुर नगर के राजा इभवाहन की स्त्री। पपु० २१.७८ (५) भरत चक्रवर्ती का चिन्तामणि रत्न । मपु० ३२.४६, ३७. १७२ चूडारल-शिर का आभूषण । मपु० ११.११३, २९.१६७ चूतपुर-आम्रपुर । यह आम्रवन की पश्चिमोत्तर दिशा में स्थित आम्र देव का निवास स्थान था । हपु० ५.४२८ चूतवन-जम्बूद्वीप का आम्रवन । यह विजयदेव नगर से पच्चीस योजन दूर उत्तर में स्थित था । इसके मध्य में आम्र वृक्ष थे, इनका विस्तार जम्बू वृक्ष से आधा था। मपु० ७.१६१, हपु० ५.४२१-४२४ चूर्णी-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी। भरतेश की सेना यहाँ ___ आयी थी। मपु० २९.८७ चूला-बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त की जननी । पपु० २०.१९१-१९२ दे० चूडादेवी चलिक-चलिका नगरी का राजा। यह विकचा रानी से उत्पन्न कीचक आदि सौ पुत्रों का पिता था। हपु० ४६.२६, पापु० १७.२४५ २४६ चूलिका-(१) एक नगरी। यह कोचक आदि सौ पुत्रों के पिता राजा चूलिक की राजधानी थी। हपु० ४६.२६-२७, पापु० १७.२४५ २४६ (३) राक्षसवंश का एक विद्यानुयोग में कुशल राजा। इसने भानुगति से राज्य प्राप्त किया था। पपु० ५.३९३, ४००-४०१ (५) महालोचन नामक गरुडेन्द्र द्वारा प्रेषित लंका का एक देव । जब रावण के पुत्रों ने सुग्रीव और भामण्डल को नागपाश से बांध कर निश्चेष्ट कर दिया था तब राम और लक्ष्मण ने गरुडेन्द्र का स्मरण किया। गरुडेन्द्र ने इस देव को भेजा और इसके द्वारा राम को सिंहवाहिनी विद्या तथा लक्ष्मण को गरुडवाहिनी विद्या दी गयो। सुग्रीव और भामण्डल पाश से मुक्त हुए । पपु० ६०.१३१-१३५ (५) गन्धर्वपुर के राजा मन्दरमाली और रानी सुन्दरी का विद्याधर पुत्र । यह मनोगति का सहोदर तथा चक्रवर्ती वज्रदन्त का प्रियमित्र था । वज़दन्त की भार्यां लक्ष्मीमती ने सन्देश-पत्र देकर अपने जमाता और पुत्री को बुलाने लिए इसे उनके पास भेजा था। मपु० ८.८९-९९ चिन्ताजननी-चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में काकिणी रत्न का नाम । यह अजीव रत्न भरतेश के श्रीगृह में प्रकट हुआ। इससे अन्धकार दूर किया जा सकता था। मपु० ३७.८३-८५, १७३ चिन्तामणि-(१) इष्ट वस्तुओं का पूरक एक एक रत्न । यह चक्रवर्ती की विभूति को सूचित करता है । मपु० २.३४ (३) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६८ चिन्तारक्ष-सौलहवें तीर्थकर शान्तिनाथ के पूर्वभव के पिता । पपु० २०.२८ चिलात-उत्तर भरतक्षेत्र के मध्य म्लेच्छ खण्ड का एक देश एवं वहाँ का इसी नाम का एक म्लेच्छ राजा । इसने आवर्त नामक म्लेच्छ राजा से मिलकर संयुक्त रूप से भरत चक्रवर्ती का विरोध करने का निश्चय किया था। मन्त्रियों द्वारा रोके जाने पर भी इन दोनों ने नागमुख और मेघमुख देवों का स्मरण किया । ये देव भरतेश की सेना से 'पराजित हो गये । तब इसने भरतेश की अधीनता स्वीकार कर ली। मपु० ३२.४६-७७ चिलातिका-वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी के राजा अपराजित और युवराज अनन्तवीर्य की नर्तकी। इसी नर्तकी को पाने के लिए शिवमन्दिर नगर के राजा दमितारि ने इन दोनों भाइयों के पास दूत भेजा था । मपु० ६२.४१२-४१४, ४२९-४४७ पापु० ४.२५२-२७१ चीवर-कमर में लपेटने का परिधान । मपु० १.१४ । चुल्लितापी-भरतक्षेत्र की एक नदी । यहाँ भरतेश की सेना ने विश्राम किया था। मपु० २९.६५ चूड़ादेवी–तीर्थकर नेमिनाथ के तीर्थ में हुए बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त की जननी और ब्रह्मा नामक राजा की रानी । मपु०७२.२८७-२८८ अपरनाम चूला । पपु० २०.१९१-१९२ चूडामणि-(१) विद्याधर विनमि का पुत्र । हपु० २२.१०५ (२) विजया की उत्तरश्रेणी का छठा नगर । मपु० १९.७८, ८७, हपु० २२.९१ (३) शिर का आभूषण । मपु० ४.९४, १४.८, हपु० ११.१३ (२) अंगप्रविष्ट श्रुत के भेदों में दृष्टिवाद अंग के परिकर्म आदि पांच भेदों में पाँचवाँ भेद । यह जलगता, स्थलगता, आकाशगता, रूपगता तथा मायागता के भेद से पाँच प्रकार की होती है। इनमें प्रत्येक भेद के दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पाँच पद होते हैं । मपु० ६.१४८, हपु० २.१००, १०.६१, १२३-१२४ चेटक–वैशाली नगरी का राजा। इसकी रानी सुभद्रा थी। इनके दस पुत्र और सात पुत्रियाँ थों। पुत्रों के नाम धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सुकुम्भौज, अकम्पन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास थे। पुत्रियों के नाम प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और चन्दना थे । इसने पुत्रियों के सम्बन्ध उस समय के प्रसिद्ध राजाओं से किये। मपु० ७५.३-६९ दूसरे पूर्वभव में यह पलाशनगर में एक विद्याधर था। नागदत्त द्वारा मारे जाने पर पंच नमस्कार मंत्र की भावना भाता हुआ यह स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से च्युत होकर राजा चेटक हुआ। मपु० ७५.१०८-१३२, हपु० २.१७ चेवि-(१) कर्मभूमि के आरम्भिक काल का अभिचन्द्र के द्वारा विन्ध्याचल के पास बसाया गया एक देश । यहाँ वृषभदेव ने विहार किया था। भरत चक्रवर्ती ने इस देश को जीता था। मपु० १६. १४१-१४८, १५५, २५.२८७-२८८, २९.४१, ५५, ५७, हपु० (२) चेदि देश के पास का एक पर्वत । भरतेश ने इसे लांघकर ही चेदि देश को जीता था। मपु० २९.५५ चेवी-मालव देश का एक भाग । मपु० २९.४१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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