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________________ चित्रसेना-चिन्तागति जैन पुराणकोश : १२९ (४) एक नक्षत्र, तीर्थकर पद्मप्रभ तथा अरिष्टनेमि इसी नक्षत्र में जन्मे थे । पपु० २०.४२, ५८, हपु० ३८.९ (५) तीर्थकर नेमि को इस नाम की शिविका । मपु० ७१.१६० (६) मध्यलोक की एक पृथ्वी । यह एक हजार योजन मोटी है । हपु० ४.१२ चित्रादेबी-रुचकवर पर्वत के दक्षिणदिशावर्ती आठ कूटों में आठवें कूट की निवासिनी देवी। हपु० ५.७१० चित्राम्बर-चन्द्रपुर नगर का राजा, रानी पद्मश्री का पति तथा (२) राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का अट्ठावनवां पुत्र । पापु०८.२०० चित्रसेना-(१) मगध देश की वत्सा नगरी के निवासी अग्निमित्र ब्राह्मण और उसकी बैश्य जातीय पत्नी की पुत्री। यह अग्निमित्र की ब्राह्मण पत्नी से उत्पन्न शिवभूति की बहिन थी। इसका विवाह इसी नगर के निवासी देवशर्मा ब्राह्मण से हुआ था। विधवा हो जाने से यह अपने पुत्रों के साथ अपने भाई शिवभूति के पास रहने लगी थी। शिवभति की पत्नी सोमिला को इसका उसके पास रहना रुचिकर न था । सोमिला ने शिवभूति के साथ इसके अनुचित सम्बन्ध होने का दोषारोपण किया जिससे दुखी हो इसने बदला लेने का निश्चय किया था। सोमिला से द्वेष करने के कारण यह चिरकाल तक संसार में भ्रमण करती रही। अनन्तर मृत्यु होने पर यह कौशाम्बी नगरी में एक बैश्य की पुत्री भद्रा नाम से प्रसिद्ध होकर वृषभसेन की पत्नी नई निदान के समय किये गये बैर के फलस्वरूप ही इस चन्दना की पर्याय में कष्ट भोगने पड़े थे। मपु० ७५.७०-८०, १७५-१७६ (२) अतिबल विद्याधर की रानी । मपु० ४७.१०८-१०९ चित्रांग-अर्जुन एक प्रमुख शिष्य । यह रथनूपुर नगर का रहनेवाला ___ था। पापु० १७.६७ चित्रांगद-(१) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३३ (२) धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र में स्थित विजयाधं की दक्षिणश्रेणी के नित्यालोक नगर के नृप विद्याधर चित्रचूल और उसकी स्त्री मनोहरी का पुत्र । यह सुभानु का जीव था। युगल रूप से उत्पन्न गरुडकान्त-सेनकान्त, गरुडध्वज-गरुडवाहन, मणिचूल-हिमचूल इसके अनुज थे । ये सातों भाई अति सुन्दर और विद्यावान थे । हपु० ३३.१३१-१३३ महापुराण में राजा का नाम चन्द्रचूल मिलता है। इसके छोटे भाइयों के नाम भी बदले हुए हैं। मपु० ७१.२४९ चित्रायुध-राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का उनचासवाँ पुत्र । पापु०८.१९९ चित्रोपकरण-तूलिका, पट्ट और रंग । चित्रकर्म इन्हीं की सहायता से होता था। मपु० ७.१५५ दे० चित्रकर्म चिन्त-चक्रवर्ती अरनाथ और मल्लिनाथ के बीच हए नवें चक्रवर्ती महापद्म के पूर्वभव का जीव । सुप्रभ मुनि का शिष्य होकर यह ब्रह्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। वहाँ से च्युत होकर यह हस्तिनापुर नगर में राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का महापद्म नामक पुत्र हुआ। यह नवाँ चक्रवर्ती था। इस पर्याय में इसकी आठ पुत्रियाँ हुई थीं जिन्हें आठ विद्याधर हरकर ले गये थे। यह उन्हें यद्यपि वापिस ले आया था परन्तु विरक्त होकर इन आठों ने दीक्षा धारण कर ली। वे विद्याधर भी दीक्षित हो गये थे। इस घटना से प्रतिबोध पाकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य सौप दिया और विष्णु नामक इसके 'पुत्र के साथ दीक्षा धारण कर ली। अन्त में केवलज्ञान प्राप्त करके यह संसार से मुक्त हो गया । पपु० २०.१७८-१८४ चिन्तागति-(१) पुष्कराध द्वीप में गन्धिल देश की विजया उत्तरश्रेणी में स्थित सूर्यप्रभनगर के राजा सूर्यप्रभ और उनकी रानी धारिणी का ज्येष्ठ पुत्र । यह मनोगति और चपलगति का भाई था। यह नेमिनाथ के सातवें पूर्वभव का जीव था। विजया उत्तरश्रेणी-स्थित अरिन्दमपुर नगर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेन की पुत्री प्रीतिमती द्वारा गतियुद्ध में अपने दोनों छोटे भाइयों के हराये जाने पर इसने उसे पराजित किया था। प्रीतिमती ने पहले इसके छोटे भाइयों को प्राप्त करने की इच्छा से उनके साथ गतियुद्ध किया था अतः प्रीतिमती को इसने स्वयं स्वीकार नहीं किया। अपने छोटे भाई को माला पहनाने के लिए कहा । प्रीतिमती ने इसके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। प्रीतिमती ने इसे ही माला पहिनाना चाही। जब इसने प्रीतिमती को स्वीकार नहीं किया तो वह विवृता नामक आयिका के पास दीक्षित हो गयी। प्रीतिमती के संयम धारण कर लेने से विरक्त होकर इसने भी अपने भाइयों के साथ दमवर नामक गुरु के पास संयम धारण कर लिया। आठों शुद्धियों को प्राप्त कर अपने दोनों भाइयों सहित यह सामानिक जाति का देव हुआ। मपु० ७०.२६-३७, हपु० ३४.१५-३३ (२) प्रतिनारायण अश्वग्रीव का दूत । मपु० ६२.१२४ २५२ (३) ऐशान स्वर्ग का एक मनोहर विमान । मपु० ९.१८९ (४) चित्रांगद विमान का निवासी एक देव । यहाँ से च्युत होकर यह राजा विभीषण और उसकी रानी प्रियदत्ता का वरदत्त नाम का पुत्र हुआ । मपु० ९.१८९, १०.१४९ (५) वानर का जीव । पूर्वभव में यह मनोहर नामक देव था । स्वर्ग से च्युत होकर यह राजा रतिषेण और रानी चन्द्रमती का पुत्र हुआ । मपु० १०.१५१ (६) वाराणसी का राजा । मपु० ४७.३३१ (७) सौधर्म स्वर्ग का देव, वीरदत्त का जीव । मपु० ७०.६५-७२, १३८ चित्रा-(१) रुचकगिरि के पूर्वदिशावर्ती विमलकूट की निवासिनी देवी। हपु० ५.७१९ (२) रुचकगिरि के दक्षिणदिशावर्ती सुप्रतिष्ठकूट की निवासिमी देवी । हपु० ५.७१० (३) रत्नप्रभा पृथिवी के खरभाग का प्रथम पटल। यह एक हजार योजन मोटा है । हपु० ४.५२-५५ दे० खरभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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