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________________ १२८ : जैन पुराणकोश चित्रकर्म-चित्रसेन चित्रकर्म-चित्रकला । इसके दो प्रकार थे। रेखाचित्र और वर्णचित्र । तापस इसका बड़ा भाई था। उसने इसे सर्वनाश होने के भय से इसमें तीनों आयाम-लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई दिखाये जाते थे। अज्ञात रूप से सुबन्धु मुनि के पास स्थानान्तरित कर दिया। उस श्रीमती का चित्र इसी प्रकार का था। इसमें हाव, भाव का प्रदर्शन । समय यह गर्भवती थी । इसका पति जमदग्गि के पुत्रों द्वारा मार डाला भी बड़ा हृदयहारी था। मपु० ७.१०८-१२० गया था। इसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। शाण्डिल्य ने इस पुत्र का चित्रकारपुर-भरतक्षेत्र का एक नगर । यहाँ का राजा प्रीतिभद्र था । ___नाम सुभोम रखा था। मपु० ६५.५७-५८, ११२-१२५ हपु० २७.९७ चित्रमाला-चक्रायुध की स्त्री । चक्रायुध चक्रपुर नगर के राजा अपचित्रकूट-(१) विजया की दक्षिणश्रेणी के पचास नगरों में एक नगर। राजित और रानी सुन्दरी का पुत्र था। वायुध इसका पुत्र था । मपु० १९.५१, ५३, ६३.२०२ मपु० ५९.२४०, हपु० २७.८९-९० (२) पूर्व विदेह का एक वक्षारगिरि। यह नील पर्वत और सीता चित्रमालिनी-राजा प्रभंजन की रानी, प्रशान्तमदन की जननी। मपु० नदी के मध्य में स्थित है । मपु० ६३.२०२, हपु० ५.२२८ १०.१५२ (३) वाराणसी का एक सुन्दर उद्यान-पर्वत । राम-लक्ष्मण और चित्रमालो-जरासन्ध का एक पुत्र । इसने यादवों के साथ यद्ध किया। साता यहाँ चार मास पन्द्रह दिन रहे थे। मपु० ६८.१२६, पपु० था । हपु० ५२.३१ ३३.४० चित्ररथ-(१) कुरु वंश का एक राजा। यह विचित्र वीर्य का पुत्र और चित्रकेतु-जरासन्ध का पुत्र । इसने यादवों के साथ युद्ध किया था। महारथ का पिता था । हपु० ४५.२८ हपु० ५२.३० (२) सुराष्ट्र देश के गिरिनगर का राजा। इसकी रानी कनकचित्रगुप्त-आगामी तीसरे काल के सत्रहवें तीर्थंकर। मपु० ७६.४७९, मालिनी थी। यह मांस-प्रेमी था। इसने सुधर्म नामक मुनिराज से हपु० ६०.५६० मांस खाने के दोष सुने और विरक्त होकर अपने पुत्र मेघरथ चित्रचूल-(१) धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र में स्थित विजया को राज्य दे दिया । स्वयं ने तीन सौ राजाओं के साथ दीक्षा ले ली। की दक्षिणश्रेणी के नित्यालोक नगर का राजा। इसकी मनोहारी मपु० ७१.२७०-२७३, हपु० ३३.१५०-१५२ नाम की रानी थी। इन दोनों के सात पुत्र थे और युगल रूप से (३) विद्याधर मनोरथ का पुत्र । इसके बन्धुओं ने इसके विवाह उत्पन्न गरुड़कान्त-सेनकान्त, गरुडध्वज-गरुड़वाहन, मणिचूल और के लिए राजा आदित्यगति से प्रभावती की पुत्री रतिप्रभा को माँगा हिमचुल । ये छह पुत्र थे । हपु० ३३.१३१-१३३ था। मपु० ४६.१८१ २. जम्बूद्वीप के सुकच्छ देश में स्थित विजया पर्वत की उत्तर (४) सीता के स्वयंवर में सम्मिलित एक राजा । पपु० २८.२१४ श्रेणी के किन्नरगीत नगर का राजा । इसकी पुत्री सुकान्ता इसी चित्रलेखिका-विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित श्रुतशोणित नगर श्रेणी के शुक्रप्रभ नगर के राजा इन्द्रदत्त के पुत्र वायुवेग विद्याधर के राजा विद्याधर बाण की पुत्री । यह उषा को सखी थी । अनिरुद्धको दी गयी थी। मपु० ६३.९१-९३ कुमार से उषा का सम्बन्ध इसी ने कराया था। हपु० ५५.१६-२४ (३) एक विद्याधर । यह अपनी बहिन वसन्तसेना के पास पहुँच- चित्रवता-पूर्व आयखण्ड का एक नदा। भरत का सना न वृत्रवता नदा कर बहनोई कनकशान्ति मुनिराज पर पूर्व जन्म के बंधे वैर के कारण को पार करके इस नदी को पार किया था । मपु० २९.५८ उपसर्ग करने के लिए तत्पर हो गया था। वह उपसर्ग नहीं कर चित्रवर्ण-एक धनुष । इसे सहस्रवक्त्र नामक नागकुमार से प्रद्युम्न ने सका और मुनि को केवलज्ञान हो गया। मुनि से इसने क्षमा मांगी। प्राप्त किया था। मपु० ७२.११५-११६ मपु० ६३.१२५-१२८ चित्रवा-राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का चौतीसवाँ पुत्र । चित्रपट-चित्र अंकित करने का फलक अथवा वस्त्र । मपु०८.११८ पापु० ८.१९७ चित्रवसु-राजा वसु के दस पुत्रों में दूसरा विजिगोषु पुत्र । हपु० चित्रपाणि-राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का तैतीसवां पुत्र । १७.५८ पापु० ४.१९७ चित्रवाहन-भविष्यत्कालीन बारह चक्रवतियों में दसवां चक्रवर्ती । चित्रपुर-विजयाध की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । यहाँ का राजा महापुराण में इसे विचित्रवाहन कहा है । मपु०७६.४८३, हपु० ६०. अरिंजय था । मपु० ६२.६६ ५६३-५६५ चित्रबुद्धि-भरतक्षेत्र के चित्रकारपुर के राजा प्रीतिभद्र का मंत्री। चित्रवेगा-एक व्यन्तर देवी। यह पूर्वभव में राजा पुरुदेव को रानी इसकी कमला नाम की स्त्री और उससे उत्पन्न विचित्रमति नाम का वसुन्धरा की वीतशोका नाम की दासी थी। मपु० ४६.३५१-३५५ पुत्र था। महापुराण में नगर का नाम चित्रपुर और मंत्री का नाम चित्रषेणा-एक व्यन्तर देवी । पूर्वभव में यह चित्रवेगा के साथ की चित्रमति दिया है । मपु० ५९.२५५-२५६, हपु० २७.९७-९८ श्रीमती नाम की दासी थी । मपु० ४६.३५०-३५५ चिवमती-साकेत के राजा सहस्रबाहु की रानी। यह कान्यकुब्ज देश चित्रसेन-(१) कपित्थ वन में दिशागिरि पर्वत पर स्थित वनगिरि नगर के राजा पारत की पुत्री और कृतवीरराधिप की जननी थी । शाण्डिल्य के किरातराज हरिविक्रम का एक सेवक । मपु० ७५.४७८-४८० १२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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