SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चारुकृष्ण-चित्रक जैन पुराणकोश : १२७ पड़ा । इसे अपने ऐश्वर्य से विरक्ति हो गयी और अन्त में वज्रमाली के साथ रतिवेग नामक मुनि से इसने दीक्षा ले ली । पपु० ११८.२३, २८-३४, ५०.६३, ६६-६७ चारुरूप-कुरुवंशी एक राजा। यह राजा चारु का पुत्र था। हपु० ४५.२३ चारुलक्ष्मी-भीमसेन की पत्नी। यह मेघदल नगर के निवासी मेघ नामक सेठ और उसकी पत्नी अलका की पुत्री थी। हपु० ४६. १५-१६ चारुश्री-सुग्रीव की नवीं पुत्री । पपु० ४७.१३६-१४४ चारुषेण तीर्थकर शम्भवनाथ के गणधर । मपु० ४९.४३ चारुहासिनी-वसुदेव की पत्नी। यह भद्रिलपुर नगर के राजा पोण्ड की पुत्री थी। इसके पुत्र का नाम भी पौण्ड ही था । हपु० १.८४, २४. (२) कुरुवंशी एक राजा। चारुरूप इसका पुत्र था। हपु० ४५.२३ चारुकृष्ण-(१) कृष्ण का एक पुत्र । हपु० ४८.७१ (२) अर्धरथ राजाओं में यादवों के पक्ष का एक राजा । हपु० ५०.८३-८५ चारुचन्द्र-चन्दनवन नगर के राजा अमोघदर्शन और उसकी स्त्री चारुमति का पुत्र । इसने एक वेश्या की पुत्री कामपताका के साथ विवाह किया था। हपु० २९.२५, ३० चारुमित्र-राजा धृतराष्ट्र तथा गान्धारी का तेईसवाँ पुत्र । पापु० ८.१९५ चारुणी-(१) विद्याधर श्रीकण्ठ के पुत्र वज्रकण्ठ की भार्या । पपु० ६.१५२ (२) विजया पर्वत को उत्तरश्रणी की एक नगरी। मपु० १९.७८ चारुदत्त-(१) शम्भवनाथ का प्रथम गणधर । हपु०६०.३४६ (२) बलदेव का एक पुत्र । हपु० ४८.६६ (३) शकुनि का वीर-पराक्रमी भाई। यह कृष्ण का पक्षधर था। इसके पास एक चौथाई अक्षौहिणी सेना थी। हपु० ५०.७२ (४) चम्पा नगरी के एक घनिक वैश्य भानुदत्त और उसको स्त्री सुभद्रा का पुत्र । यह अपने मामा सर्वार्थ को स्त्री सुमित्रा से उत्पन्न पुत्री मित्रवती से विवाहित हुआ था। चाचा रुद्रदत्त की युक्ति से यह वेश्या कलिंगसेना की पुत्री बसन्तसेना से मिला। दोनों परस्पर आसक्त होकर एक साथ रहने लगे। इसने अपनी सारी सम्पत्ति बसन्तसेना की माँ कलिंगसेना को दे दी। निर्धन होने पर कलिंगसेना ने इसे घर से निकाल दिया । यह व्यापार के लिए रत्नद्वीप गया और वहाँ से बहुत-सा धन लेकर लौटा । हपु० २१.६-१२७ इसकी गन्धर्वसेना नामक एक पुत्री थी। वह गन्धर्वशास्त्र में निपुण थो । गन्धर्व सेना का निश्चय था कि जो गन्धर्वशास्त्र में जीतेगा वही उसका पति होगा । वसुदेव ने उसे जीत लिया और इसने अपनी पुत्री का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया । मपु० ७०.२६७-३०४, हपु० १९.१२२१२३, २६८ चारुपद्म-कुरुवंशी एक राजा । हपु० ४५.२३ 'चारुपाव-आगामी उत्सर्पिणी के तीसरे काल में होनेवाले तेईसवें तीर्थकर देवपाल का जीव । मपु० ७६.४७४ चारुमति-चन्दनवन नगर के राजा अमोघदर्शन की स्त्री, चारुचन्द्र की जननी । हपु० २९.२४-२५ चारुयान-देव-राक्षस युद्ध में देवसेना का एक प्रधान विद्याधर । इस युद्ध में राक्षस-सेना क्षत-विक्षत हो गयी थी । पपु० ७.७५-७६ 'चारुरत्न-सुन्द का पुत्र | इसने इन्द्रजित् के पुत्र वज्रमाली को सेना सहित साथ लेकर लक्ष्मण के मरण से शोकाकुल राम की नगरी अयोध्या पर आक्रमण किया था। इसमें कृतान्तवक्त्र और जटायु के जीवों ने जो देव हो गये थे राम की सहायता को जिससे इसे भागना चालन-एक दिव्य औषधि । इससे बँधे हुए व्यक्ति को चलाया जा सकता है । हपु० २१.१८ चित्तवेग-विजयाध-दक्षिणश्रेणी के स्वर्णाभनगर का राजा-एक विद्या घर । इसकी अंगारवती नाम की रानी थी। इन दोनों के मानसवेग नाम का पुत्र और वेगवती नाम की एक पुत्री थी। पुत्र को राज्य देकर इसने मुनि-दीक्षा ले ली थी। हपु० २४.६९-७१ चित्तसुन्दरी-राम के गुणों में अनुरक्त सुग्रीव की छठी पुत्री। यह स्वयंवरण की इच्छा से राम के पास गयी थी पर राम ने उसकी उपेक्षा कर दी थी। पपु० ४७.१३६-१४४ चित्तेन्द्रिय निरोध-मुनियों का एक मूलगुण-पाँच इन्द्रियों तथा मन को ___ वश में करना । हपु० २.१२८ . चित्तोसवा-चक्रपुर नगर के राजा चक्रध्वज और उसकी रानी मनस्विनी की पुत्री । पुरोहित-पुत्र पिंगल इसे हरकर विदग्धनगर ले गया और वहाँ रहने लगा था। वहाँ इससे नगर का राजा कुण्डलमण्डित भी इसे हर ले गया था। इन अपहरणों से दुखी यह संसार से विरक्त हो गयी और अन्त में यह तप करके मरी। यह स्वर्ग में देवी हुई। वहाँ से च्युत होकर सीता के रूप में जन्मी। कुण्डलमण्डित भी इसी के साथ गर्भ में आया था और भामण्डल के रूप में जन्मा था । पपु० २६.४-१८, १११-११२ चित्तोभवकरी-रावण को प्राप्त एक विद्या । पपु० ७.३३१-३३२ चित्र-(१) नील कुलाचल की दक्षिण दिशा में सीता नदी के पूर्वी तट पर स्थित एक हजार योजन विस्तार से युक्त एक कूट। हपु० ५.१९२ (२) कुरुवंशी एक राजा । हपु० ४५.२७ (३) राजा शान्तन और योजनगन्धा का पुत्र । विचित्र इसका भाई था। पापु० २.४२ चित्रक-(१) नन्दन वन की उत्तर दिशा में स्थित एक भवन । यह तीस योजन लम्बा, पचास योजन ऊँचा और नब्बे योजन की परिधि से युक्त था । हपु० ५.३१५-३१६ (२) राजा समुद्रविजय का एक पुत्र । हपु० ४८.४४ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy