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________________ ९० : जैन पुराणकोष कुवेर श्रेष्ठी की पुत्री । इसके पिता ने इसी नगर के निवासी वैश्रवण सेठ के पुत्र श्रीदत्त को इसे दे दिया। राजकुमार चन्द्रचूल ने बाधा उपस्थित की थी किन्तु वह सफल नहीं हो सका । मपु० ६७.९०-९६ कुबेरप्रिय-पुण्डरीकिणी नगरी के शासक गुणपाल का निकटवर्ती एक धर्मात्मा सेठ । इसे नगर प्रसिद्ध उत्पलमाला वेश्या भी ध्यान से विचलित न कर सकी थी। मपु० ४६.२८९-३०२ कुबेरमित्र-जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा प्रजापाल का राजश्रेष्ठी । इसकी धनवती आदि बत्तीस स्त्रियाँ थीं। धनवती का पुत्र कुबेरकान्त था। इसका समुद्रदत्त नाम का एक साला भी इसके नगर में रहता था। मपु० १९.५६, पापु० ३.२०१-२०३ राजा के मन्त्री फल्गुमति ने इसे अपना विरोधी जानकर राजा के द्वारा हटा दिया था। बाद में इसकी सच्चाई और विवेक के कारण राजा ने इसे अपने पास पूर्ववत् बुला लिया था । मपु० ४६.५२-७२ कुबेरमित्रा-सेठ कुबेरमित्र की बहिन तथा सेठ समुद्रदत्त की पत्नी । मपु० ४६.४१ कुबेरी-पुण्डरोकिणी नगरी के राजा गुणपाल की रानी और श्रीपाल और वसुपाल की जननी । मपु० ४७.३-८ कुब्जक-मलय देश का एक वन । मरुभूति मरकर इसी वन में वज्रघोष नाम का हाथी हुआ था । मपु० ७३.१२ कुब्जा-(१) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी। यहाँ भरतेश की सेना ठहरी थी। मपु० २९.६० (२) राजा समुद्रविजय की रानी शिवादेवी की दासी । वसुदेव को राजमहल से बाहर न जाने का रहस्य इसी से ज्ञात हुआ था। हपु० . १९.३३-४२ कुभाण्डो-इस नाम की एक विद्या । यह अर्ककीति के पुत्र अमिततेज ___ को प्राप्त थी। मपु० ६२.३९६ कुमार-(१) राजा श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार । मपु०७५.२४, ३० (२) भरतेश का पुत्र अर्ककोति । मपु० ४५.४२ कुमारकीति-रावण और लक्ष्मण के आगामी छठे भव के जीव जयकान्त और जयप्रभ नामधारी कुमारों का पिता । पपु० १२३.११३-११९ कुमारवत्त-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित हेमांगद देश के राजपुर जगर का निवासी एक वैश्य । इसकी भार्या विमला से गुणमाला नाम की पुत्री हुई थी । मपु० ७५.३१०-३११, ३५१-३५३ कुमारदेव-वैश्य धनदेव और उसकी भार्या सुकुमारिका का पुत्र । यह मुनिराज कीचक के दूसरे पूर्वभव का जीव था। हपु० ४६.५०-५१ कुमारसेन हरिवंशपुराण के रचयिता जिनसेन के परम्परा गुरु । आचार्य प्रभाचन्द्र इनके शिष्य थे । हपु० १.३८ कुमुव-(१) विजया की उत्तरश्रेणी का एक नगर । मपु० १९. ८२,८७ (२) राम का सहायक एक विद्याधर । इसने रावण के योद्धा इन्द्रवर्मा के साथ युद्ध किया था । मपु० ६८.३९०-३९१, ६२१-६२२, पपु० ५४.५६, ६०.५७-५९, ७४.६१-६२ कुबेरप्रिय-कुम्भ (३) चौरासी लाख कुमुदांग प्रमाण काल । नवें मनु यशस्त्रान् की आयु कुमुद वर्ष प्रमाण थी। मपु० ३.१२६, २२० हपु० ७.२६, (४) रुचकगिरि के पश्चिमदिशावर्ती आठ कूटों में पांचवां कूट । यह कांचना देवी की निवासभूमि था । हपु० ५.७१३ (५) बलदेव और कृष्ण के रथ की रक्षा करने के लिए पृष्ठरक्षक के रूप में नियुक्त वसुदेव का पुत्र । हपु० ५०.११५-११७ कुमुबकूट-मेरु से पश्चिम की ओर सीतोदा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित एक कूट । हपु० ५.२०७ कुमुवप्रभा-सुमेरु पर्वत की उत्तर-पूर्व (ऐशान) दिशा में स्थित चार वापियों में चौथी वापी। हपु० ५.३४५ कुमुवती-(१) इस नाम की एक गदा । कुबेर ने इसे श्रीकृष्ण को प्रदान किया था। हपु० ४१.३४-३५ (२) राजा देवक की पुत्री। इसका विदुर राजा से प्रेम-विवाह हुआ था। पापु० ८.१११ । कुमुवांग-चौरासी लाख नियुत प्रमाण काल । महापुराण में नियुत को नयुत कहा गया है। दसवें मनु अभिचन्द्र की आयु कुमुदांग प्रमाण थी। मपु० ३.१३०, २२२, हपु० ७, २६ कुमुवा-पूर्व विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी और निषध पर्वत के मध्य स्थित दक्षिणोत्तर लम्बे आठ देशों में सातवाँ देश। अशोका नगरी इसकी राजधानी थी। मपु० ६३.२०८-२१६, हपु० ५.२४९-२५०, २६१-२६२ (२) सुमेरु पर्वत की उत्तर-पूर्व (ऐशान) दिशावर्ती चार वापियों में एक वापी । हपु० ५.३४५-३४६ (३) नन्दीश्वर द्वीप के पश्चिम दिशा में स्थित अंजनगिरि की चारों दिशाओं में स्थित चार वापियों में तीसरी वापी, धरण देव की क्रीड़ाभूमि । हपु० ५.६६२-६६३ (४) समवसरण के चम्पकवन की छः वापियों में प्रथम वापी । हपु० ५७.३४ कुमदामेलक-चक्रवर्ती भरत के सेनापति अयोध्या का अश्वरत्न । हपु० ११.२३ कुमुदावती–मर्यादा पालक श्रीवर्धन राजा की नगरी । पपु० ५.३७ कुमुवावर्त-विद्याधरों का स्वामी, राम का व्याघ्ररथी योद्धा। पपु० ५८.३-७ कुम्भ-(१) भगवान् वृषभदेव के द्वितीय गणधर । मपु० ४३.५४, हपु० १२.५५, ७० (२) तीर्थकर के गर्भ में आने पर गर्भावस्था के समय तीर्थकर की माता के द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में नौवें स्वप्न में देखी गयी वस्तु-कलश । पपु० २१.१२-१४ (३) मिथिला नगरी का राजा, रानी रक्षिता का पति और तीर्थकर मल्लिनाथ का जनक । मपु० ६६.३२-३४, पपु० २०.५५ (४) कुम्भकर्ण का पुत्र और रावण का सामन्त । हनुमान् ने इसका युद्ध में सामना किया था। रथनुपुर नगर के राजा इन्द्र विद्याधर को Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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